नयी दिल्ली, 12 अप्रैल उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालयों और शीर्ष न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की उम्र एक समान करने का अनुरोध करने वाली एक जनहित याचिका को स्वीकार करने से सोमवार को इनकार कर दिया।
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना तथा न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने याचिकाकर्ता को एक प्रतिवेदन के साथ केंद्र सरकार या भारत के विधि आयोग का रुख करने को कहा।
अधिवक्ता एवं भाजपा नेता, याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने दलील दी कि उच्च न्यायालयों और शीर्ष न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की अलग-अलग उम्र सीमा अतार्किक है।
इसपर पीठ ने कहा, ‘‘हम इसे खारिज करते हैं। आप प्रतिवेदन दे सकते हैं।’’
वर्तमान में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की उम्र 65 वर्ष, जबकि उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की 62 वर्ष है।
जनहित याचिका में कहा गया था कि यदि सेवानिवृत्ति की उम्र में एकरूपता होगी तो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश कहीं अधिक स्वतंत्रता के साथ और पदोन्नति पाकर उच्चतम न्यायालय में जाने की कोई उम्मीद नहीं रखते हुए न्यायिक कार्य का निर्वहन करेंगे।
याचिका में दलील दी गई कि संवैधानिक अदालतों के न्यायाधीशों के सेवानिवृत्ति की अलग-अलग उम्र होना अतार्किक है। याचिका में कहा गया था कि सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ाने और इसे एक समान रूप से 65 वर्ष किये जाने से न सिर्फ कानून का शासन मजबूत होगा, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त त्वरित न्याय का मूल अधिकार भी मिलेगा।
याचिका में कहा गया था कि सेवानिवृत्ति की उम्र में एकरूपता न सिर्फ लंबित मुकदमों की संख्या घटाने के लिए, बल्कि यह पीठ में सर्वश्रेष्ठ विधिक प्रतिभा को आकर्षित करने एवं बरकरार रखने के लिए भी आवश्यक है।
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