देश की खबरें | गिर सोमनाथ में ध्वस्तीकरण: न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं को जवाब देने के लिए चार हफ्ते का वक्त दिया

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. उच्चतम न्यायालय ने गुजरात के गिर सोमनाथ जिले में ध्वस्तीकरण अभियान से जुड़े मामले में राज्य सरकार के हलफनामा दाखिल करने के बाद, याचिकाकार्ताओं को अपना जवाब दाखिल करने के लिए सोमवार को चार हफ्ते का वक्त दिया।

नयी दिल्ली, दो दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने गुजरात के गिर सोमनाथ जिले में ध्वस्तीकरण अभियान से जुड़े मामले में राज्य सरकार के हलफनामा दाखिल करने के बाद, याचिकाकार्ताओं को अपना जवाब दाखिल करने के लिए सोमवार को चार हफ्ते का वक्त दिया।

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ गुजरात के प्राधिकारों के खिलाफ एक अवमानना याचिका सहित चार अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।

अवमानना याचिका, न्यायालय की अनुमति के बिना आवासीय एवं धार्मिक ढांचों को कथित तौर पर अवैध रूप से ढहाये जाने को लेकर दायर की गई थी।

गुजरात में सोमनाथ मंदिर के निकट अतिक्रमण से सार्वजनिक भूमि को मुक्त कराने के लिए कथित तौर पर एक ध्वस्तीकरण अभियान चलाया गया था।

सोमवार को सुनवाई के दौरान, कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हुजैफा अहमदी ने न्यायालय से कहा कि राज्य सरकार ने एक जवाबी हलफनामा दाखिल किया है और याचिकाकर्ताओं की ओर से एक प्रत्युत्तर दाखिल करने की जरूरत है।

राज्य सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुझाव दिया कि शीर्ष अदालत में दायर याचिकाओं में से एक, गुजरात उच्च न्यायालय के एक अंतरिम आदेश के खिलाफ है। यह आदेश ध्वस्तीकरण को चुनौती देते हुए दायर एक रिट याचिका पर जारी किया गया था।

मेहता ने सुझाव दिया कि पीठ उच्च न्यायालय से उसके समक्ष लंबित मामले पर अंतिम निर्णय लेने का अनुरोध कर सकती है ताकि शीर्ष अदालत तथ्यात्मक निष्कर्ष निकाल सके।

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने मामले के गुण-दोष के आधार पर शीर्ष अदालत में अपना जवाब दाखिल किया है।

अहमदी के प्रत्युत्तर दाखिल करने की अनुमति मांगे जाने पर पीठ ने कहा, ‘‘सभी मामलों में याचिकाकर्ताओं को प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए चार हफ्तों का समय दिया जाता है। मामले को छह हफ्ते बाद निर्धारित किया जाए।’’

गुजरात सरकार ने शीर्ष अदालत में दाखिल अपने हलफनामे में ध्वस्तीकरण अभियान को उचित ठहराते हुए कहा कि यह सार्वजनिक भूमि से अतिक्रमण हटाने को लेकर लगातार चलाया जा रहा अभियान है।

शीर्ष अदालत ने 17 सितंबर को ध्वस्तीकरण कार्रवाई पर अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए, उसकी अनुमति के बिना, संपत्तियों की तोड़फोड़ पर रोक लगा दी थी। इनमें अपराध के आरोपियों की संपत्तियां भी शामिल हैं।

न्यायालय ने कहा था कि अवैध रूप से ध्वस्तीकरण का एक भी दृष्टांत संविधान की भावना के खिलाफ है।

हालांकि, शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया था कि उसका आदेश सार्वजनिक सड़कों, फुटपाथ, रेल मार्ग, जल स्रोतों जैसे सार्वजनिक स्थानों पर मौजूद अनधिकृत संरचनाओं पर लागू नहीं होता है।

(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)

Share Now

\