विदेश की खबरें | ऑस्ट्रेलिया में दो करोड़ पौधे रोपने के कार्यक्रम में प्रकृति के लिए लाभ के बजाय लागत को तरजीह दी गयी
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on world at LatestLY हिन्दी. टाउंसविल, 15 मई (द कन्वरसेशन) पेड़ों की कटाई और जीवों की प्रजातियों के विलुप्त होने के मामले में ऑस्ट्रेलिया का नाम दुनिया में सबसे ऊपर आता है। संकटग्रस्त प्रजातियों को बचाने के उपायों में पौधारोपण कार्यक्रम महत्वपूर्ण होता है, लेकिन क्या यह हमेशा कारगर है?
टाउंसविल, 15 मई (द कन्वरसेशन) पेड़ों की कटाई और जीवों की प्रजातियों के विलुप्त होने के मामले में ऑस्ट्रेलिया का नाम दुनिया में सबसे ऊपर आता है। संकटग्रस्त प्रजातियों को बचाने के उपायों में पौधारोपण कार्यक्रम महत्वपूर्ण होता है, लेकिन क्या यह हमेशा कारगर है?
हमारे नये अनुसंधान में इस सवाल का जवाब खोजने की कोशिश की गयी। इसमें 2014 में केविन रड की लेबर पार्टी की सरकार के समय शुरू किये गये दो करोड़ पौधे रोपने के कार्यक्रम का अध्ययन किया गया।
इस कार्यक्रम का उद्देश्य हरियाली बढ़ाना, पशुओं की प्रजातियों को बचाना और ग्रीनहाउस गैसों में कमी लाना था।
हालांकि, हमारे शोध में पाया गया कि वित्तपोषण के फैसले काफी हद तक प्रत्येक पेड़ की लागत जैसे विचारों से प्रेरित थे। इसमें संकटग्रस्त प्रजातियों और जलवायु दोनों की अनदेखी की गयी।
दो करोड़ पेड़ लगाने का कार्यक्रम क्या था?
ऑस्ट्रेलिया में पिछले 200 साल में सबसे अधिक जैवविविधता क्षय देखा गया है। इसका बड़ा कारण खेती की भूमि को साफ करके अन्य उद्देश्यों के लिए उपयोग में लाना है। ऑस्ट्रेलिया की 2,000 संकटग्रस्त प्रजातियों और समुदायों के पर्यावासों का संरक्षण नहीं किया गया तो उनमें से अधिकतर विलुप्त हो जाएंगे।
इसके अलावा वनस्पति वातावरण से कार्बन लेती है, इसलिए जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने के लिए देशी पौधों को फिर से लगाना महत्वपूर्ण है।
इस बात को ध्यान में रखते हुए रड सरकार ने 2014 में 6.2 करोड़ अमेरिकी डॉलर की लागत वाले पौधारोपण कार्यक्रम की शुरुआत की थी। इसका उद्देश्य 2020 तक दो करोड़ पेड़ लगाना था।
कार्यक्रम की अवधि अब समाप्त हो चुकी है। इसके तहत 30,000 हेक्टयेर से अधिक भूभाग में 2.95 करोड़ पौधे रोपे गये।
इसके लिए विभिन्न सामुदायिक समूहों, भूस्वामियों को योजना के तहत पेड़ लगाने के लिए भुगतान किया गया। इसमें 1.3 करोड़ ऑस्ट्रेलियाई डॉलर के प्रतिस्पर्धी अनुदान समेत अन्य तरीके शामिल रहे।
हमारे अनुसंधान में इस बात को परखा गया कि कार्यक्रम के प्रतिस्पर्धी अनुदान से किस तरह की परियोजनाओं के वित्तपोषण की अधिक संभावना है और क्या इन परियोजनाओं के, संकटग्रस्त प्रजातियों के लिहाज से वास्तविक लाभ मिले।
हमने सभी 169 सफल और 698 असफल आवेदनों के लिए आवेदकों द्वारा तैयार परियोजना रूपरेखा का अध्ययन करते हुए शुरुआत की।
प्रति पौधा 5 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर की लागत की स्थिति में परियोजनाओं के वित्तपोषण की संभावना अधिक थी। जिस परियोजना में पेड़ की कीमत 10 डॉलर से अधिक आंकी गयी, उन्हें धन नहीं दिया गया।
