विदेश की खबरें | बाकू जलवायु वार्ता: ‘ग्लोबल साउथ’ का भविष्य ‘एक्स’ पर टिका

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on world at LatestLY हिन्दी. बाकू में हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में दो सप्ताह तक चली गहन वार्ता के बाद, जलवायु परिवर्तन से लड़ने में विकासशील देशों की मदद करने के लिए आवश्यक खरबों डॉलर की राशि की स्पष्टता पर कोई अंतिम निर्णय नहीं हुआ है। मसौदे में इस राशि के स्थान पर एक कोष्ठक में ‘एक्स’ लिखा हुआ दिखाई दे रहा है।

श्रीलंका के प्रधानमंत्री दिनेश गुणवर्धने

बाकू (अजरबैजान), 22 नवंबर बाकू में हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में दो सप्ताह तक चली गहन वार्ता के बाद, जलवायु परिवर्तन से लड़ने में विकासशील देशों की मदद करने के लिए आवश्यक खरबों डॉलर की राशि की स्पष्टता पर कोई अंतिम निर्णय नहीं हुआ है। मसौदे में इस राशि के स्थान पर एक कोष्ठक में ‘एक्स’ लिखा हुआ दिखाई दे रहा है।

जीवाश्म ईंधन पर अपनी अर्थव्यवस्थाओं का निर्माण करने वाले और जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार ग्रीनहाउस गैस का सबसे अधिक उत्सर्जन करने वाले विकसित देश इस महत्वपूर्ण प्रश्न का सवाल देने से अब भी बच रहे है कि 2025 से वे विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए प्रत्येक वर्ष कितनी वित्तीय मदद प्रदान करेंगे?

संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में विकसित देशों को प्रति वर्ष 1.3 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की मदद का लक्ष्य तय करना था ताकि जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों के बीच विकासशील देशों की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।

इस 1.3 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर में से कम से कम 600 अरब अमेरिकी डॉलर विकसित देशों के सरकारी कोष से मिलने चाहिए क्योंकि विकासशील देश निजी क्षेत्र पर निर्भर रहने के विचार को अस्वीकार करते हैं। उनका तर्क है कि निजी क्षेत्र जवाबदेही की तुलना में लाभ में अधिक रुचि रखता है।

दुनियाभर के देश सम्मेलन के अंतिम दिन मसौदे के ऐसे नए ‘‘स्वीकार्य’’ संस्करण की प्रतीक्षा कर रहे हैं जिसे संतुलित परिणाम प्राप्त करने के लिए परिष्कृत किया जा सके।

‘ग्लोबल साउथ’ ने जिस राशि की उम्मीद की थी, बृहस्पतिवार को जारी किए गए नए जलवायु वित्त पैकेज के प्रारूप में उसके स्थान पर कोष्ठक में ‘एक्स’ लिखा है।

इससे विकासशील देश निराश और आक्रोशित हैं क्योंकि इस ‘एक्स’ का स्थान लेने वाली चीज जलवायु संकट की मार झेलने के मामले में अग्रिम पंक्ति में खड़े विश्व के सबसे गरीब और सबसे कमजोर देशों के लिए अस्तित्व का सवाल बन गई है।

जलवायु कार्यकर्ता और जीवाश्म ईंधन अप्रसार संधि पहल के लिए वैश्विक सहभागिता निदेशक हरजीत सिंह ने कहा कि विकसित देश सही इरादे से वार्ता नहीं कर रहे, वे अपनी जिम्मेदारी से बच रहे हैं और वित्तीय बोझ को संघर्षरत अर्थव्यवस्थाओं पर डाल रहे हैं।

भारत ने बृहस्पतिवार को कहा कि वह विकासशील देशों के लिए जलवायु वित्त से ध्यान हटाकर ‘ग्लोबल साउथ’ में उत्सर्जन में कमी लाने पर ध्यान केंद्रित करने के विकसित देशों के किसी भी प्रयास को स्वीकार नहीं करेगा।

‘ग्लोबल साउथ’ का संदर्भ आर्थिक रूप से कमजोर या विकासशील देशों के लिए दिया जाता है।

भारत ने कहा कि वित्त, प्रौद्योगिकी और क्षमता निर्माण के संदर्भ में पर्याप्त सहयोग के बिना जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई गंभीर रूप से प्रभावित होगी।

एपी

(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)

Share Now

\