जलवायु परिवर्तन से मुकाबले को साथ आए अरब देश और इस्राएल

अमेरिका की पहल पर शुरू एक नयी मुहिम ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए फिलस्तीनियों, इस्रायलियों और अरब देशों को एक मंच पर ला खड़ा किया है.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

अमेरिका की पहल पर शुरू एक नयी मुहिम ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए फिलस्तीनियों, इस्रायलियों और अरब देशों को एक मंच पर ला खड़ा किया है.मध्यपूर्व और उत्तरी अफ्रीका (एमईएनए) क्षेत्र दुनिया में जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा असहाय इलाकों में से है. बढ़ते तापमान, जल संकट और मरुस्थलीकरण की मार उस पर पहले ही पड़ रही है. भविष्य की तस्वीर भी अच्छी नहीं.

कृषि, जल और खाद्य सुरक्षा पर हुए सम्मेलन के आयोजक कहते हैं कि क्षेत्रीय विशेषज्ञों के लिए ये तमाम वजहें, क्षेत्रीय स्तर पर ज्यादा से ज्यादा साथ आने पर जोर दे रही हैं. इस्राएल, कब्जे वाले फिलस्तीनी इलाकों और कई अरब और मुस्लिम देशों के विशेषज्ञों ने इस सम्मेलन में हिस्सा लिया. सम्मेलन का लक्ष्य इलाकाई चुनौतियों से निपटने के लिए व्यवहारिक कार्यक्रम तैयार करने का है.

एन7 इनीशिएटिव के सीनियर डायरेक्टर विलियम वेशलर कहते हैं, "इस क्षेत्र में पारस्परिक सहयोग से इतना कुछ किया जा सकता है." एन7 इनीशिएटिव ने ही ये सम्मेलन पिछले सप्ताह संयुक्त अरब अमीरात की राजधानी अबु धाबी में बुलाया था. ये पहल इस्राएल और अरब और मुस्लिम देशों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करती है, ये वही देश हैं जिन्होंने 2020 में इस्राएल और मोरक्को, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन समेत कई देशों के बीच संबंधों को सामान्य बनाने के लिए अब्राहम संधि पर हस्ताक्षर किए थे.

संभावित सहयोगों की सूची गिनाते हुए वेशलर कहते हैं, "उदाहरण के लिए, पानी और ज्यादा मुहैया कराया जा सकता है, खाद्य कीमतें कम की जा सकती हैं और लोगों की जिंदगियां और महफूज की जा सकती हैं."

वेशलर मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन सहयोग के लिए खेती एक आदर्श आधार है. न सिर्फ ये वो क्षेत्र है जहां तेजी से प्रगति मुमकिन है बल्कि मेना (एमईएनए) क्षेत्र के लोगों की जिंदगियों पर भी बड़ा असर खेती की बदौलत आ सकता है.

वेशलर आगाह करते हैं, "अगर हम अभी जलवायु परिवर्तन से निपटने का अवसर गंवा देते हैं तो वो खिड़की आखिरकार बंद हो जाएगी."

इस्राएल और अधिकृत (कब्जे वाले) पश्चिमी तट की स्थिति में हालिया तनाव के बावजूद वेशलर मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन से निपटने में सक्रिय रूप से शामिल लोग साथ मिलकर काम करने को तैयार हैं.

वेशलर ने डीडब्लू को बताया, "अंततः वैज्ञानिक और इंजीनियर ही वे व्यवहारिक लोग हैं जो समस्याओं को सुलझाने में दिलचस्पी रखते हैं, भले ही वे कहीं के भी हों."

साझा प्रोजेक्टों के लिए फंडिंग की मुश्किल

मोरक्को के राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक और सम्मेलन के प्रतिभागी फाउजी बेक्काउइ को लगता है कि इस्राएल के पास उनके देश को देने को बहुत कुछ है.

उन्होंने डीडब्लू से कहा, "पानी के सही इस्तेमाल में इस्राएल की विशेष तौर पर विशेषज्ञता रही है जैसे कि सिंचाई प्रणालियों में और ज्यादा अनुकूल फसलों और उनकी नस्लें तैयार करने में."

विश्व बैंक की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक, मोरक्को दुनिया के सबसे ज्यादा पानी की किल्लत वाले देशों में है. उसका कृषि सेक्टर पानी की कमी और जलवायु परिवर्तन से बुरी तरह प्रभावित हुआ है.

वो कहते हैं, "इस्राएल ने जैवप्रौद्योगिकी या जीनोमिक्स में भी महत्वपूर्ण प्रगति की है. और ये तमाम क्षेत्र मोरक्को के लिए भी फायदेमंद हो सकते हैं."

लेकिन साझा मोरक्को-इस्राएली परियोजनाओं या अकादमिक आदानप्रदान के लिए फंड सीमित हैं. बेक्काउइ ने अब अमेरिका स्थित मर्क फांउडेशन में ग्रांट की अर्जी डाली है. ये फांउडेशन इस्राएल और अरब देशों के बीच परियोजनाओं को आर्थिक मदद देता है जिन्होंने अब्राहम संधि पर हस्ताक्षर किए हैं.

इस क्षेत्र में देशों के बीच पारस्परिक अकादमिक सहयोग की परंपरा नहीं है.

