ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने ऐलान किया है कि सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स के नकारात्मक प्रभाव की जांच की जाएगी. सरकार का कहना है कि सोशल मीडिया की पहुंच बहुत ज्यादा है और वे फैसला कर रहे हैं कि लोग क्या देखें.पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया कंपनियों के साथ ऑस्ट्रेलिया की तनातनी बढ़ी है. हाल ही में एक हिंसक वीडियो को सोशल मीडिया साइट एक्स से हटाने को लेकर सरकार और कंपनी के बीच खासी नोकझोंक हुई थी.
सरकार को लग रहा है कि लोग ऑनलाइन क्या देखेंगे, यह फैसला कंपनियां कर रही हैं और सामग्री पर किसी तरह की लगाम नहीं है. इस बारे में जांच के लिए अब एक संसदीय समिति बनाने का फैसला किया गया है.
शुक्रवार को देश के प्रधानमंत्री एंथनी अलबानीजी ने कहा, "बहुत सारे मुद्दे हैं. चाहे वह घरेलू हिंसा का मुद्दा हो या युवाओं के कट्टरपंथीकरण का, हमेशा कुछ ना कुछ सामने आता रहता है और बार-बार उसमें सोशल मीडिया की भूमिका दिखाई देती है. वे बहुत सकारात्मक भी हो सकते हैं लेकिन उनका नकारात्मक असर भी है.”
ट्विटर से झगड़ा
अल्बानीजी सरकार एक्स के मालिक ईलॉन मस्क के साथ एक कानूनी लड़ाई भी लड़ रही है. पिछले महीने 16 वर्षीय एक किशोर ने एक चर्च में दो पादरियों पर चाकू से हमला कर दिया था. इस हमले को पुलिस ने एक आतंकवादी घटना बताया. इस किशोर ने पादरी मार मारी इमानुएल के सिर और सीने पर चाकू से हमला किया था. उस घटना के बाद इमानुएल के अनुयायियों ने विरोधस्वरूप हिंसक प्रदर्शन किया और पुलिसकर्मियों पर भी हमले किए.
इस घटना के कई वीडियो सोशल मीडिया पर साझा किए गए. ऑस्ट्रेलियाई अधिकारियों का कहना है कि ये वीडियो और तस्वीरें समुदाय में तनाव बढ़ा रही थीं. लेकिन मस्क ने ये वीडियो एक्स से हटाने से इनकार कर दिया. बाद में अदालती आदेश पर वीडियो सिर्फ ऑस्ट्रेलिया के सर्वर से हटाए गए.
मस्क ने इस आदेश के खिलाफ अदालत में अपील की है. अरबपति उद्योगपति मस्क ने एक्स पर लिखा, "हमारी चिंता ये है कि किसी एक देश को पूरी दुनिया के लिए सामग्री पर पाबंदी लगाने दी गई तो किसी देश को पूरे इंटरनेट पर नियंत्रण करने से कैसे रोका जा सकेगा. ई-सेफ्टी कमीशन यही कर रहा है.”
इससे पहले ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीजी ने मस्क को एक ‘अहंकारी अरबपति' बताते हुए कहा था कि इन तस्वीरों और वीडियो के कारण लोगों को पहुंच रहे दुख के प्रति मस्क अंधे हो गये हैं.
स्थानीय समाचार चैनल एबीसी को दिए एक इंटरव्यू में अल्बानीजी ने कहा, "यह अहंकारी अरबपति सोचता है कि वह ना सिर्फ कानून से ऊपर है बल्कि शालीनता की हदों का भी सम्मान नहीं कर रहा है. हम उसका सामना करने के लिए हर जरूरी उपाय करेंगे."
उन्होंने कहा कि एक हिंसक वीडियो को अपने प्लेटफॉर्म पर रखने के लिए कोर्ट जाने का विचार ही दिखाता है कि मस्क असलियत से कितनी दूर हैं.
बाकी साइट भी निशाने पर
संसद की संयुक्त समिति की जांच के दायरे में मेटा भी है, जिसने हाल ही में देश में समाचारों के प्रसार के नए नियम लागू कर दिए हैं. मेटा ने कहा है कि वह अब खबरों के लिए स्थानीय मीडिया संस्थानों को भुगतान नहीं करेगी.
देश की संचार मंत्री मिशेल रोलैंड ने कहा कि संसद को यह समझने की जरूरत है कि सोशल मीडिया कंपनियां कैसे "स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जरूरी सामग्री के प्रसार को बढ़ाने या घटाने और असामाजिक और जन-सुरक्षा के लिए खतरनाक सामग्री के बारे में फैसले करती हैं.”
रोलैंड ने कहा, "यह जांच सांसदों को इन कंपनियों की बारीकी से जांच करने के लिए अवसर और संसाधान उपलब्ध कराएगी. उसके बाद समिति ऐसे कदमों की सिफारिश करेगी, जिनसे इन कंपनियों को अपने फैसलों के लिए जवाबदेह बनाया जा सके.”
