देश की खबरें | मूल अधिकार और कर्तव्यों में संतुलन से ही राष्ट्रहित की सही पालना संभव: मिश्र

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जयपुर, 27 नवंबर राज्यपाल कलराज मिश्र ने शनिवार को कहा कि संविधान ने हमें मूल अधिकार दिए हैं तो कर्तव्य बोध भी दिया है। प्रत्येक नागरिक दोनों के बीच संतुलन रखकर राष्ट्रहित और नैतिक मूल्यों की सही मायने में पालना कर सकता है।

राज्यपाल जवाहर कला केन्द्र में श्री अरविन्द सोसायटी द्वारा आयोजित ‘संविधान में कलाकृतियां - श्री अरविन्द के आलोक में’ विषयक प्रदर्शनी के उद्घाटन से पूर्व समारोह को सम्बोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि देश के संविधान की मूल प्रति में भारतीय संस्कृति का चित्रण भारत की संस्कृति और सभ्यता को समझने का आधार है। उन्होंने कहा कि संविधानसभा के सदस्यों द्वारा भारत की भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक संदेश देने का प्रयास इसके जरिए किया गया है।

एक बयान के अनुसार राज्यपाल ने महर्षि अरविन्द को राष्ट्र ऋषि बताते हुए कहा कि वे राष्ट्रीयता से ओतप्रोत महान व्यक्तित्व थे। उन्होंने राष्ट्रवाद को सच्चा धर्म मानते हुए अपने चिंतन और सृजन से समाज को नई दिशा दी। वह भारतीय संविधान को देश का जीवंत दस्तावेज मानते हैं। ऐसा इसलिए कि इसमें भारतीय संस्कृति की उदात्त जीवनधारा को साक्षात् अनुभव किया जा सकता है।

राजस्थान उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति विनोद शंकर दवे ने कहा कि भारत का मूल संविधान 22 भागों में बांटा गया है और सभी भाग भारतीय सभ्यता के चित्रण से आरम्भ होते हैं, जो हमारे महापुरुषों और मनीषियों के ज्ञान को समेटे हुए हैं।

पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता गुरुचरण सिंह गिल ने कहा कि संविधान में सांस्कृतिक चित्रण का मूल विचार संविधानसभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का था। उन्होंने इन चित्रों के महत्व और संदेश को अपने संबोधन में रेखांकित किया।

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