देश की खबरें | अनुसूचित जातियों में पिछड़ापन वास्तविक समानता की राह में रोड़ा : प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़
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नयी दिल्ली, एक अगस्त उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि अनुसूचित जातियों (एससी) में पिछड़ापन ‘वास्तविक समानता’ हासिल करने की राह में रोड़ा है और उप-वर्गीकरण इसे हासिल करने के साधनों में से एक है।
प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने यह टिप्पणी अपने 140 पृष्ठ के बहुमत वाले फैसले में की। इस फैसले में शीर्ष न्यायालय ने कहा कि राज्यों को कोटा के अंदर कोटा देने के लिए अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है क्योंकि वे सामाजिक रूप से विविधता वाला वर्ग हैं।
प्रधान न्यायाधीश ने उन सिद्धांतों का सारांश प्रस्तुत किया जो संविधान के अनुच्छेद 15(4) और 16(4) के तहत लाभार्थी वर्ग की पहचान करने के उद्देश्य और मानदंड को रेखांकित करते हैं।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘ अनुच्छेद 15(4) और 16(4) में विशेष प्रावधानों का उद्देश्य लाभार्थी वर्ग को वास्तविक समानता प्रदान करना है। वर्ग के भीतर परस्पर पिछड़ापन वास्तविक समानता प्राप्त करने में बाधा है। उप-वर्गीकरण वास्तविक समानता प्राप्त करने के साधनों में से एक है।’’
संविधान का उप-अनुच्छेद 15(4) राज्य को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों या अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की उन्नयन के लिए विशेष प्रावधान करने की अनुमति देता है।
वहीं, उप-अनुच्छेद 16(4) में राज्य को नागरिकों के किसी पिछड़े वर्ग के लिए नियुक्तियों या पदों को आरक्षित करने का अनुमति देता है जिसका राज्य की राज्य की सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा,‘‘अनुच्छेद 15(4) में लाभार्थी वर्ग सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग होना चाहिए। ‘सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा’ परस्पर अलग अवधारणाएं नहीं हैं। यह वाक्यांश समाजशास्त्रीय वास्तविकता की संवैधानिक मान्यता का प्रतिनिधित्व करता है कि शैक्षणिक पिछड़ापन वर्ग के सामाजिक पिछड़ेपन के कारण होता है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘अनुच्छेद 16(4) में लाभार्थी वर्ग, इसी प्रकार अनुच्छेद 15(4) के तहत वर्ग में मुख्य रूप से सामाजिक रूप से पिछड़ा होना चाहिए। दोनों प्रावधानों का उद्देश्य सामाजिक रूप से पिछड़े समुदायों को अवसर की पर्याप्त समानता सुनिश्चित करना है...।’’
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि प्रतिनिधित्व की पर्याप्तता का निर्धारण प्रभावी प्रतिनिधित्व के मानक के आधार पर किया जाना चाहिए, न कि संख्यात्मक प्रतिनिधित्व के आधार पर। शीर्ष न्यायालय ने निर्णयों और अन्य विवरणों का विश्लेषण करते हुए माना कि अनुसूचित जातियां एक ‘विषम वर्ग’ हैं जिन्हें उप-वर्गीकृत किया जा सकता है।
उन्होंने कहा, ‘‘संविधान में अनुसूचित जातियों की कोई परि नहीं दी गई है। अनुच्छेद 366(24) में कहा गया है कि अनुच्छेद 341 के तहत अधिसूचित जातियां/समूह अनुसूचित जातियां होंगी। हालांकि, न तो अनुच्छेद 341 और न ही अनुच्छेद 366(24) में उनकी पहचान के लिए कोई मानदंड निर्धारित किया गया है...।’’
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