देश की खबरें | सिद्धरमैया के इस्तीफे की मांग को लेकर भाजपा-जद(एस) का ‘मैसुरु चलो’ मार्च पांचवें दिन भी जारी

मांड्या (कर्नाटक), सात अगस्त कर्नाटक में विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल (सेक्युलर) ने कथित भूमि आवंटन घोटाले को लेकर मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के इस्तीफे की मांग करते हुए अपना विरोध मार्च पांचवें दिन बुधवार को भी जारी रखा।

विपक्षी दलों का आरोप है कि मैसुरु शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) ने उन लोगों को मुआवजे के तौर पर भूखंड आवंटित करने में अनियमितता बरती, जिनकी जमीन का ‘‘अधिग्रहण’’ किया गया है। मुआवजे के तौर पर भूखंड प्राप्त करने वालों में सिद्धरमैया की पत्नी पार्वती भी शामिल हैं।

सप्ताह भर के ‘मैसुरु चलो’ मार्च के पांचवें दिन की पदयात्रा यहां शहर में शुरू हुई और इसके जिले के तुबीनाकेरे तक पहुंचने के लिए 15 किलोमीटर की दूरी तय करने का कार्यक्रम है।

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष एवं विधायक बी वाई विजयेंद्र, जद (एस) के प्रदेश अध्यक्ष एवं केंद्रीय मंत्री एच डी कुमारस्वामी, दोनों पार्टियों के कई विधायक, नेता और कार्यकर्ता मार्च में शामिल हुए।

दोनों दलों के बड़ी संख्या में कार्यकर्ता और नेता भाजपा और जद(एस) के झंडे और तख्तियां लिए मुख्यमंत्री सिद्धरमैया एवं राज्य की कांग्रेस सरकार के खिलाफ नारे लगाते देखे गए।

जिस मार्ग से मार्च गुजरा, उसपर कई स्थानों पर दोनों दलों (भाजपा और जद-एस) के झंडे, पताका और प्रमुख नेताओं की तस्वीरें लगी हुई थीं।

शनिवार को बेंगलुरु के निकट केंगेरी से शुरू हुए इस मार्च के पहले दिन बिदादी तक 16 किलोमीटर और तथा दूसरे दिन केंगल तक 22 किलोमीटर की दूरी तय की गई। तीसरे दिन निदाघट्टा पहुंचने के लिए 20 किलोमीटर और चौथे दिन मांड्या शहर पहुंचने के लिए 20 किलोमीटर की दूरी तय की गई थी।

आरोप है कि ‘एमयूडीए’ ने पार्वती को उनकी तीन एकड़ से अधिक क्षेत्रफल की जमीन के बदले में 50:50 अनुपात योजना के तहत भूखंड आवंटित किए थे। इस विवादास्पद योजना के तहत अधिग्रहीत अविकसित भूमि के बदले में भूमि देने वाले को 50 प्रतिशत विकसित भूमि आवंटित की है।

कांग्रेस सरकार ने 14 जुलाई को एमयूडीए घोटाले की जांच के लिए उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी एन देसाई की अध्यक्षता में एक सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया था।

कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने अधिवक्ता-कार्यकर्ता टी जे अब्राहम द्वारा दायर याचिका पर 26 जुलाई को ‘कारण बताओ’ नोटिस जारी करके मुख्यमंत्री को उनके खिलाफ आरोपों पर सात दिन में जवाब देने को कहा था और यह बताने को कहा था कि उनके खिलाफ अभियोजन की मंजूरी क्यों नहीं दी जानी चाहिए।

कर्नाटक सरकार ने मुख्यमंत्री को जारी किए गए ‘‘कारण बताओ नोटिस’’ को वापस लेने का राज्यपाल से आग्रह किया था। साथ ही, राज्यपाल पर ‘‘संवैधानिक पद का घोर दुरुपयोग’’ करने का आरोप लगाया था।

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