नयी दिल्ली, 24 जनवरी दिल्ली उच्च न्यायालय ने अधिक पारदर्शिता और समावेशिता सुनिश्चित करने तथा न्याय तक पहुंच को बढ़ावा देने के लिए कार्यवाही के लाइव प्रसारण और वीडियो रिकॉर्डिंग से जुड़े नियमों को अधिसूचित किया है।
दिल्ली के उपराज्यपाल की पूर्व स्वीकृति से उच्च न्यायालय द्वारा तैयार किए ‘दिल्ली उच्च न्यायालय की कार्यवाही के लाइव प्रसारण और रिकॉर्डिंग नियम-2022’ को 13 जनवरी को राजपत्र में प्रकाशित किया गया था और तभी से ये प्रभाव में आ गये।
नियमों के अनुसार, लाइव प्रसारण का मतलब लाइव टेलीविजन लिंक, वेबकास्ट और किसी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम या अन्य सुविधाओं से किए जाने वाले ऑडियो-वीडियो प्रसारण से है, जिसके जरिये कोई भी व्यक्ति इन नियमों के तहत मिली अनुमति के हिसाब से अदालत की कार्यवाही देख सकता है।
ये नियम दिल्ली उच्च न्यायालय के अलावा उसके निगरानी क्षेत्र में आने वाली विभिन्न अदालतों और न्यायाधिकरणों पर भी लागू होंगे। इनमें स्पष्ट किया गया है कि रिकॉर्डिंग का तात्पर्य इलेक्ट्रॉनिक स्वरूप में सहेजे गए ऑडियो या वीडियो डेटा से है, फिर चाहे उसे लाइव प्रसारित किया जा रहा हो या नहीं।
नियमों में कहा गया है कि विवाह, बच्चे को गोद लेने, बच्चों की हिरासत, यौन अपराधों, महिलाओं के खिलाफ लैंगिक हिंसा से जुड़े मामलों तथा यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम, किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम और गर्भावस्था का चिकित्सकीय समापन अधिनियम के तहत दर्ज मामलों को छोड़कर लगभग सभी मामलों की अदालती कार्यवाही का लाइव प्रसारण किया जाएगा।
नियमों के मुताबिक, अगर किसी पक्ष को मुकदमे के लाइव प्रसारण पर कोई आपत्ति है, तो निर्धारित फॉर्म को भरकर यह मुद्दा उठाया जा सकता है, जिस पर संबंधित पीठ अंतिम फैसला लेगी।
इनमें कहा गया है, “कार्यवाही या उसके किसी हिस्से के लाइव प्रसारण की अनुमति देने के बारे में अंतिम निर्णय संबंधित पीठ लेगी। हालांकि, पीठ का निर्णय एक खुली और पारदर्शी न्यायिक प्रक्रिया के सिद्धांत द्वारा निर्देशित होगा। पीठ का फैसला न्यायोचित नहीं होगा, बशर्ते कि मतभेद की स्थिति में मामले को अंतिम निर्णय के लिए बड़ी पीठ को भेजा जा सकता है।”
नियमों के अनुसार, अगर पीठ में शामिल न्यायाधीश आदेश/मौखिक निर्णय को लिखवाते समय लाइव प्रसारण रोकने के इच्छुक हैं, तो उस अवधि के दौरान लाइव प्रसारण रोक दिया जाएगा और कंप्यूटर के मॉनिटर पर ‘ऑर्डर-डिक्टेशन इन प्रोग्रेस’ (आदेश लिखने की प्रक्रिया जारी है) संदेश प्रदर्शित किया जाएगा।
नियमों में कहा गया है कि प्रसारण में 10 मिनट की देरी होगी, जिसे अदालत के निर्देश के अनुसार बदला जा सकता है और इसे पीठ द्वारा तय किए गए निर्धारित स्थान से किया जाएगा।
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)
देश की खबरें | दिल्ली उच्च न्यायालय ने कार्यवाही के लाइव प्रसारण से जुड़े नियम अधिसूचित किए
