खेल की खबरें | बारह बरस की उम्र में तीरंदाजी शुरू करने वाली दीपिका ने संघर्ष और जज्बे से पायी है कामयाबी
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on Sports at LatestLY हिन्दी. ओलंपिक तीरंदाजी में तीसरी बार देश का प्रतिनिधित्व करने की तैयारी कर रही दीपिका कुमारी को शुरुआती दिनों में काफी संघर्ष करना पड़ा था।
खरसावां (झारखंड) , 21 जुलाई ओलंपिक तीरंदाजी में तीसरी बार देश का प्रतिनिधित्व करने की तैयारी कर रही दीपिका कुमारी को शुरुआती दिनों में काफी संघर्ष करना पड़ा था।
तोक्यो ओलंपिक में विश्व की नंबर एक तीरंदाज के तौर पर भाग ले रही दीपिका ने 12 साल की उम्र में इस खेल से जुड़ने का फैसला किया था। ट्रायल के बाद हालांकि उन्हें अकादमी में जगह नहीं मिली लेकिन उन्होंने तीन महीने में खुद को साबित करने की चुनौती ली और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।
झारखंड के चांडिल-गम्हरिया वन क्षेत्र में स्थित छोटे से शहर खरसावां की अर्जुन मुंडा अकादमी से सफर शुरू करने वाली दीपिका के सपने जमशेदपुर स्थित टाटा तीरंदाजी अकादमी (टीएए) में आने के बाद सच होने लगे। बाद में टीएए उनका दूसरा घर बन गया।
दीपिका की तीरंदाजी की कहानी 2006 में शुरू हुई जब वह अपने दोस्त और रिश्ते में बहन दीप्ति कुमारी के लोहरदगा स्थित घर गयी थी। दीप्ति को तीरंदाजी करते देख उन्होंने भी इस खेल से जुड़ने का फैसला किया।
उस समय रांची के रातू में रहने वाली महज 12 साल की दीपिका खेलों से जुड़कर परिवार की आर्थिक मदद करना चाहती थी। उनके पिता ऑटो-चालक और मां नर्स का काम करती थी।
लोहरदगा से रांची लौटने के बाद उनके पिता शिवनारायण और मां गीता माहतो उन्हें अर्जुन मुंडा अकादमी में लेकर गये।
अकादमी की संचालक और मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा ने दीपिका को देखकर कहा, ‘‘ तुमसे तो भारी धनुष है, तुमसे यह सब नहीं होगा।’’
दीपिका के माता-पिता की जिद्द पर वह हालांकि ट्रायल के लिए तैयार हो गयी। जिसमें दीपिका को निराशा हाथ लगी।
सरायकेला-खरसावां तीरंदाजी संघ के सचिव सुमंत चंद्र मोहंती ने कहा कि दीपिका के आवेदन को उस समय के कोच बी श्रीनिवास राव और हिमांशु मोहंती ने खारिज कर दिया था।
मोहंती ने खरसावां से पीटीआई- को बताया, ‘‘दीपिका ने इसके बाद फिर से मीरा से मुलाकात की और तीन महीने में खुद का साबित करने का वादा किया। इसके बाद मीरा जी ने अधिकारी की हैसियत से पत्र लिख कर दीपिका के नामांकन के लिए कहा।’’
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