केरल में गर्ल्स हाईस्कूल में लड़कों के दाखिले की अनुमति की खबर को लेकर विवाद

केरल के तिरुवनतंपुरम में स्थित एकमात्र मशहूर कन्या उच्च विद्यालय की छात्रा अनगा पी. यह सुनकर बेहद उत्साहित थीं कि अगले अकादमिक सत्र से उनके स्कूल में लड़कों को भी दाखिला मिल सकेगा और अब अंतत: कक्षा में लड़के भी उसके दोस्त बन सकेंगे.

प्रतिकात्मक तस्वीर (Photo Credits: Twitter)

तिरुवनंतपुरम, 24 जुलाई : केरल के तिरुवनतंपुरम में स्थित एकमात्र मशहूर कन्या उच्च विद्यालय की छात्रा अनगा पी. यह सुनकर बेहद उत्साहित थीं कि अगले अकादमिक सत्र से उनके स्कूल में लड़कों को भी दाखिला मिल सकेगा और अब अंतत: कक्षा में लड़के भी उसके दोस्त बन सकेंगे. हालांकि उसके माता-पिता को यह खबर अच्छी नहीं लगी क्योंकि उन्होंने ''अनुशासन'' और ''सुरक्षा'' समेत कई बातों को ध्यान में रखते हुए अपनी बेटी के लिए कन्या विद्यालय का चुनाव किया था. अनगा के माता-पिता दोनों सरकारी कर्मचारी हैं. केरल में राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने हाल में एक आदेश जारी किया है, जिसके तहत अधिकारियों को अगले अकादमिक वर्ष से राज्य के सभी शिक्षण संस्थानों में बालक-बालिकाओं को साथ पढ़ाने (को-एजुकेशन) का निर्देश दिया गया है. 13 वर्षीय अनगा और उनके माता-पिता की तरह ही समाज के अन्य वर्गों ने भी इस आदेश पर मिली-जुली प्रतिक्रिया दी है.

लोक निर्देश निदेशालय (डीपीआई) के आंकड़ों के अनुसार दक्षिण भारतीय राज्य केरल में वैसे तो सैंकड़ों स्कूल हैं, जहां बालक-बालिकाएं साथ पढ़ते हैं, लेकिन 280 सरकारी व सहायता प्राप्त कन्या विद्यालय और 164 बाल विद्यालय भी हैं. आयोग ने ऐतिहासिक आदेश में राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि शैक्षणिक वर्ष 2023-24 से केरल में केवल सह-शिक्षा संस्थान होने चाहिए. एक ओर, कई लोगों ने आदेश को समाज में लैंगिक तटस्थता सुनिश्चित करने और युवा पीढ़ी को लैंगिक समानता की सीख देने के लिहाज से इसे जरूरी ऐतिहासिक कदम बताया तो कई अन्य लोगों ने इसका कड़ा विरोध करते हुए कहा कि बालक और बालिकाओं के लिए अलग-अलग संस्थानों को बनाए रखने में कुछ भी गलत नहीं है. यह भी पढ़ें : खेल की खबरें | शतरंज ओलंपियाड: तैयारियां जारी, परीक्षण प्रतियोगिता आयोजित

तिरुवनंतपुरम के पास विथुरा में एक ग्रामीण स्कूल की उच्च प्राथमिक शिक्षक मंजू एम. एम. ने आयोग के आदेश का स्वागत करते हुए कहा कि सह-शिक्षा बच्चों को अधिक आत्मविश्वास वाला नागरिक बनाने में मदद करेगी और उन्हें बिना किसी झिझक के बाहरी दुनिया से जुड़ने में सक्षम बनाएगी. उन्होंने 'पीटीआई-' से कहा, ''मैं एक दशक से सह-शिक्षा विद्यालय में पढ़ा रही हूं. हमारे विद्यालय में देखा जाता है कि बालक और बालिकाएं अच्छी तरह से एक-दूसरे से मिलते जुलते हैं और मिलजुल कर पढ़ाई व पाठ्येतर गतिविधियों में भाग लेते हैं.''

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