इंदौर (मध्यप्रदेश), 15 नवंबर मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने तलाक के वास्ते 33 वर्षीय एक महिला की अर्जी मंजूर करते हुए कहा है कि पति द्वारा पत्नी को नौकरी छोड़ने और उसे पति की मर्जी एवं तौर-तरीके के मुताबिक रहने के लिए मजबूर किया जाना क्रूरता की श्रेणी में आता है।
केंद्र सरकार के एक उपक्रम में प्रबंधक के रूप में इंदौर में पदस्थ महिला ने कुटुम्ब न्यायालय में यह आरोप लगाते हुए पति के खिलाफ तलाक का आवेदन दिया था कि वह उसे नौकरी छोड़कर भोपाल में अपने साथ रहने के लिए मानसिक तौर पर परेशान कर रहा है।
कुटुम्ब न्यायालय ने महिला की यह अर्जी खारिज कर दी थी। महिला ने कुटुम्ब न्यायालय के इस आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी की पीठ ने कानूनी पहलुओं पर गौर करते हुए निचली अदालत के फैसले को पलट दिया और महिला की तलाक की अर्जी मंजूर कर ली।
पीठ ने 13 नवंबर को सुनाए फैसले में कहा,“पति या पत्नी एक साथ रहना चाहते हैं या नहीं, यह उनकी इच्छा है। पति या पत्नी में से कोई भी दूसरे पक्ष को नौकरी नहीं करने या जीवनसाथी की पसंद के अनुसार कोई नौकरी करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता।’’
उच्च न्यायालय ने कहा कि वर्तमान मामले में पति ने पत्नी पर दबाव डाला कि वह अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दे।
उच्च न्यायालय ने कहा कि पत्नी को नौकरी छोड़ने और उसे पति की इच्छा एवं तौर-तरीके के अनुसार रहने के लिए मजबूर किया जाना क्रूरता की श्रेणी में आता है।
महिला के वकील राघवेंद्र सिंह रघुवंशी ने शुक्रवार को "पीटीआई-" से कहा,‘‘2014 में विवाह के बाद मेरी पक्षकार (मुवक्किल) और उसका पति भोपाल में रहकर सरकारी भर्ती परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे। 2017 में मेरी पक्षकार को एक सरकारी उपक्रम में नौकरी मिल गई, लेकिन उसके पति को कोई रोजगार नहीं मिल पाने से उसके अहंकार को ठेस पहुंचने लगी।’’
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