देश की खबरें | एल्गार मामला: डीयू के प्रोफेसर हनी बाबू को जमानत देने से बंबई उच्च न्यायालय का इनकार

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. बंबई उच्च न्यायालय ने एल्गार परिषद मामले में आरोपी एवं दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के एसोसिएट प्रोफेसर हनी बाबू की जमानत याचिका सोमवार को खारिज कर दी।

मुंबई, 19 सितंबर बंबई उच्च न्यायालय ने एल्गार परिषद मामले में आरोपी एवं दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के एसोसिएट प्रोफेसर हनी बाबू की जमानत याचिका सोमवार को खारिज कर दी।

अदालत ने कहा कि उनके खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सही हैं और वह प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) के एक सक्रिय और प्रमुख सदस्य हैं।

न्यायमूर्ति एन एम जामदार और न्यायमूर्ति एन आर बोरकर की खंडपीठ ने कहा कि एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में जुलाई 2020 में गिरफ्तार किए गए 54 वर्षीय बाबू द्वारा विशेष अदालत के उस आदेश के खिलाफ दायर अपील खारिज की जाती है, जिसने उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया था।

फैसले में कहा गया, ‘‘... हम पाते हैं कि यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि अपीलकर्ता के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सही हैं।’’

अदालत ने कहा, ‘‘राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) द्वारा सौंपे गए दस्तावेज और जांच के दौरान सामने आए तथ्य प्रदर्शित करते हैं कि अपीलकर्ता (बाबू) भाकपा (माओवादी) के एक सक्रिय और प्रमुख सदस्य हैं।’’

अदालत ने आरोपी व्यक्तियों के बीच संवाद का जिक्र करते हुए ‘कॉमरेड’ (भाकपा-माओवादी के सदस्यों) द्वारा 'मोदी राज' को खत्म करने के लिए ठोस कदम उठाने के प्रस्ताव का जिक्र किया। अदालत ने कहा कि यह जिक्र किया गया है कि 'राजीव गांधी जैसी घटना' की तर्ज पर ‘हम’ एक और घटना की सोच रहे हैं, और 'उनके' रोड शो को लक्षित करना एक प्रभावी रणनीति हो सकती है।

अदालत ने कहा, ‘‘हमने पाया कि यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि एक आतंकवादी कृत्य की साजिश करने, प्रयास करने और अंजाम देने को लेकर अपीलकर्ता पर एनआईए के आरोप प्रथम दृष्टया सही हैं।’’

अदालत ने कहा कि भाकपा (माओवादी) पार्टी को एक चरमपंथी संगठन के रूप में नामित किया गया है और वह सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से जन स्वराज स्थापित करने के लिए काम कर रही है। अदालत ने कहा कि वह सत्ता को कमजोर करके उसे नियंत्रण में करना चाहता है।

अदालत ने कहा, ‘‘अपीलकर्ता, अन्य आरोपियों के साथ मिलकर भाकपा (माओवादी) पार्टी की गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए विभिन्न जन संगठनों के लिए काम कर रहे हैं। भाकपा (माओवादी) पार्टी ने वैध सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए अपनी भूमिका को आगे बढ़ाने के लिए एक विस्तृत रणनीति तैयार की है। वही रणनीति आरोपी और अपीलकर्ता द्वारा अपनाई जाती है।’’

अदालत ने कहा कि पुणे में 2017 एल्गार परिषद सम्मेलन का इस्तेमाल प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) के साथ दिल्ली में काम करने वाले अपने कार्यकर्ताओं के माध्यम से भूमिगत संपर्क स्थापित करने के लिए किया गया था, जिसमें बाबू भी शामिल थे।

पीठ ने कहा, ‘‘अपीलकर्ता प्रतिबंधित संगठन भाकपा (माओवादी) पार्टी और प्रतिबंधित ‘रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट’ (आरडीएफ) की गतिविधियों में पूरी तरह से शामिल था।’’

अदालत ने बाबू की इस दलील को भी मानने से इनकार कर दिया कि वर्तमान मामले में कोई आतंकवादी कृत्य नहीं किया गया था। उसने कहा, ‘‘आतंकवादी संगठन की मुख्य गतिविधियों में शामिल होने के इस स्तर पर अपीलकर्ता के खिलाफ पर्याप्त सामग्री है।’’

एचसी ने कहा कि बाबू ने आतंकवादी संगठन की गतिविधियों में विशेषज्ञता हासिल की और अन्य आरोपियों के बीच पत्राचार से पता चला कि वह आतंकवादी संगठन का एक भरोसेमंद सदस्य था जिसे महत्वपूर्ण कार्य सौंपा जा सकता है।

मामले की जांच कर रहे राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने बाबू पर प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) के नेताओं के निर्देश पर माओवादी गतिविधियों एवं विचारधारा का प्रचार करने के षड्यंत्र में शामिल होने का आरोप लगाया है।

बाबू को इस मामले में 28 जुलाई 2020 में गिरफ्तार किया गया था और फिलहाल वह नवी मुंबई की तलोजा जेल में बंद हैं।

उन्होंने इस साल जून में विशेष एनआईए अदालत के एक आदेश को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जिसने इस साल की शुरुआत में उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी। बाबू ने अपनी याचिका में कहा कि विशेष अदालत के इस आदेश में ‘‘त्रुटि’’ है कि उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया अपराध से जुड़ी सामग्री मिली है।

अधिवक्ता युग चौधरी और पयोशी रॉय के माध्यम से दायर अपनी याचिका में, बाबू ने कहा कि एनआईए ने मामले में सबूत के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश का उल्लेख करने वाले एक पत्र का हवाला दिया था, लेकिन कथित पत्र उन पर अभियोग नहीं लगाता।

याचिका में कहा गया है कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि वह भारत के खिलाफ असंतोष पैदा करने के लिए गतिविधियों का समर्थन करते थे या ऐसा करने का इरादा रखते थे।

एनआईए ने बाबू की जमानत याचिका का विरोध किया है। एनआईए ने कहा कि बाबू नक्सलवाद को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेते थे और सरकार को सत्ता से हटाना चाहते थे।

एनआईए की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) अनिल सिंह ने अदालत से कहा था कि बाबू प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा (माओवादी) के सदस्य थे और उनके लैपटॉप से अभियोजन को मिली सामग्री यह दर्शाती है कि वह इस मामले के अन्य आरोपियों के लगातार संपर्क में थे।

केंद्रीय एजेंसी के वकील ने कहा कि बाबू नक्सलवाद का प्रचार एवं विस्तार करना चाहते थे और भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने के षड्यंत्र में शामिल थे। सिंह ने अदालत से कहा कि वह और अन्य आरोपी सशस्त्र संघर्ष के जरिए ‘‘जनता सरकार’’ बनाना चाहते थे।

एएसजी ने दलील दी कि बाबू प्रतिबंधित संगठन के अन्य सदस्यों को फोन टैपिंग से बचने का प्रशिक्षण भी देते थे।

(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)

Share Now

\