देश की खबरें | बिहार मानव-पशु संघर्ष को रोकने के उपायों की समीक्षा करेगा
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. बिहार सरकार इस बात को लेकर चिंतित है कि वाल्मीकि बाघ अभयारण्य (वीटीआर) के आसपास लगातार बढ़ते मानव-पशु संघर्ष से कैसे बचा जाए। अभयारण्य में राज्य के 50 में से 40 बाघ वास करते हैं।
पटना, 18 अक्टूबर बिहार सरकार इस बात को लेकर चिंतित है कि वाल्मीकि बाघ अभयारण्य (वीटीआर) के आसपास लगातार बढ़ते मानव-पशु संघर्ष से कैसे बचा जाए। अभयारण्य में राज्य के 50 में से 40 बाघ वास करते हैं।
राज्य में बाघों की आबादी 2014 और 2018 के बीच 50 प्रतिशत से अधिक (32 से बढ़कर 50) बढ़ गई। 2022 की गणना अभी पूरी नहीं हुई है लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह संख्या और बढ़ेगी।
एक अधिकारी ने कहा कि वीटीआर में और उसके आसपास जहां कथित तौर पर नौ लोगों की बाघ के हमले में मौत के बाद एक बाघ की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, वहां वन विभाग ने मानव-पशु संघर्ष की जांच के लिए पर्याप्त और प्रभावी उपाय किए हैं।
विभाग के प्रधान सचिव अरविंद कुमार चौधरी ने कहा कि बाघ ने पश्चिमी चंपारण जिले के इलाके में दहशत फैला दी थी और लोगों की जान जाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण था। उन्होंने यह भी कहा कि बाघ को गोली मारने की घटना का महिमामंडन करने का कोई मतलब नहीं है।
बाघ को आठ अक्टूबर को बगहा में हैदराबाद और पटना के वन कर्मियों की एक टीम ने गोली मार दी थी। बाघ को मारने का आदेश प्रक्रिया के अनुसार जारी किया गया था, जब यह स्थापित हो गया था कि जानवर मानव निवास में रहने का आदी था।
चौधरी ने कहा, ‘‘हम भविष्य में इस तरह के संघर्षों से बचने के लिए पहले से मौजूद उपायों की समीक्षा करने के बारे में सोच रहे हैं।’’ अधिकारी ने स्पष्ट किया कि चूंकि बाघ संरक्षित क्षेत्रों के भीतर रहते हैं इसलिए उनके बीच संघर्ष की संभावना स्पष्ट रूप से बढ़ जाती है। उन्होंने कहा कि उस स्थिति में कमजोर बाघ मानव क्षेत्रों में जाने की कोशिश करते हैं जिससे मानव-पशु संघर्ष में वृद्धि होती है।
अधिकारी ने कहा कि हम इस पहलू पर भी गौर करेंगे। कुछ उपायों पर चर्चा और समीक्षा के लिए जल्द ही एक बैठक बुलाई जाएगी। चौधरी ने कहा कि ऐसी जानकारी थी कि एक और बाघ ने शुक्रवार शाम को वीटीआर के किनारे चार बकरियों को मार डाला जो लगभग 900 वर्ग किलोमीटर के कुल क्षेत्रफल को कवर करता है। स्थानीय लोगों ने कहा कि बाघ वीटीआर के मंगुराहा वन रेंज से निकला है जो हिमालय की तलहटी में स्थित है।
चौधरी ने कहा कि घटना का भी विशेषज्ञ विश्लेषण कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के दिशा-निर्देशों के आधार पर बाघ वास स्थानों की सुरक्षा और उनकी आबादी के संरक्षण के लिए कई उपाय किए हैं। कैमूर और पंत वन्यजीव अभयारण्यों और पटना चिड़ियाघर में भी बाघ हैं जहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 30 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस पर बाघिन सरिता से पैदा हुए चार शावकों का नाम रखा था।
अधिकारी के अनुसार, वीटीआर में सरकार द्वारा विकसित घास के मैदानों के परिणामस्वरूप बाघों सहित विभिन्न जंगली प्रजातियों की संख्या में वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि घास के मैदान शाकाहारी जंगली जानवरों के जीवित रहने में मददगार होते हैं, जो किसी भी प्राकृतिक या आरक्षित वनों में पनपने वाले बाघों और अन्य मांसाहारियों का मुख्य शिकार हैं।
चौधरी ने कहा कि जंगली जानवरों की आवाजाही पर नजर रखने के लिए वीटीआर में सैकड़ों कैमरे लगाए गए हैं। ह्यूमेन सोसाइटी इंटरनेशनल के भारत में प्रबंध निदेशक आलोकपर्णा सेनगुप्ता ने कहा कि बाघ इंसानों का शिकार तब तक नहीं करते जब तक कि वे हताश, कमजोर या भूखे न हों। सेनगुप्ता ने कहा, ‘‘राज्य सरकार को पहले इन पहलुओं पर गौर करना चाहिए और फिर मानव-पशु संघर्ष को रोकने के लिए अन्य उपाय करने चाहिए।’’
उन्होंने कहा कि भारत में बाघों को मानव वास क्षेत्र में आने पर मजबूर किया जा रहा है क्योंकि बढ़ती खनन गतिविधि उनके वास स्थान को कम कर रही है जिससे संघर्ष में वृद्धि हो रही है। सेनगुप्ता ने कहा कि इस तरह के संघर्षों का दीर्घकालिक समाधान खोजने का प्रयास किया जाना चाहिए जिसमें दोनों पक्षों की जान जाती है।
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)