देश की खबरें | न्यायालय ने आजीवन कारावास के फैसले के खिलाफ स्वामी श्रद्धानंद की याचिका पर विचार से इनकार किया

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नयी दिल्ली, 23 अक्टूबर उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को स्वामी श्रद्धानंद की उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें उसने अपनी पत्नी की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा के फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध किया था।

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति पी.के. मिश्रा और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने श्रद्धानंद के वकील की दलीलें सुनीं, जिन्होंने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल को जीवन भर जेल से रिहा करने से इनकार वाले फैसले के एक हिस्से ने संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा) के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया है।

पीठ ने कहा, ‘‘आप दलील दे सकते हैं कि तथ्यों के आधार पर यह उचित नहीं है। लेकिन एक सजा के रूप में इसे लागू किया जा सकता है, जिसे अब पांच न्यायाधीशों ने बरकरार रखा है।’’

श्रद्धानंद (84) उर्फ ​​मुरली मनोहर मिश्रा ने उच्चतम न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की पीठ के जुलाई 2008 के फैसले की समीक्षा का अनुरोध किया था।

श्रद्धानंद की पत्नी मैसूर रियासत के पूर्व दीवान की पोती थीं।

शीर्ष अदालत ने कहा कि संविधान पीठ ने कहा है कि राष्ट्रपति को अनुच्छेद 72 के तहत और राज्यपाल को अनुच्छेद 161 के तहत शक्तियों का प्रयोग करने का अधिकार है, भले ही अदालत ने मृत्युदंड के विकल्प के रूप में आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान किया हो।

संविधान के अनुच्छेद 72 और 161 में क्रमश: राष्ट्रपति और राज्यपाल को क्षमादान देने तथा कुछ मामलों में सजा को निलंबित करने, माफ करने या कम करने की शक्ति का उल्लेख है।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उसे कर्नाटक राज्य और शिकायतकर्ता की ओर से पेश वकीलों ने सूचित किया है कि श्रद्धानंद ने पहले ही राष्ट्रपति को एक अभ्यावेदन दे दिया है।

पीठ ने कहा, ‘‘इस मामले को देखते हुए, हमें नहीं लगता कि वर्तमान कार्यवाही में किसी भी तरह का हस्तक्षेप उचित है।’’

इससे पहले, 11 सितंबर को उच्चतम न्यायालय ने जेल से रिहाई के अनुरोध वाली श्रद्धानंद की एक रिट याचिका को खारिज कर दिया था।

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