अबू धाबी में राष्ट्रीय मौसम केंद्र में शोधकर्ता युसूफ वेहबे ने मध्यपूर्व संस्थान के एक हालिया पोडकास्ट में बताया, "ज्यादातर राष्ट्रीय शोध प्रशासनों के पास विदेशी संगठनों को रिसर्च के लिए फंडिंग देने के रास्ते भी सीमित हैं."

जलवायु परिवर्तन से मुकाबले के लिए, सीमा पार के प्रोजेक्टों की फंडिंग जुटाना और ज्यादा पेचीदा है. ग्लासगो में 2021 में विश्व जलवायु सम्मेलन कॉप 26 के दौरान, अमीर देशों ने गरीब और मध्य आय वाले देशों के लिए 2025 से सालाना 40 अरब डॉलर का एडेप्टेशन फंड मुहैया कराने पर सहमति जताई थी.

लेकिन वेहबे स्पष्ट करते हैं कि इस वित्त का अधिकांश हिस्सा, जीवाश्म ईंधनों में कटौती के न्यूनीकरण प्रोजेक्टों के लिए कर्ज के रूप में दिया गया है जैसे कि सोलर पैनल या पवन चक्कियां लगाने के लिए. और कर्जदाता देश बदले में मुनाफा कमाते हैं.

वेहबे कहते हैं इसकी तुलना में, अनुकूलन योजनाओं के लिए वित्तीय मदद कम मिलती है क्योंकि उन्हें फंड करना ज्यादा कठिन है और वे फंडिंग करने वाले देशों को कर्ज के मुनाफादार मॉडल की तुलना में कम आकर्षित करती हैं."

"अंतराष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय से उपाय और तरीके हासिल करने के लिए," युसूफ वेहबे जलवायु परिवर्तन से मुकाबले को ज्यादा से ज्यादा वैश्विक स्तर वाले शोध कार्यक्रमों का आह्वान करते हैं.

जलवायु परिवर्तन से निपटकर संघर्ष में कमी

कनाडा की मैकगिल यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और विश्व बैंक के पूर्व निदेशक, कृषि और जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ जमाल साघिर भी मानते हैं कि सीमा पार सहयोग ही बेहतरीन उपाय है.

उन्होंने डीडब्लू से कहा, "क्षेत्रीय सहयोग हमेशा सबतरफा जीत की स्थिति है और राष्ट्रीय या दोतरफा परियोजनाओं से ज्यादा बेहतर है. अधिकांश मध्यपूर्व देश पर्याप्त उपाय नहीं कर रहे हैं और जलवायु परिवर्तन की गति कहीं ज्यादा तेज है."

वैश्विक औसत के मुकाबले मध्यपूर्व दोगुनी रफ्तार से गरम हो रहा है. कम होते संसाधनों को लेकर संघर्ष और ईंधन प्रतिस्पर्धा और छिड़ने की आशंका है. इस वजह से जलवायु परिवर्तन और उसके चलते होने वाले ज्यादा पलायन और अस्थिरता जैसे नतीजों से निपटना, क्षेत्र के लिए और जरूरी हो जाएगा.

जमाल साघिर मानते हैं कि ये इलाका, प्रौद्योगिकी की मदद से इन मुद्दों से पार पा सकता है. और इस मामले में इस्राएल और खाड़ी देश अगुवाई कर सकते हैं.

वो कहते है, "इस्राएली प्रौद्योगिकी समुद्री पानी का खारापन मिटाने और सिंचाई में अव्वल है, इलाके को इन तरीकों का काफी फायदा होगा." वो ये रेखांकित करते हैं कि संयुक्त अरब अमीरात ने अपने फलतेफूलते तेल व्यापार के अतिरिक्त, अक्षय ऊर्जा स्रोतों में भी काफी अहम निवेश किया है

उनके मुताबिक, "आपसी साझेदारी से शोध और विकास में नये उपायों और ख्यालों की ओर ले जाएगी जिन्हें फिर कई देशों में आजमाया जा सकता है. ये देश किस बात का इंतजार कर रहे हैं? ये काम तो अभी इसी वक्त हो सकता है."

भरोसे की बुनियाद खड़ी करना जरूरी

इस्राएल के अरावा पर्यावरणीयअध्ययन संस्थान में कार्यकारी निदेशक तारेक अबु हमद मानते हैं कि क्षेत्र के दूसरे देशों के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर जलवायु परिवर्तन का मुकाबला, "भरोसा कामय करने का एक बड़ा अवसर बन सकता है."

वो कहते हैं, "हम लोग छोटे से इलाके में रहते हैं जिसे जलवायु परिवर्तन के लिहाज से हॉटस्पॉट माना जाता है, और हमारे पास, इन चुनौतियों से निपटने के लिए एक दूसरे का साथ देने के अलावा कोई और विकल्प भी नहीं."

एन7 मुहिम में शामिल अलेक्स प्लिटसास, सम्मेलन का एक दृश्य देखकर अभिभूत रह गए थे. उस नजारे ने उन्हें उम्मीद से भर दिया.

उन्होंने ट्विटर पर लिखा, "अबू धाबी में...मैंने जो सबसे कमाल की बात देखी वो ये थी कि देर रात एक अरबी पुरुष राजनीतिज्ञ अपने पारंपरिक थोब और कैफियेह पहने, इस्राएल की एक महिला उद्यमी के बगलगीर थे. साथ बैठकर वे दोनों लोगों की जिंदगियां बेहतर बनाने के तरीकों पर बात कर रहे थे."

रिपोर्टः जेनिफर होलाइज

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