देश की खबरें | अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने अपीलीय अदालत बनाने का सुझाव दिया

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नयी दिल्ली, 26 नवंबर अटॉर्नी जनरल (एजी) के के वेणुगोपाल ने शुक्रवार को कहा कि उचित लागत और समयसीमा के भीतर न्याय प्राप्त करने का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और किसी मामले के निस्तारण में यदि 30 साल का समय लगता है तो इसे समुचित नहीं कहा जा सकता। इसके साथ ही उन्होंने देश के चार हिस्सों में चार अपीलीय अदालतों की वकालत करते हुए कहा कि उच्चतम न्यायालय को उसके काम के भारी बोझ से मुक्त कराना चाहिए।

उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय की मौजूदा भूमिका में व्यापक बदलाव किया जाना चाहिए और इसे पूरी तरह से संवैधानिक अदालत बनाया जाना चाहिए जिसमें केवल संवैधानिक व्याख्या के मुद्दों से जुड़े मामलों की सुनवाई हो।

अटॉर्नी जनरल ने उच्चतम न्यायालय द्वारा आयोजित "संविधान दिवस" ​​समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि उच्च न्यायालयों, न्यायाधिकरणों और अन्य ऐसे मामलों की अपील सुनने के लिए चार "अपीलीय अदालतें" गठित की जानी चाहिए, जिनकी सुनवाई अभी उच्चतम न्यायालय द्वारा की जाती है। उन्होंने कहा कि इससे मामलों के लंबित रहने के समय में "काफी हद तक" कमी आएगी।

उन्होंने कहा, "मैं कम से कम चार क्षेत्रों - उत्तर, दक्षिण, पश्चिम और पूर्व की परिकल्पना करूंगा, जहां प्रत्येक क्षेत्र में 15 न्यायाधीशों के साथ अपीलीय अदालत होगी। लंबित मामलों में कमी आएगी जिससे आप तीन या चार साल की अवधि के भीतर मामलों का निपटारा कर सकेंगे।"

वेणुगोपाल ने कहा कि उच्चतम न्यायालय में तक लंबित मामलों की संख्या कम हो जाएगी और सर्वोच्च अदालत के इन 34 न्यायाधीशों की जरूरत नहीं होगी तथा न्यायाधीश धैर्यपूर्वक सुनवाई कर सकेंगे और उत्कृष्ट निर्णय लिख सकेंगे।

मामलों के निपटारे में लगने वाले समय का जिक्र करते हुए शीर्ष कानून अधिकारी ने कहा कि निचली अदालत में मामला दर्ज करने के लिए "साहसी व्यक्ति" होना चाहिए क्योंकि वह 30 साल बाद मुकदमे का फल नहीं ले सकता है। उन्होंने सुझाव दिया कि इस मुद्दे हल के लिए न्यायपालिका और कार्यपालिका को एक साथ आना चाहिए।

उन्होंने, ‘‘यह याद रखा जाना चाहिए कि जहां तक न्याय तक पहुंच की बात है, यह एक मूलभूत अधिकार है। मूलभूत अधिकार का मतलब है कि उन्हें समुचित कीमत पर न्याय मिलना चाहिए और समुचित अवधि में मिलना चाहिए। 30 साल के समय को समुचित अवधि नहीं कहा जा सकता है।’’

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