देश की खबरें | कानून का विकास ‘बार’ और पीठ के सहयोगात्मक प्रयास का एक प्रतिफल है : न्यायमूर्ति खानविलकर
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश ए. एम. खानविलकर ने शुक्रवार को कहा कि उनका यह दृढ़ता से मानना है कि कानून का विकास ‘बार’ और पीठ (बेंच) के सहयोगात्मक प्रयास का एक प्रतिफल है।
नयी दिल्ली, 29 जुलाई उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश ए. एम. खानविलकर ने शुक्रवार को कहा कि उनका यह दृढ़ता से मानना है कि कानून का विकास ‘बार’ और पीठ (बेंच) के सहयोगात्मक प्रयास का एक प्रतिफल है।
न्यायमूर्ति खानविलकर, ‘आधार’ मामले में फैसला और 2002 के गुजरात दंगों में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी तथा 63 अन्य को विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा क्लीन चिट दिये जाने को बरकरार रखने सहित कई महत्वपूर्ण फैसले सुनाने वाली पीठ का हिस्सा रहे हैं।
न्यायमूर्ति खानविलकर दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश हैं, जिन्होंने धन शोधन रोकथाम कानून के तहत गिरफ्तार करने, संपत्ति कुर्क करने, तलाशी लेने और जब्ती करने के प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की शक्तियों को कायम रखने वाले एक हालिया फैसले को लिखा था।
शीर्ष न्यायालय में छह साल से अधिक के अपने कार्यकाल के बाद वह शुक्रवार को सेवानिवृत्त हो गये।
उन्हें विदाई देने के लिए सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में न्यायाधीश ने अपने पेशेवर गुरुओं, कुछ पूर्व न्यायाधीशों और बार के उन वरिष्ठ सदस्यों का शुक्रिया अदा किया जिन्होंने कानून के पेश में उनका मार्गदर्शन किया।
उन्होंने कार्यक्रम में बार के सदस्यों को दिये अपने संदेश में कहा कि वह न्याय के क्षेत्र से चार दशकों से जुड़े हुए हैं। उन्होंने पहले वकील के तौर पर 16 साल प्रैक्टिस की और फिर 22 से अधिक समय तक न्यायाधीश के रूप में सेवा दी।
कार्यक्रम में प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमण, शीर्ष न्यायालय के अन्य न्यायाधीश और बार के सदस्य भी शरीक हुए।
न्यायमूर्ति खानविलकर ने कहा, ‘‘मेरा दृढ़ता से मानना है कि कानून का विकास बार और पीठ के सहयोगात्मक प्रयास का एक प्रतिफल है।’’
न्यायमूर्ति खानविलकर शीर्ष न्यायालय की कई संविधान पीठ का हिस्सा रहे हैं जिसने अहम फैसले दिये।
एक ऐतिहासिक फैसला सितंबर 2018 में दिया गया था जिसमें शीर्ष न्यायालय ने पुरुषों के समलैंगिक यौन संबंध को अपराध की श्रेणी में रखने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को अतार्किक, बचाव नहीं करने योग्य और मनमाना करार दिया था।
वह केंद्र की महत्वाकांक्षी योजना ‘आधार’ को संवैधानिक रूप से वैध करार देने वाली संविधान पीठ का हिस्सा रहे थे।
उनका जन्म 30 जुलाई 1957 को पुणे, महाराष्ट्र में हुआ था और उन्होंने मुंबई के एक लॉ कॉलेज से एलएलबी की उपाधि ली थी।
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)