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. दिल्ली उच्च न्यायालय ने अधिक पारदर्शिता और समावेशिता सुनिश्चित करने तथा न्याय तक पहुंच को बढ़ावा देने के लिए कार्यवाही के लाइव प्रसारण और वीडियो रिकॉर्डिंग से जुड़े नियमों को अधिसूचित किया है।
नयी दिल्ली, 24 जनवरी दिल्ली उच्च न्यायालय ने अधिक पारदर्शिता और समावेशिता सुनिश्चित करने तथा न्याय तक पहुंच को बढ़ावा देने के लिए कार्यवाही के लाइव प्रसारण और वीडियो रिकॉर्डिंग से जुड़े नियमों को अधिसूचित किया है।
दिल्ली के उपराज्यपाल की पूर्व स्वीकृति से उच्च न्यायालय द्वारा तैयार किए ‘दिल्ली उच्च न्यायालय की कार्यवाही के लाइव प्रसारण और रिकॉर्डिंग नियम-2022’ को 13 जनवरी को राजपत्र में प्रकाशित किया गया था और तभी से ये प्रभाव में आ गये।
नियमों के अनुसार, लाइव प्रसारण का मतलब लाइव टेलीविजन लिंक, वेबकास्ट और किसी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम या अन्य सुविधाओं से किए जाने वाले ऑडियो-वीडियो प्रसारण से है, जिसके जरिये कोई भी व्यक्ति इन नियमों के तहत मिली अनुमति के हिसाब से अदालत की कार्यवाही देख सकता है।
ये नियम दिल्ली उच्च न्यायालय के अलावा उसके निगरानी क्षेत्र में आने वाली विभिन्न अदालतों और न्यायाधिकरणों पर भी लागू होंगे। इनमें स्पष्ट किया गया है कि रिकॉर्डिंग का तात्पर्य इलेक्ट्रॉनिक स्वरूप में सहेजे गए ऑडियो या वीडियो डेटा से है, फिर चाहे उसे लाइव प्रसारित किया जा रहा हो या नहीं।
नियमों में कहा गया है कि विवाह, बच्चे को गोद लेने, बच्चों की हिरासत, यौन अपराधों, महिलाओं के खिलाफ लैंगिक हिंसा से जुड़े मामलों तथा यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम, किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम और गर्भावस्था का चिकित्सकीय समापन अधिनियम के तहत दर्ज मामलों को छोड़कर लगभग सभी मामलों की अदालती कार्यवाही का लाइव प्रसारण किया जाएगा।
नियमों के मुताबिक, अगर किसी पक्ष को मुकदमे के लाइव प्रसारण पर कोई आपत्ति है, तो निर्धारित फॉर्म को भरकर यह मुद्दा उठाया जा सकता है, जिस पर संबंधित पीठ अंतिम फैसला लेगी।
इनमें कहा गया है, “कार्यवाही या उसके किसी हिस्से के लाइव प्रसारण की अनुमति देने के बारे में अंतिम निर्णय संबंधित पीठ लेगी। हालांकि, पीठ का निर्णय एक खुली और पारदर्शी न्यायिक प्रक्रिया के सिद्धांत द्वारा निर्देशित होगा। पीठ का फैसला न्यायोचित नहीं होगा, बशर्ते कि मतभेद की स्थिति में मामले को अंतिम निर्णय के लिए बड़ी पीठ को भेजा जा सकता है।”
नियमों के अनुसार, अगर पीठ में शामिल न्यायाधीश आदेश/मौखिक निर्णय को लिखवाते समय लाइव प्रसारण रोकने के इच्छुक हैं, तो उस अवधि के दौरान लाइव प्रसारण रोक दिया जाएगा और कंप्यूटर के मॉनिटर पर ‘ऑर्डर-डिक्टेशन इन प्रोग्रेस’ (आदेश लिखने की प्रक्रिया जारी है) संदेश प्रदर्शित किया जाएगा।
नियमों में कहा गया है कि प्रसारण में 10 मिनट की देरी होगी, जिसे अदालत के निर्देश के अनुसार बदला जा सकता है और इसे पीठ द्वारा तय किए गए निर्धारित स्थान से किया जाएगा।
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