देश की खबरें | केंद्र ने निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति पर चयन समिति से प्रधान न्यायाधीश को बाहर रखने का बचाव किया

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नयी दिल्ली, 20 मार्च केंद्र ने 2023 के कानून के तहत दो नए निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति का बचाव करते हुए बुधवार को उच्चतम न्यायालय में कहा कि निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता चयन समिति में न्यायिक सदस्य की उपस्थिति से उत्पन्न नहीं होती है। इस कानून के तहत चयन समिति से प्रधान न्यायाधीश को बाहर रखा गया है।

केंद्रीय कानून मंत्रालय ने शीर्ष अदालत में दाखिल एक हलफनामे में याचिकाकर्ता के दावे को खारिज कर दिया कि शीर्ष अदालत में सुनवाई से एक दिन पहले दो निर्वाचन आयुक्तों को 14 मार्च को जल्दबाजी में नियुक्त किया गया। न्यायालय में इस कानून को चुनौती दी गई जिसपर सुनवाई होने वाली थी।

मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों (नियुक्ति, सेवा शर्तें और कार्यकाल) अधिनियम, 2023 को चुनौती देने वाली कांग्रेस नेता जया ठाकुर और ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ सहित कई अन्य द्वारा दायर याचिकाओं के जवाब में यह हलफनामा दाखिल किया गया है।

हलफनामे में कहा गया, ‘‘याचिकाकर्ताओं का मामला एक भ्रांति पर आधारित है कि किसी भी प्राधिकार में स्वतंत्रता केवल तभी बरकरार रखी जा सकती है जब चयन समिति एक विशेष संरचना की हो। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि निर्वाचन आयोग या किसी अन्य संस्था या प्राधिकार की स्वतंत्रता चयन समिति में न्यायिक सदस्य की उपस्थिति से उत्पन्न नहीं होती है।’’

केंद्र ने याचिकाकर्ताओं के इस दावे का खंडन किया कि नियुक्त किए जाने वालों की कोई सूची विपक्ष के साथ साझा नहीं की गई थी। केंद्र ने कहा कि खोज समिति द्वारा छह नाम की सिफारिश के बाद अंतिम सूची में नामित व्यक्तियों के नाम 13 मार्च, 2024 को लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी को उपलब्ध कराए गए थे।

हलफनामा में कहा गया, ‘‘इसलिए, यह कहना पूरी तरह से गलत, भ्रामक और दुर्भावनापूर्ण है कि चयन समिति के तीसरे सदस्य को दो सदस्यों के विचार के तहत शॉर्टलिस्ट किए गए नाम दिए गए थे। सभी सदस्यों को एक साथ सूची प्राप्त हुई थी। इसके अलावा, सूची की तारीखों से स्पष्ट है कि सभी पात्र व्यक्तियों के विवरण 13 मार्च को लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता के साथ साझा किए गए थे।’’

हलफनामे में कहा गया है, ‘‘यह ध्यान दिया जा सकता है कि अंतिम रूप से नियुक्त किए गए व्यक्ति साझा की गई सूची से हैं। यह याचिकाकर्ताओं के दावे को खारिज करता है कि बैठक से पहले कोई सूची साझा नहीं की गई।’’

केंद्र ने दलील दी है कि नियुक्ति के पीछे कुछ अस्पष्ट और अनिर्दिष्ट उद्देश्यों के बारे में केवल ‘‘अपुष्ट’’ बयानों के आधार पर राजनीतिक विवाद पैदा करने की कोशिश की गई।

हलफनामे में कहा गया कि निर्वाचन आयुक्त के रूप में नियुक्त किए गए लोगों की योग्यता पर कभी भी सवाल नहीं उठाया गया और सूची में नामित किसी भी व्यक्ति की पात्रता या क्षमता के बारे में कोई आपत्ति नहीं उठाई गई।

केंद्र ने कहा कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और कार्यकाल) अधिनियम, 2023 निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण सुधार है तथा यह अधिक लोकतांत्रिक, सहयोगात्मक एवं समावेशी कवायद को अपनाता है।

हलफनामे में कहा गया कि याचिकाकर्ताओं का यह कहना कि न्यायिक सदस्यों के बिना चयन समितियां हमेशा पक्षपातपूर्ण होंगी, पूरी तरह से गलत है।

हलफनामे में कहा गया, ‘‘नियुक्ति की शक्ति कार्यपालिका के पास होने के बावजूद निर्वाचन आयुक्त तटस्थ और प्रभावी ढंग से कार्य करने में सक्षम रहे हैं। उच्च संवैधानिक पद के नाते मुख्य निर्वाचन आयुक्त को संविधान में अंतर्निहित संरक्षण प्राप्त है, जो उन्हें निष्पक्ष रूप से कार्य करने में सक्षम बनाता है।’’

शीर्ष अदालत ने 2023 के कानून के तहत नए निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति पर रोक लगाने से शुक्रवार को इनकार कर दिया था।

अनूप चंद्र पांडे की 14 फरवरी को सेवानिवृत्ति और अरुण गोयल के अचानक इस्तीफे के बाद निर्वाचन आयोग में दो रिक्तियां उत्पन्न हुई थीं। उनके स्थान पर सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू को नियुक्त किया गया।

नए कानून के तहत, चयन समिति में अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री होते हैं और विपक्ष के नेता तथा प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय मंत्री दो अन्य सदस्य होते हैं।

पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने मार्च 2023 में फैसला सुनाया था कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधान न्यायाधीश की समिति की सलाह पर की जाएगी।

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