देश की खबरें | अदालत ने महिला को 22 सप्ताह का गर्भ गिराने की अनुमति दी, शारीरिक स्वायत्तता को मौलिक अधिकार बताया

नयी दिल्ली, 20 अगस्त दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महिला को अस्थायी सहजीवन संबंध से 22 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति देते हुए कहा कि गर्भवती महिला की शारीरिक स्वायत्तता और आत्मनिर्णय का अधिकार संविधान में निहित उसके मौलिक अधिकारों का अभिन्न अंग है।

अदालत को बताया गया कि 27 वर्षीय महिला कानूनी रूप से विवाहित है, लेकिन उसे उसके पति ने छोड़ दिया है और यह गर्भधारण सहजीवन संबंध से हुआ है, लेकिन उसके साथी का तब से कोई पता नहीं चल पाया है।

अपनी सात साल की बेटी का अकेले पालन-पोषण कर रही महिला ने चिकित्सीय गर्भपात अधिनियम के तहत गर्भ को समाप्त करने की अनुमति मांगी है।

महिला ने गर्भपात के लिए चिकित्सकों से संपर्क किया था, लेकिन 20 सप्ताह की स्वीकार्य अवधि से अधिक गर्भकाल होने की वजह से उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया।

उच्च न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता और अजन्मे बच्चे दोनों के लिए पूर्वानुमानित वातावरण को देखते हुए महिला के गर्भवती रहने से उसके मानसिक स्वास्थ्य को खतरा पैदा हो सकता है।

न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने कहा, ‘‘अपने पति द्वारा परित्यक्त अकेली मां के रूप में याचिकाकर्ता को विकट आर्थिक एवं सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘सीमित आय के साथ अपने पहले बच्चे का भरण-पोषण करने के लिए संघर्ष करते हुए, उसने 2021 में संशोधित एमटीपी अधिनियम के प्रावधानों को लागू करते हुए, 22 सप्ताह की अवधि में अपने गर्भ को समाप्त करने का एक सुविचारित निर्णय लिया है।’’

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