जरुरी जानकारी | बीते सप्ताह खाद्य तेल, तिलहन कीमतों में गिरावट का रुख

नयी दिल्ली, 26 मार्च विदेशी बाजारों में खाद्य तेलों (विशेषकर सूरजमुखी और सोयाबीन तेल) के दाम टूटने के बीच बीते सप्ताह दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में खाद्य तेल, तिलहन कीमतों में गिरावट का रुख कायम रहा। सूरजमुखी तेल में इस गिरावट की वजह से लगभग सारे देशी तेल-तिलहनों के दाम पर दबाव रहा और सरसों, मूंगफली तेल-तिलहन, सोयाबीन तेल, कच्चा पामतेल (सीपीओ) एवं पामोलीन तथा बिनौला तेल कीमतें हानि दर्शाती बंद हुईं। किसानों द्वारा सोयाबीन की सस्ते दामों पर बिक्री नहीं करने से सोयाबीन तिलहन के दाम पूर्वस्तर पर बने रहे।

बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि समीक्षाधीन सप्ताह से पहले जिस सोयाबीन तेल का दाम 1,160 डॉलर प्रति टन हुआ करता था वह 100 डॉलर घटकर 1,060 डॉलर प्रति टन रह गया। इसी प्रकार सूरजमुखी तेल का दाम पहले के 1,070-1,080 डॉलर प्रति टन से घटकर 950 डॉलर प्रति टन रह गया। लगभग 10 माह पूर्व जिस सूरजमुखी तेल का दाम का अंतर सीपीओ से 350 डॉलर का था वह पहली बार सीपीओ से प्रति टन 10 डॉलर नीचे हो गया है। 31 मार्च तक सूरजमुखी और सोयाबीन तेल का शुल्कमुक्त आयात किया जा सकता है लेकिन कम आय वर्ग के बीच उपभोग वाले पामोलीन पर 13.75 प्रतिशत का आयात शुल्क लागू है।

सूत्रों ने कहा कि शुल्क-मुक्त आयात की कोटा व्यवस्था के तहत जनवरी महीने में 4.62 लाख टन सूरजमुखी तेल का आयात किया गया जबकि फरवरी में सूरजमुखी तेल का आयात 1.56 लाख टन का हुआ है। इसी कोटा व्यवस्था के तहत 31 मार्च तक करीब 10 लाख टन सूरजमुखी (सात लाख टन) और सोयाबीन (करीब 3 लाख टन) का आयात होना बाकी है।

सूत्रों ने कहा कि इतनी भारी मात्रा में किया गया आयात अगले चार महीनों की जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी है। मुश्किल यह है कि यह आयात ऐसे समय में हुआ है जब सरसों की फसल बाजार में आने लगी है और अक्ट्रबर की सोयाबीन पैदावार का स्टॉक इतना अधिक बचा है कि वह बाजार में खप नहीं रहा है। सूत्रों ने कहा कि सरसों की ताजा पैदावार आने के समय आमतौर पर पूरी क्षमता से काम करने वाली देश की खाद्य तेल पेराई मिलें अपनी क्षमता का 25 प्रतिशत ही उपयोग कर पा रही हैं। सरसों, सोयाबीन और बिनौला जैसे देशी तिलहनों की बाजार में खपत नहीं होने से खाद्य तेल कारोबारी और तेल मिलों ने जो बैंकों से कर्ज ले रखा है उसे लौटा पाना मुश्किल होता जा रहा है। इस तरह बैंकों का कर्ज डूबने का खतरा भी बढ़ रहा है।

सूरजमुखी तेल का भाव लगभग 10 महीने पहले के 200 रुपये लीटर से घटकर देश के बंदरगाह पर मात्र 73-74 रुपये प्रति लीटर रह गया है। ऐसे में अधिक लागत वाली देशी तिलहनों (देशी सूरजमुखी तेल का दाम 135 रुपये लीटर बैठता है) का खपना मुश्किल है।

सूत्रों ने कहा कि सरकार को तत्काल सीमा शुल्क या आयात शुल्क बढ़ाने के बारे में कोई फैसला करना होगा। इस फैसले में देरी देशी तेल-तिलहन उद्योग और किसानों के लिए भारी नुकसानदेह साबित हो सकती है। लेकिन खाद्य तेलों के दाम टूटने का लाभ उपभोक्ताओं को अभी नहीं मिल पा रहा है।

प्रमुख तेल संगठन सोपा ने भी सरकार से मांग की है कि पिछले कुछ महीनों में सूरजमुखी और सोयाबीन तेल के दाम में भारी गिरावट आई है और उसने देशी तिलहन किसानों के हित में सरकार से सस्ते आयातित खाद्य तेलों पर सीमा शुल्क बढ़ाने की मांग की है।

