देश की खबरें | पंजाब से कांग्रेस सांसदों ने जलाईं कृषि विधेयक की प्रतियां, पार्टी ने किया संसद में विरोध

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. कांग्रेस ने बृहस्पतिवार को कहा कि सरकार द्वारा लाए गए कृषि संबंधी विधेयक हरित क्रांति के मकसद को बेमानी बना देंगे और ये ‘‘कृषि के भविष्य का मत्यु नाद’’ साबित होंगे।

एनडीआरएफ/प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: ANI)

नयी दिल्ली, 17 सितंबर कांग्रेस ने बृहस्पतिवार को कहा कि सरकार द्वारा लाए गए कृषि संबंधी विधेयक हरित क्रांति के मकसद को बेमानी बना देंगे और ये ‘‘कृषि के भविष्य का मत्यु नाद’’ साबित होंगे।

इसने आरोप लगाया कि मोदी सरकार कोरोना वायरस महामारी की तरह किसानों के जीवन और उनकी आजीविका पर हमला कर रही है।

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कांग्रेस के सांसदों ने संसद परिसर में महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने विरोध प्रदर्शन किया और सरकार विरोधी नारे लगाए।

पंजाब से ताल्लुक रखने वाले कांग्रेस के लोकसभा सदस्यों ने बृहस्पतिवार को संसद परिसर में कृषि से संबंधित विधेयकों की प्रतियां जलाईं और इनको वापस लेने की मांग की।

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कांग्रेस सांसदों-गुरजीत सिंह औजला, डॉक्टर अमर सिंह, रवनीत बिट्टू और जसबीर गिल ने संसद परिसर में कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) विधेयक-2020 और कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन समझौता और कृषि सेवा पर करार विधेयक-2020 की प्रतियां जलाईं।

पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने दावा किया कि ये ‘काले कानून’ किसानों और मजदूरों के शोषण के लिए बनाए जा रहे हैं।

उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘मोदी जी ने किसानों की आय दुगनी करने का वादा किया था। लेकिन मोदी सरकार के ‘काले’ क़ानून किसान-खेतिहर मज़दूर का आर्थिक शोषण करने के लिए बनाए जा रहे हैं। ये 'ज़मीदारी' का नया रूप है और मोदी जी के कुछ ‘मित्र’ नए भारत के ‘ज़मीदार’ होंगे। कृषि मंडी हटी, देश की खाद्य सुरक्षा मिटी।’’

संसद में इन विधेयकों पर चर्चा में भाग लेते हुए बिट्टू और औजला ने आरोप लगाया कि इन विधेयकों से किसान खत्म हो जाएंगे और प्रदेशों की आय का एक स्रोत खत्म हो जाएगा।

लोकसभा में कांग्रेस के उपनेता गौरव गोगोई ने भी कहा, ‘‘सरकार इस बात पर नजर गढ़ाए है कि वह अपने पूंजीपति मित्रों को लाभ पहुंचाने के लिए किसानों की जमीन कैसे ले सकती है।’’

विजय चौक पर एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में अधीर रंजन चौधरी चौधरी, रणदीप सुरजेवाला और गौरव गोगोई ने आरोप लगाया कि यह मोदी सरकार का हरित क्रांति को हराने का ‘‘षड्यंत्र’’ है।

उन्होंने कहा, ‘‘मोदी सरकार कोरोना वायरस महामारी की तरह है, क्योंकि यह किसानों के जीवन और उनकी आजीविका पर हमला कर रही है। वह किसानों एवं कृषि श्रमिकों पर हमला कर रही है और अपने मित्र पूंजीपतियों के दरवाजों पर कृषि का सौदा कर रही है।’’

इन नेताओं ने कहा, ‘‘कृषि संबंधी ये कठोर कानून भारत में खेती के भविष्य का मृत्यु नाद साबित होंगे।’’

लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘आज ‘बाहुबली’ मोदी सरकार ने भारत के कृषि क्षेत्र, किसानों, खेतिहर मजदूरों और मंडियों के खिलाफ काला अध्याय लिख दिया है। इन तानाशाहीपूर्ण कानूनों से खेती का भविष्य खत्म हो जाएगा।’’

चौधरी ने आरोप लगाया कि भाजपा अन्नदाता किसानों को खत्म करने और कुछ पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के प्रयास में है। करोड़ों किसान और 250 से अधिक किसान संगठन आंदोलन कर रहे हैं। लेकिन सत्ता के नशे में चूर सरकार इनकी कोई सुध नहीं ले रही है।

उन्होंने कहा कि मंडी-सब्जी मंडी को खत्म करने से ‘कृषि उपज खरीद व्यवस्था’ पूरी तरह नष्ट हो जाएगी। ऐसे में किसानों को न तो ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ मिलेगा और न ही बाजार भाव के अनुसार फसल की कीमत। इसका जीता जागता उदाहरण भाजपा शासित बिहार है।

चौधरी ने कहा, ‘‘ मोदी सरकार का दावा कि अब किसान अपनी फसल देश में कहीं भी बेच सकता है, पूरी तरह से सफेद झूठ है। आज भी किसान अपनी फसल किसी भी प्रांत में ले जाकर बेच सकता है। मंडियां खत्म होते ही अनाज-सब्जी मंडी में काम करने वाले लाखों-करोड़ों मजदूरों, आढ़तियों, मुनीम, ढुलाईदारों, ट्रांसपोर्टरों, शेलर आदि की रोजी रोटी और आजीविका अपने आप खत्म हो जाएगी।’’

उन्होंने दावा किया, ‘‘अगर किसान की फसल को मुट्ठीभर कंपनियां मंडी में सामूहिक खरीद की बजाय उसके खेत से खरीदेंगी, तो फिर मूल्य निर्धारण, वजन व कीमत के सामूहिक मोलभाव की शक्ति खत्म हो जाएगी। स्वाभाविक तौर से इसका नुकसान किसान को होगा।’’

कांग्रेस नेता ने कहा कि अनाज-सब्जी मंडी व्यवस्था खत्म होने के साथ ही प्रांतों की आय भी खत्म हो जाएगी।

उन्होंने कहा, ‘‘कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अध्यादेश की आड़ में मोदी सरकार असल में ‘शांता कुमार कमेटी’ की रिपोर्ट लागू करना चाहती है, ताकि एफसीआई के माध्यम से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद ही न करनी पड़े और सालाना 80,000 से एक लाख करोड़ रुपये की बचत हो। इसका सीधा प्रतिकूल प्रभाव खेत खलिहान पर पड़ेगा।’’

चौधरी ने दावा किया, ‘‘ इन विधेयकों के माध्यम से किसान को ‘ठेका प्रथा’ में फंसाकर उसे अपनी ही जमीन में मजदूर बना दिया जाएगा।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ कृषि उत्पाद, खाने की चीजों व फल-फूल-सब्जियों की स्टॉक लिमिट को पूरी तरह से हटाने से न किसान को फायदा होगा और न ही उपभोक्ता को। बस चीजों की जमाखोरी और कालाबाजारी करने वाले मुट्ठीभर लोगों को फायदा होगा।’’

कांग्रेस नेता ने यह आरोप भी लगाया कि इन विधेयकों में न तो खेत मजदूरों के अधिकारों के संरक्षण का कोई प्रावधान है और न ही जमीन जोतने वाले बटाईदारों या मुजारों के अधिकारों के संरक्षण का। ऐसा लगता है कि उन्हें पूरी तरह से खत्म कर अपने हाल पर छोड़ दिया गया है।

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