देश की खबरें | वैवाहिक बलात्कार को अपराध श्रेणी में लाने की दलीलों का केंद्र ने किया विरोध
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि यदि किसी व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी के साथ किये गये यौन कृत्य (सेक्स) को ‘बलात्कार’ की श्रेणी में लाकर उसे दंडनीय बना दिया जाता है, तो इसका वैवाहिक संबंधों पर गंभीर असर पड़ सकता है और इससे विवाह नामक संस्था में गंभीर गड़बड़ी पैदा हो सकती है।
नयी दिल्ली, तीन अक्टूबर केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि यदि किसी व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी के साथ किये गये यौन कृत्य (सेक्स) को ‘बलात्कार’ की श्रेणी में लाकर उसे दंडनीय बना दिया जाता है, तो इसका वैवाहिक संबंधों पर गंभीर असर पड़ सकता है और इससे विवाह नामक संस्था में गंभीर गड़बड़ी पैदा हो सकती है।
वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में लाये जाने का विरोध करते हुये केंद्र ने शीर्ष अदालत में प्रारंभिक जवाबी हलफनामा दाखिल किया है। कई याचिकाकर्ताओं ने शीर्ष अदालत के समक्ष याचिका दायर कर वैवाहिक बलात्कार को अपराध के दायरे में लाने का अनुरोध किया है।
न्यायालय में इस जटिल कानूनी प्रश्न को उठाने वाली याचिकाएं लंबित हैं कि क्या पति को बलात्कार के अपराध के लिए अभियोजन से छूट मिलनी चाहिए, यदि वह अपनी पत्नी को यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करता है जो नाबालिग नहीं है ।
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 के अपवाद खंड के तहत किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ संभोग करना या यौन कृत्य करना बलात्कार नहीं है, यदि पत्नी नाबालिग नहीं है। आईपीसी को अब निष्प्रभावी कर दिया गया है और उसके स्थान पर अब नये कानून भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) को लागू किया गया है।
नए कानून के तहत भी, धारा 63 (बलात्कार) के अपवाद दो में कहा गया है कि ‘‘किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ संभोग या यौन कृत्य करना बलात्कार नहीं है, यदि उसकी पत्नी अठारह वर्ष से कम आयु की न हो।’’
केंद्र ने अपने हलफनामें में कहा, ‘‘इसके अलावा, यह प्रस्तुत किया गया है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद 2 को उसकी संवैधानिक वैधता के आधार पर निरस्त करने से विवाह संस्था पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा, यदि किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध या यौन कृत्य को ‘बलात्कार’ के रूप में दंडनीय बना दिया जाता है।’’
इसमें कहा गया है, ‘‘इससे वैवाहिक संबंध पर जबरदस्त प्रभाव पड़ सकता है, और विवाह संस्था में गंभीर गड़बड़ी पैदा हो सकती है।’’
केंद्र ने कहा कि तेजी से बढ़ते और लगातार बदलते सामाजिक एवं पारिवारिक ढांचे में संशोधित प्रावधानों के दुरुपयोग की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि किसी व्यक्ति के लिए यह साबित करना मुश्किल और चुनौतीपूर्ण होगा कि सहमति थी या नहीं।
उसने कहा कि प्रावधान की संवैधानिकता पर निर्णय लेने के लिए सभी राज्यों के साथ उनके विचारों को ध्यान में रखते हुए एक समग्र दृष्टिकोण और परामर्श की आवश्यकता है।
केंद्र ने कहा, ‘‘यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इसमें शामिल मुद्दों का सामान्य रूप से समाज पर सीधा असर पड़ता है और यह भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची का हिस्सा है।’’
इसने कहा कि इस मामले में शामिल मुद्दा, कानूनी से अधिक एक सामाजिक मसला है और सभी हितधारकों के साथ उचित परामर्श के बिना या सभी राज्यों के विचारों को ध्यान में रखे बिना इस पर फैसला नहीं किया जा सकता है।
हलफनामे में कहा गया है, ‘‘यह प्रस्तुत किया गया है कि बोलचाल की में ‘वैवाहिक बलात्कार’ के रूप में संदर्भित कृत्य को अवैध और आपराधिक बनाया जाना चाहिए। केंद्र सरकार का कहना है कि विवाह होने से महिला की सहमति को समाप्त नहीं माना जा सकता और इसके उल्लंघन के दंडात्मक परिणाम होने चाहिए। हालांकि, विवाह के भीतर इस तरह के उल्लंघन के परिणाम वैवाहिक संबंधों के बाहर के परिणामों से भिन्न होते हैं।’’
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