सूत्रों ने कहा कि शुल्कमुक्त आयातित तेल के अलावा भी आने वाले दिनों में आयात शुल्क या सीमा शुल्क बढाये जाने की संभावनाओं के बीच कारोबारी नरम तेलों का आयात करने के बाद बंदरगाह पर स्टॉक जमाकर दस्तावेज दाखिल कर रहे हैं ताकि सरकार के द्वारा शुल्क लगाये जाने की स्थिति में इन तेलों पर और शुल्क न देना पड़े। ये सारी परिस्थितियां देश के तेल-तिलहन उद्योग देश के तिलहन किसान के लिए खतरनाक है।

सूत्रों ने कहा कि अभी खाद्य तेल सस्ते हैं और ये देश के तेल- तिलहन उद्योग को बुरी हालत में ढकेलने में लगे हैं लेकिन अगर देश का तेल- तिलहन कारोबार लड़खड़ा गया और किसानों ने तिलहन बिजाई में रुचि कम कर दी, तो ऐसी परिस्थिति में अगर विदेशी कंपनियां इन्हीं खाद्य तेलों का दाम भरपूर मात्रा में बढ़ा दें तो हमारे पास क्या रास्ता होगा ? सूत्रों ने कहा कि यही सूरजमुखी तेल लगभग 10 महीने पहले 2,500 डॉलर प्रति टन के भाव बिक रहा था और तेल मिल नहीं रहा था अचानक क्या हुआ कि इस तेल के दाम घटकर 950 डॉलर रह गये।

देश को तेल-तिलहन मामले में आत्मनिर्भर बनाने और आयात पर निर्भरता कम करने के लिए हमें अपने देश का तिलहन उत्पादन बढ़ाने की ओर ध्यान देना होगा। सूत्रों ने कहा कि सस्ते आयात की मौजूदा स्थिति को काबू नहीं किया गया तो हमें मवेशियों और मुर्गीदाने के लिए खल एवं डीआयल्ड केक (डीओसी) कहां से मिलेगा?

सूत्रों के मुताबिक, पिछले सप्ताहांत के मुकाबले बीते सप्ताह सरसों दाने का थोक भाव 55 रुपये टूटकर 5,220-5,270 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। समीक्षाधीन सप्ताहांत में सरसों दादरी तेल 300 रुपये घटकर 10,650 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों पक्की घानी तेल का भाव 30 रुपये घटकर 1,680-1,750 रुपये और सरसों कच्ची घानी तेल की कीमत 30 रुपये घटकर 1,680-1,800 रुपये टिन (15 किलो) पर बंद हुईं।

सूत्रों ने कहा कि सस्ते दाम पर किसानों द्वारा काफी कम बिक्री करने की वजह से समीक्षाधीन सप्ताह में सोयाबीन दाने और लूज के थोक भाव भी क्रमश: पांच रुपये और 35 रुपये सुधरकर क्रमश: 5,205-5,355 रुपये और 4,965-5,015 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुए।

इसके उलट समीक्षाधीन सप्ताहांत में सोयाबीन दिल्ली, सोयाबीन इंदौर और सोयाबीन डीगम तेल के भाव क्रमश: 280 रुपये, 250 रुपये और 400 रुपये की जोरदार गिरावट के साथ क्रमश: 11,000 रुपये, 10,900 रुपये और 9,250 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।

समीक्षाधीन सप्ताह में मूंगफली तेल-तिलहनों कीमतों के भाव में भी थोड़ी गिरावट आई। मूंगफली तिलहन का भाव 15 रुपये टूटकर कर 6,765-6,825 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। समीक्षाधीन सप्ताह में मूंगफली तेल गुजरात 20 रुपये की हानि के साथ 16,580 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ जबकि मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड का भाव 20 रुपये की गिरावट के साथ 2,530-2,795 रुपये प्रति टिन पर बंद हुआ।

सूत्रों ने कहा कि समीक्षाधीन सप्ताह में कच्चे पाम तेल (सीपीओ) का भाव 300 रुपये टूटकर 8,500 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। जबकि पामोलीन दिल्ली का भाव 350 रुपये टूटकर 10,000 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। पामोलीन कांडला का भाव भी 400 रुपये की भारी गिरावट के साथ 9,000 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।

देशी तेल-तिलहन की तरह बिनौला तेल भी समीक्षाधीन सप्ताह में 250 रुपये की गिरावट के साथ 9,250 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।

राजेश

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