देश की खबरें | बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामला मानवता के खिलाफ अपराध : महुआ मोइत्रा ने शीर्ष अदालत से कहा
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की सांसद महुआ मोइत्रा ने बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या ‘‘मानवता के खिलाफ अपराध’’ थी।
नयी दिल्ली, 10 अगस्त तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की सांसद महुआ मोइत्रा ने बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या ‘‘मानवता के खिलाफ अपराध’’ थी।
मोइत्रा ने गुजरात सरकार पर इस ‘‘भयानक’’ मामले में 11 दोषियों को सजा में छूट देकर महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा करने के संवैधानिक कर्तव्य का निर्वहन करने में नाकाम रहने का आरोप लगाया।
बिल्किस बानो द्वारा दायर याचिका के अलावा मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लौल और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा सहित कई अन्य की ओर दाखिल जनहित याचिकाओं में दोषियों को सजा में छूट देने के फैसले को चुनौती दी गई है। मोइत्रा ने भी इस छूट के खिलाफ जनहित याचिका दायर की है।
दोषियों को दी गई छूट को चुनौती देते हुए, मोइत्रा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ के समक्ष दलील दी कि राज्य सरकार महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा के अपने संवैधानिक कर्तव्य का पालन करने में नाकाम रही है और उसने कानून के विपरीत दोषियों की समय पूर्व रिहाई सुनिश्चित करने का निर्णय लिया।
जयसिंह ने कहा, ''यह दलील दी जाती है कि बिलकिस बानो के खिलाफ हुए अपराध को अपराध के समय गुजरात में मौजूद स्थिति से अलग करके नहीं देखा जा सकता और ये अपराध 2002 के दंगों की पृष्ठभूमि में थे, जब बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा हुई थी...।''
उन्होंने कहा, ''बिलकिस बानो के साथ जो हुआ, वह क्रूर, अमानवीय और अपमानजनक था। मेरी दलील है कि उसके साथ जो हुआ, वह मानवता के खिलाफ अपराध था, क्योंकि यह व्यापक सांप्रदायिक हिंसा के बीच हुआ था, जो एक समुदाय को निशाना बनाकर की गई थी।''
मामले में हस्तक्षेप करने के मोइत्रा के अधिकार (अदालत में मुकदमा लाने के अधिकार) को जायज ठहराते हुए जयसिंह ने कहा कि टीएमसी सांसद ने जनहित में शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है और वह 'बिजीबॉडी' (दूसरों के निजी जीवन में अत्यधिक रुचि रखने वाला व्यक्ति) नहीं हैं, जैसा कि दोषियों ने दलील दी है।
उन्होंने कहा, ''याचिकाकर्ता संसद सदस्य होने के नाते एक सार्वजनिक व्यक्तित्व है, जिसने संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ ली है और इस प्रकार एक जिम्मेदार व्यक्ति और भारत के नागरिक के रूप में उसके पास याचिका दायर करने का अधिकार है।''
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा, ''वह (मोइत्रा) धार्मिक और यी सीमाओं से परे भारत के लोगों के बीच सद्भाव और सामान्य भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 51 ए (ई) के तहत अपने मौलिक कर्तव्य का निर्वहन कर रही हैं। याचिकाकर्ता कोई 'बिजीबॉडी' या तमाशबीन नहीं है।''
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