देश की खबरें | वकील को जिम्मेदार नहीं ठहरायें, वादी अपने मामले के लिए जिम्मेदार: दिल्ली उच्च न्यायालय

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. दिल्ली उच्च न्यायालय ने अदालत पहुंचने में लापरवाही या देरी के लिए वकील को दोषी ठहराने की परिपाटी को लेकर पुरजोर असहमति जताते हुए कहा है कि किसी वकील को मुकदमा लड़ने के लिए वकालतनामा दे देने मात्र से कोई वादी अपने मामले पर नजर रखने की सारी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो जाता।

नयी दिल्ली, 30 दिसंबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने अदालत पहुंचने में लापरवाही या देरी के लिए वकील को दोषी ठहराने की परिपाटी को लेकर पुरजोर असहमति जताते हुए कहा है कि किसी वकील को मुकदमा लड़ने के लिए वकालतनामा दे देने मात्र से कोई वादी अपने मामले पर नजर रखने की सारी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो जाता।

न्यायमूर्ति सी हरिशंकर और न्यायमूर्ति अनूप कुमार मेंदीरत्ता की पीठ ने कहा कि याचिका दायर करने में देरी पर स्पष्टीकरण मांगते हुए विधिज्ञ परिषद में शिकायत दर्ज कराना आसान है, लेकिन वादी को पूरी अवधि के दौरान वकील के संपर्क में रहने के "स्वीकार्य और पुख्ता" सबूत दिखाने चाहिए तथा साथ ही यह साबित करना होगा कि उसे गुमराह किया गया।

पीठ ने 18 दिसंबर को अपने फैसले में कहा, ‘‘अदालत का रुख करने में लापरवाही का बोझ वकील के कंधों पर डालने की प्रथा... ऐसी परिस्थितियों में विधिज्ञ परिषद के समक्ष शिकायत दर्ज कराना और देरी के लिए स्पष्टीकरण मांगना आसान है। हम इसकी निंदा करते हैं। एक बार जब मामला वकील को सौंप दिया जाता है तो वादी मामले पर नजर रखने की सारी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो जाता।’’

अदालत ने मामले को देख रहे वकील पर दोष मढ़ने की "अस्वस्थ परिपाटी" को खारिज कर दिया।

पीठ एक सेवा विवाद में छह साल की देरी के बाद केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के आदेश के खिलाफ दी गई चुनौती पर विचार कर रही थी।

याचिकाकर्ता ने सोहना के एक "दूरस्थ गांव" में एक सामाजिक रूप से वंचित और अशिक्षित परिवार से होने का दावा किया और अदालत से इस आधार पर देरी को माफ करने का अनुरोध किया कि उसके मामले के खारिज होने के बाद उसने एक वकील से संपर्क किया, जिसने उसे फर्जी तारीखें देकर गुमराह किया।

याचिकाकर्ता ने कहा कि चूंकि वह वित्तीय कठिनाइयों से पीड़ित था, इसलिए वह वकील द्वारा दी गई तारीखों पर व्यक्तिगत रूप से मामले को आगे बढ़ाने में असमर्थ था और जब वह अगस्त में वकील से मिलने गया, तो उसने पाया कि उच्च न्यायालय में कोई मामला दायर नहीं किया गया था और उसने जिला बार एसोसिएशन, गुड़गांव में शिकायत दर्ज कराई।

याचिका खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि वह उसके स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं है।

न्यायालय ने कहा, ‘‘अदालत को इस बात से संतुष्ट होना होगा कि वास्तव में वकील मुवक्किल को गुमराह कर रहा है और यही कारण है कि अदालत में आने में देरी हुई। बेशक, यदि अदालत संतुष्ट है और एक निर्दोष वादी को एक वकील द्वारा गुमराह किया गया है, तो अदालत अन्याय नहीं होने देगी और उचित मामले में देरी को माफ कर देगी।’’

(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)

Share Now

संबंधित खबरें

\