देश की खबरें | न्यायालय ने बाल गृहों के संचालन के लिये दिये गये धन का केन्द्र से विवरण मांगा
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नयी दिल्ली, 21 जुलाई उच्चतम नयायालय ने देश में बच्चों की देखभाल करने वाले संस्थानों के संचालन के लिये राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को उपलब्ध कराये गये धन का विवरण दो सप्ताह के भीतर पेश करने का केन्द्र को मंगलवार को आदेश दिया।
शीर्ष अदालत ने बाल गृहों से सबंधित मामले में न्याय मित्र की भूमिका निभा रहे अधिवक्ता गौरव अग्रवाल को भी विभिन्न राज्यों द्वारा बच्चों की देखभाल और उनके कल्याण के लिये उठाये गये कदमों के बारे में एक नोट पेश करने का निर्देश दिया है।
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न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव , न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट की पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘केन्द्र की ओर से पेश अतिरिक्त सालिसीटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को उपलब्ध कराये जाने वाले धन के विवरण के साथ हलफनामा दाखिल करने के लिये दो सप्ताह के समय का अनुरोध किया है।’’
पीठ ने आदेश मे कहा, ‘‘न्याय मित्र से अनुरोध किया जाता है कि वे विभिन्न राज्यों द्वारा बच्चों की देखभाल और उनके कल्याण के लिये अमल में लायी जा रही प्रणाली के बारे मे एक नोट पेश करें जिसके आधार पर हम कुछ निर्देश देना चाहते हैं। यह नोटस राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के एडवोकेट्स ऑन रिकार्ड में वितरित किया जाये।’’
शीर्ष अदालत ने इस मामले को 13 अगस्त को आगे सुनवाई के लिये सूचबद्ध किया है।
गौरव अग्रवाल ने 15 जुलाई को न्यायालय में एक नोट दाखिल करके बच्चों की देखभाल करने वाले संस्थानों में उनकी शिक्षा, रिहा किये गये बच्चों से संपर्क , उनके मामलों की समीक्षा, इसे संस्थागत बनाने की जरूरत और कोविड-19 से संबंधित उपायों के बोर में निर्देश देने का अनुरोध किया था।
शीर्ष अदालत ने इस बात का संज्ञान लिया था कि आंध्र प्रदेश में महामारी की वजह से लॉकडाउन होने से पहले बाल देखभाल संस्थानों में 27,243 बच्चे थे और राज्य ने 24,611 बच्चों को उनके माता पिता-अभिभावकों को सौंप दिया था जबकि इस समय इन संस्थानों में 2,632 बच्चे हैं।
आंध्र प्रदेश की रिपोर्ट के अवलोकन के बाद न्यायालय ने कहा था कि वर्ष 2019-20 के लिये प्रस्तावित धन में से सिर्फ 70.06 फीसदी ही राज्य को मिला था और शेष धनराशि के बारे में स्थिति स्पष्ट नहीं है।
न्यायालय ने यह भी पाया था कि असम में लॉकडाउन से पहले इन संस्थानों में 2,406 बच्चे थे और इनमें से करीब 550 बच्चे उनके माता पिता और अभिभावकों को सौंपे जा चुके हैं। न्यायालय ने बच्चों की शिक्षा और उनकी रिहाई के बाद की गयी कार्रवाई के बारे में राज्य को रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है।
बिहार, दिल्ली, छत्तीसगढ़ और गुजरात ने भी अपने यहां बच्चों को उनके माता पिता या अभिभावकों को सौंपने के बारे में इसी तरह के तर्क दिये।
गुजरात सरकार ने कहा था कि इन संस्थानों से रिहाई के बाद बच्चों को 1500 रूपए की वित्तीय मदद दी गयी। इसके बाद ही न्यायालय ने राज्य के अधिवक्ता को यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया कि क्या यह भुगतान एक बार का था या यह मासिक है।
न्यायालय ने सात जुलाई को अधिवक्ता गौरव अग्रवाल को इस मामले में मदद के लिये न्याय मित्र नियुक्त किया था।
न्यायालय ने 11 जून को तमिलनाडु चेन्नई के रोयापुरम में स्थित सरकारी आश्रय गृह में 57 बच्चों में से 35 बच्चे कोरोना वायरस से संक्रमित पाये जाने का संज्ञान लिया था और राज्य सरकार से इस बारे में स्थिति रिपोर्ट मागी थी। न्यायालय को बताया गया थ कि बच्चे स्वस्थ हो गए हैं और फिर से केंद्र में आ गए हैं।
शीर्ष अदालत ने कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के बीच देश भर में संरक्षण में रह रहे बच्चों - भले ही वे किशोर गृह हों, पालक घर या रिश्तेदारों के साथ रह रहे हों- की स्थिति पर स्वत: संज्ञान लिया था और उसने बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के बारे में तीन अप्रैल को दिये गये निर्देशों के अनुपालन पर सभी राज्यों से रिपोर्ट मांगी थी।
न्यायालय ने यह भी कहा था कि जैसे-जैसे वैश्विक महामारी बढ़ रही है, यह महत्त्वपूर्ण है कि बाल देखभाल संस्थानों, देखभाल एवं संरक्षण केंद्रों और पालक गृहों एवं रिश्तेदारों के पास रह बच्चों में वायरस के प्रसार को रोकने के लिए प्राथमिकता से तत्काल कदम उठाए जाएं।
न्यायालय ने कहा था कि किशोर न्याय बोर्ड को निगरानी गृहों में रहने वाले ऐसे सभी बच्चों को जमानत पर रिहा करने के लिये कदम उठाने पर विचार करना चाहिए, बशर्ते ऐसा नहीं करने के लिये उसके पास ठोस वजह हों।
अनूप
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