Bihar Political Crisis: बिहार में अनिश्चितता के बीच भाजपा की बैठक

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सत्तारूढ़ ‘महागठबंधन’ का साथ छोड़कर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल होने की योजना बनाने के मजबूत संकेतों के बीच भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की प्रदेश इकाई के नेता राज्य की राजनीतिक स्थिति पर चर्चा करने के लिए शनिवार को यहां एकत्र हुए।

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पटना, 27 जनवरी : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सत्तारूढ़ ‘महागठबंधन’ का साथ छोड़कर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल होने की योजना बनाने के मजबूत संकेतों के बीच भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की प्रदेश इकाई के नेता राज्य की राजनीतिक स्थिति पर चर्चा करने के लिए शनिवार को यहां एकत्र हुए.

बिहार प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने वीरचंद पटेल मार्ग स्थित कार्यालय में पार्टी की बैठक से पहले संवाददाताओं से कहा, ‘‘हम यहां आगामी लोकसभा चुनावों पर विचार-विमर्श करने आए हैं. बिहार की मौजूदा स्थिति पर भी चर्चा की जाएगी.’’ बैठक में पार्टी के सांसद भी शामिल हो रहे हैं. बिहार में भाजपा के पास सबसे अधिक 17 सांसद हैं, जहां लोकसभा सदस्यों की कुल संख्या 40 है.

कुमार के नेतृत्व वाले जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के 16 सांसद हैं, जबकि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की एक अन्य सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के छह सांसद हैं. हालांकि पार्टी अब चाचा-भतीजे- पशुपति कुमार पारस और चिराग पासवान के बीच विभाजित हो गई है. इससे पहले, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की बिहार राज्य इकाई के प्रभारी विनोद तावड़े ने विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ से नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले जनता दल (यूनाइटेड) के अलग होने के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया। नीतीश कुमार को विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन का वास्तुकार माना जाता है.

पार्टी नेताओं ने अब तक कुमार को समर्थन देने के बारे में स्पष्ट बयान देने से परहेज किया है, जिनके राजग में लौटने से पहले मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की उम्मीद है. राजग के1990 के दशक से सहयोगी रहे, कुमार ने अगस्त 2022 में गठबंधन छोड़ दिया था और भाजपा द्वारा जदयू में विभाजन की कोशिश और 2020 के विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी की सीटों की संख्या नीचे लाने की साजिश रचने का संदेह जताया था.

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि तीन साल से भी कम समय पहले हुए घटनाक्रम के परिणामस्वरूप पार्टी की सत्ता छिन गई थी और कहा कि बैठक में ‘‘विभागों के वितरण पर भी निर्णय होने की संभावना है.’’ सत्ता से बाहर होने तक, भाजपा के पास अपनी बेहतर संख्या बल के आधार पर कैबिनेट विभागों में एक बड़ी हिस्सेदारी थी और उसके दो नेता तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी उपमुख्यमंत्री थे.

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