
नयी दिल्ली, 13 फरवरी उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से यह बताने को कहा कि क्या अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी निर्दोष सदस्य के खिलाफ झूठे सबूत गढ़ने वाले व्यक्ति पर अनिवार्य मृत्युदंड के प्रावधान के तहत कभी मुकदमा चलाया गया है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिन्होंने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत अनिवार्य मृत्युदंड के प्रावधान को निष्प्रभावी करने की मांग की है।
अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी बेगुनाह सदस्य को दोषी ठहराये जाने और संबंधित आरोपी द्वारा दिए गए झूठे और मनगढ़ंत साक्ष्यों के चलते उसे सजा दिये जाने के मामले में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3 (2) में अनिवार्य मृत्यु दंड का प्रावधान है।
जैसे ही सुनवाई शुरू हुई, वेंकटरमणी ने कहा कि कुछ आंकड़े होना जरूरी है कि क्या इस प्रावधान के तहत अपराध हुए हैं।
तब शीर्ष अदालत ने मल्होत्रा से पूछा कि क्या इस प्रावधान के तहत दोषसिद्धि का एक भी मामला है।
वकील ने जवाब दिया कि उनके पास इस संबंध में आंकड़े नहीं हैं।
शीर्ष अदालत ने वेंकटरमणी से सूचना प्राप्त करने का प्रयास करने और संक्षिप्त नोट जमा करने को कहा।
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