प्रति पौधारोपण लागत के आधार पर धन आवंटन का तरीका समस्या वाला था।
पौधे की लागत, बीज प्राप्त करने की लागत, अंकुरण समय और विकास जैसे कारकों पर निर्भर करती है। वुडलैंड यूकेलिप्टस के पौधों के उत्पादन में कुछ डॉलर खर्च हो सकते हैं, जबकि कुछ ऊष्णकटिबंधीय वर्षावन के पेड़ों की कीमत लगभग 14 डॉलर प्रति पौधा तक हो सकती है।
संकटग्रस्त पशुओं को भोजन या आश्रय देने की क्षमता के आधार पर व्यापक पारिस्थितिकी तंत्र में पेड़ों का मूल्य अलग हो सकता है।
धन आवंटन के लिए समूहों का कम बोली लगाने के लिए बाध्य होना भी नुकसानदेह हो सकता है। इसमें पौधों की कम प्रजातियों को रोपना और निराई तथा पानी देने जैसे आवश्यक रखरखाव को कम करना शामिल हो सकता है। कितने पौधे रोपे गये, इस पर ध्यान देने के बजाय कितने पेड़ बच पाए, इस पर ध्यान केंद्रित करने से बेहतर पर्यावरणीय परिणाम प्राप्त होंगे।
संकटग्रस्त 769 प्रजातियों के पर्यावासों में पौधारोपण परियोजनाओं को संचालित किया गया। इनमें से केवल नौ को परियोजनाओं का लाभ मिला। संकटग्रस्त प्रजातियों को अधिक लाभ प्रदान करने की क्षमता वाली कई परियोजनाओं को वित्तपोषित ही नहीं किया गया।
ऑस्ट्रेलिया में संकटग्रस्त पौधों और पशुओं की प्रजातियों में से अधिकतर को कार्यक्रम के तहत पर्यावास संरक्षण का लाभ नहीं मिला। लेकिन यदि वित्तपोषण के लिए अलग-अलग परियोजनाओं का चुनाव होता तो करीब 400 प्रजातियों के पर्यावासों का संरक्षण किया जा सकता था।
वित्तपोषण के फैसलों में परियोजना की कार्बन सोखने की क्षमता से ज्यादा महत्व उसकी लागत को दिया गया।
हमारे निष्कर्ष दो करोड़ पौधारोपण के कार्यक्रम पर ऑस्ट्रेलिया नेशनल ऑडिट ऑफिस की 2016 की एक रिपोर्ट से मेल खाते हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि कार्यक्रम को सही तरीके से तैयार किया गया था, लेकिन आकलन पद्धतियों का पालन नहीं किया गया और पात्रता आकलन पारदर्शिता के साथ नहीं किया गया।
रिपोर्ट के जवाब में विभाग ने कहा था कि वह अनुदान देने में सर्वश्रेष्ठ मानकों का पालन करने के उद्देश्य से सतत कार्य सुधार के लिए प्रतिबद्ध है। उसने कहा था कि वह रिपोर्ट में की गयी सिफारिशों पर ध्यान देगा।
हमारे अनुसंधान में सामने आया कि जब पर्यावरण संरक्षण की बात आती है तो सफलता के एकतरफा उपाय अनुचित हैं। इसके उलटे परिणाम हो सकते हैं जिनसे संकटग्रस्त प्रजातियों को फायदा नहीं होता जिनके लिए यह धन दिया गया है।
हमने पाया कि वित्तपोषण के विभिन्न मानदंडों को अपनाने से संकटग्रस्त प्रजातियों के लिहाज से व्यापक लाभ प्राप्त हो सकेंगे। उदाहरण के लिए, धन का मूल्य संकटग्रस्त प्रजातियों के पर्यावास के क्षेत्र के अनुसार लागत पर तय किया जाना चाहिए।
ऑस्ट्रेलिया में जैवविविधता संकट से निपटने के लिए प्रकृति संरक्षण कार्यक्रम महत्वपूर्ण हैं, लेकिन अगर इन्हें सही तरीके से नहीं चलाया जाता तो संरक्षण पर खर्च होने वाले धन के बर्बाद होने का जोखिम होता है।
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