दुनियाभर में चिंता
सोशल मीडिया कंपनियों के बर्ताव और जवाबदेही को लेकर पूरी दुनिया में चिंता जताई जा रही है. अमेरिका से लेकर यूरोप और एशिया तक तमाम देशों की सरकारों ने इन कंपनियों की जवाबदेही तय करने के लिए कदम उठाए हैं.
अमेरिका में हाल ही में कई कंपनियों के प्रमुखों को संसद में पेश होना पड़ा और सांसदों के तीखे सवालों के जवाब देने पड़े. अमेरिकी सरकार टिकटॉक को तो चेतावनी भी जारी कर चुकी है. यूरोप में कई बार फेसबुक और गूगल पर जुर्माने लगाए जा चुके हैं. हालांकि अब तक इन जुर्मानों का दायरा आर्थिक और वित्तीय नियमों का उल्लंघन ही रहा है लेकिन अब कंपनियों की सामाजिक जवाबदेही का मुद्दा भी जोर पकड़ रहा है.
हाल ही में सिडनी की न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी के लेक्चरर डॉ. कॉनर क्लून ने कंपनियों की जवाबदेही पर एक अध्ययन किया था. अपने शोध में उन्होंने कंपनियों की सामग्री की निगरानी की नीतियों का अध्ययन किया.
इस बारे में डॉ. क्लून ने लिखा, "सोशल मीडिया कंपनियां इस बात को लेकर अहम मोड़ पर हैं कि वे अपने मंच पर साझा की जाने वाली सामग्री को किस तरह नियंत्रित करती हैं. सामग्री पर नजर रखने वाले उनके एल्गोरिदम बेहतर हो रहे हैं और कुछ ही सालों में वे इतने योग्य हो जाएंगे कि उल्लंघन करने वाली किसी भी सामग्री को पकड़ सकें. उनकी सटीकता ज्यादा नहीं तो 95 फीसदी तक होगी. यह एक बड़ी उपलब्धि है. लेकिन इससे कंपनियों को अपने मंच पर साझा की गई सामग्री पर नियंत्रण करने में ही मदद मिलेगी. इससे नियमों का उल्लंघन करने वालों के व्यवहार को बदल पाने में कोई खास मदद नहीं मिलेगी.”
विवेक कुमार (रॉयटर्स)
रोलैंड ने कहा, "यह जांच सांसदों को इन कंपनियों की बारीकी से जांच करने के लिए अवसर और संसाधान उपलब्ध कराएगी. उसके बाद समिति ऐसे कदमों की सिफारिश करेगी, जिनसे इन कंपनियों को अपने फैसलों के लिए जवाबदेह बनाया जा सके.”
दुनियाभर में चिंता
सोशल मीडिया कंपनियों के बर्ताव और जवाबदेही को लेकर पूरी दुनिया में चिंता जताई जा रही है. अमेरिका से लेकर यूरोप और एशिया तक तमाम देशों की सरकारों ने इन कंपनियों की जवाबदेही तय करने के लिए कदम उठाए हैं.
अमेरिका में हाल ही में कई कंपनियों के प्रमुखों को संसद में पेश होना पड़ा और सांसदों के तीखे सवालों के जवाब देने पड़े. अमेरिकी सरकार टिकटॉक को तो चेतावनी भी जारी कर चुकी है. यूरोप में कई बार फेसबुक और गूगल पर जुर्माने लगाए जा चुके हैं. हालांकि अब तक इन जुर्मानों का दायरा आर्थिक और वित्तीय नियमों का उल्लंघन ही रहा है लेकिन अब कंपनियों की सामाजिक जवाबदेही का मुद्दा भी जोर पकड़ रहा है.
हाल ही में सिडनी की न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी के लेक्चरर डॉ. कॉनर क्लून ने कंपनियों की जवाबदेही पर एक अध्ययन किया था. अपने शोध में उन्होंने कंपनियों की सामग्री की निगरानी की नीतियों का अध्ययन किया.
इस बारे में डॉ. क्लून ने लिखा, "सोशल मीडिया कंपनियां इस बात को लेकर अहम मोड़ पर हैं कि वे अपने मंच पर साझा की जाने वाली सामग्री को किस तरह नियंत्रित करती हैं. सामग्री पर नजर रखने वाले उनके एल्गोरिदम बेहतर हो रहे हैं और कुछ ही सालों में वे इतने योग्य हो जाएंगे कि उल्लंघन करने वाली किसी भी सामग्री को पकड़ सकें. उनकी सटीकता ज्यादा नहीं तो 95 फीसदी तक होगी. यह एक बड़ी उपलब्धि है. लेकिन इससे कंपनियों को अपने मंच पर साझा की गई सामग्री पर नियंत्रण करने में ही मदद मिलेगी. इससे नियमों का उल्लंघन करने वालों के व्यवहार को बदल पाने में कोई खास मदद नहीं मिलेगी.”
विवेक कुमार (रॉयटर्स)