देश की खबरें | पड़ोसी राज्यों में एक दिन में पराली जलाने की सर्वाधिक घटना के कारण दिल्ली की वायु गुणवत्ता ‘खराब’

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एनडीआरएफ/प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: ANI)

नयी दिल्ली, 18 अक्टूबर राष्ट्रीय राजधानी में रविवार को वायु गुणवत्ता ‘‘खराब’’ श्रेणी में दर्ज की गई क्योंकि पड़ोसी राज्यों में इस मौसम में एक दिन में पराली जलाने की सर्वाधिक 1230 घटनाएं दर्ज की गईं।

दिल्ली के वातावरण में ‘पीएम 2.5’ कणों में पराली जलाने की हिस्सेदारी 17 फीसदी है। शनिवार को यह 19 फीसदी थी, शुक्रवार को 18 फीसदी, बुधवार को करीब एक फीसदी और मंगलवार, सोमवार और रविवार को करीब तीन फीसदी थी। एक केंद्रीय एजेंसी ने यह जानकारी दी।

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महानगर में 24 घंटे के दौरान औसत गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 254 दर्ज किया गया। शनिवार को 24 घंटे का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक 287 दर्ज किया गया था। शुक्रवार को यह 239, बृहस्पतिवार को 315 दर्ज था जो इस वर्ष 12 फरवरी के बाद से सबसे ज्यादा खराब है। उस दिन एक्यूआई 320 था।

शून्य और 50 के बीच एक्यूआई को 'अच्छा', 51 और 100 के बीच 'संतोषजनक', 101 और 200 के बीच ‘मध्यम’, 201 और 300 के बीच 'खराब', 301 और 400 के बीच 'बहुत खराब' और 401 और 500 के बीच को 'गंभीर' माना जाता है।

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मौसम विज्ञान विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि दिन के वक्त उत्तरपश्चिमी हवाएं चल रही हैं और पराली जलाने से पैदा होने वाले प्रदूषक तत्वों को अपने साथ ला रही है। रात में हवा के स्थिर होने तथा तापमान घटने की वजह से प्रदूषक तत्व जमा हो जाते हैं।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की ‘वायु गुणवत्ता निगरानी एवं मौसम पूर्वानुमान तथा अनुसंधान प्रणाली’ (सफर) के मुताबिक हरियाणा, पंजाब और नजदीकी सीमा पर स्थित क्षेत्रों में शनिवार को पराली जलाने की 1230 घटनाएं हुईं, जो इस मौसम में एक दिन में सर्वाधिक है।

इसमें बताया गया कि ‘पीएम 2.5’ प्रदूषक तत्वों में पराली जलाने की हिस्सेदारी शनिवार को करीब 17 फीसदी रही।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की वायु गुणवत्ता पूर्व चेतावनी प्रणाली ने कहा है कि वायु संचार सूचकांक 11,500 वर्गमीटर प्रति सेकेंड रहने की उम्मीद है जो प्रदूषक तत्वों के बिखरने के लिए अनुकूल है।

वायु संचार सूचकांक छह हजार से कम होने और औसत वायु गति दस किमी प्रतिघंटा से कम होने पर प्रदूषक तत्वों के बिखराव के लिए प्रतिकूल स्थिति होती है।

प्रणाली की ओर से कहा गया कि राष्ट्रीय राजधानी की वायु गुणवत्ता पर पराली जलाने का प्रभाव सोमवार तक ‘‘काफी बढ़ सकता है।’’

अधिकारियों ने शनिवार को कहा था कि पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष इस मौसम में अब तक पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं अधिक हुई हैं जिसकी वजह धान की समयपूर्व कटाई और कोरोना वायरस महामारी के कारण खेतों में काम करने वाले श्रमिकों की अनुपलब्धता है।

इससे पहले केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि प्रदूषण की समस्या का एक दिन में समाधान नहीं किया जा सकता है और हर कारक से निपटने के लिए लगातार प्रयास की जरूरत है।

फेसबुक लाइव कार्यक्रम में लोगों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि देश में वायु प्रदूषण के बड़े कारक यातायात, उद्योग, कचरा, धूल, पराली आदि हैं।

केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने शुक्रवार को कहा था कि दिल्ली में पिछले साल की तुलना में इस साल सितंबर के बाद से प्रदूषकों के व्यापक स्तर पर फैलने के लिये मौसमी दशाएं ''अत्यधिक प्रतिकूल'' रही हैं।

बोर्ड के सदस्य सचिव प्रशांत गार्गव ने उम्मीद जताई थी कि इस साल कम क्षेत्र में गैर बासमती धान की खेती होने के चलते पराली जलाने की घटना 2019 की तुलना में इस साल कम होगी।

उल्लेखनीय है कि गैर बासमती धान की पराली चारे के रूप में बेकार मानी जाती है क्योंकि इसमें ‘‘सिलिका’’ की अधिक मात्रा होती है और इसलिये किसान इसे जला देते हैं।

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