देश की खबरें | केंद्र ने पराली जलाने की निगरानी के लिए पूर्व न्यायाधीशों की समिति गठित करने पर आपत्ति जताई

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नयी दिल्ली, 22 नवंबर केंद्र ने पराली जलाने पर रोक लगाने के उपायों के क्रियान्वयन की निगरानी के लिए शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीशों की एक समिति गठित करने के प्रस्ताव का उच्चतम न्यायालय में विरोध किया।

पराली जलाया जाना दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में वायु प्रदूषण का मुख्य कारण है। दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण से संबंधित मामले की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता और ‘एमिकस क्यूरी’ अपराजिता सिंह ने यह सुझाव दिया।

उन्होंने प्रस्तावित तथ्यान्वेषण समिति के तहत न्यायाधीशों की विशेषज्ञता का लाभ उठाने का अनुरोध किया। सिंह ने कहा कि न्यायाधीशों ने पहले भी वायु प्रदूषण और पराली जलाने के मुद्दों पर सुनवाई की है।

उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश मदन बी लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने प्रदूषण और इसमें पराली जलाने की भूमिका से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई की थी। वर्ष 2020 में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने पराली जलाने से जुड़े मुद्दों से निपटने के लिए न्यायमूर्ति लोकुर की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। बाद में इस आदेश को वापस ले लिया गया।

शुक्रवार को ‘एमिकस क्यूरी’ ने प्रस्ताव दिया कि इन न्यायाधीशों की एक समिति संकट से निपटने के लिए व्यापक दृष्टिकोण अपनाने को लेकर किसानों और सरकारी अधिकारियों सहित सभी हितधारकों की निगरानी और सुनवाई कर सकती है।

सिंह ने कहा, ‘‘इन मुद्दों से वाकिफ अनुभवी न्यायाधीशों की एक समिति स्थिति की कुशलतापूर्वक निगरानी कर सकती है और व्यक्तिगत शिकायतों की सुनवाई कर सकती है।’’ हालांकि, केंद्र का प्रतिनिधित्व करने वालीं अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया।

भाटी ने कहा कि केंद्र और वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) पर्याप्त उपाय कर रहे हैं तथा एक और निगरानी समिति से कोई फायदा नहीं होगा।

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने इस बात पर प्रकाश डाला कि पराली जलाने के समय में परिवर्तन और मौसमी हवा के पैटर्न के कारण दिल्ली की वायु गुणवत्ता खराब हो गई।

‘एमिकस क्यूरी’ ने पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने वाले क्षेत्रों के संबंध में सीएक्यूएम और अन्य स्रोतों द्वारा बताए गए आंकड़ों में विसंगतियों की ओर भी ध्यान दिलाया। न्यायालय ने पराली जलाए जाने वाले क्षेत्रों के संबंध में आंकड़े मुहैया कराने को कहा।

न्यायालय ने कहा कि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के उपग्रहों से प्राप्त मौजूदा डेटा खास समय अवधि तक सीमित है। पीठ ने पूरे दिन की व्यापक निगरानी के लिए स्थिर उपग्रहों का उपयोग करने में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को शामिल करने का निर्देश दिया। न्यायालय अगली सुनवाई में इन निर्देशों के अनुपालन और पराली जलाने के उपायों पर नवीनतम घटनाक्रम की समीक्षा करेगा।

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