जर्मनी में लोग काम क्यों नहीं करना चाहते

जर्मनी में बहुत से लोग काम करने की इच्छा नहीं रखते.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

जर्मनी में बहुत से लोग काम करने की इच्छा नहीं रखते. इसकी वजह है सरकार की तरफ से मिलने आर्थिक सहायता में बढ़ोत्तरी. यह नतीजे एक सर्वे में सामने आए हैं.जर्मन सरकार ने कहा है कि वह लोगों को मिलने वाली मदद बढ़ाने जा रही है ताकि बच्चों में गरीबी दूर की जा सके और लोगों को महंगाई से राहत मिले. हालांकि सरकार ने यह भी कहा है कि वह नहीं चाहती कि लोग इसकी वजह से काम करना बिल्कुल छोड़ दें. इस तरह की आर्थिक मदद का प्रावधान 2005 में लागू किया गया था. सिटिजन मनी कही जाने वाली यह सहायता जर्मनी के 55 लाख से ज्यादा बेरोजगारों को दी जाती है. फिलहाल यह प्रति व्यक्ति 502 यूरो (करीब 45,000) रुपये है जिसे अगले साल बढ़ाकर 563 यूरो (करीब 50,000) कर दिया जाएगा. जिन्हें यह सहायता मिलती है उन लोगों का रहने का किराया और स्वास्थ्य बीमा भी सरकार के जिम्मे है.

परिवारों को सहायता

सरकारी मदद को बढ़ाने इस फैसले के साथ ही, कम आय वाले परिवारों को साल 2025 से ज्यादा वित्तीय सहायता मुहैया कराए जाने का निर्णय भी हो चुका है. परिवारों को पहले बच्चे के पैदा होने के बाद 636 यूरो हर महीने मिलेंगे और उसके बाद हर बच्चे की पैदाइश पर 530 यूरो (करीब 47000 रुपये) दिए जाएंगे. फिलहाल परिवार में हर बच्चे को 250 यूरो प्रतिमाह दिए जाते हैं.

सर्वे करने वाली कंपनी आईएनएसए के मुताबिक, 12.4 यूरो प्रति घंटे की न्यूनतम आय या 1450 यूरो प्रतिमाह तक कमाने वाले 52 फीसदी जर्मन नागरिक मानते हैं कि काम करने की कोई जरूरत नहीं है. इसकी वजह यह है कि न्यूनतम आय पर फुलटाइम काम करने वाले लोगों की आय और सरकारी सहायता पाने वालों से कोई खास ज्यादा नहीं है. यह सर्वे बिल्ड अखबार में छपा है.

सरकारी मदद पर सवाल

1005 लोगों पर किए गए इस सर्वे में लोगों की राय इस बात पर बंटी हुई है कि सरकार को जन कल्याण के नाम पर पैसे देने चाहिए या नहीं. 45 फीसदी लोग इसके समर्थक हैं जबकि 44 फीसदी इसके विरोधी हैं. वित्त मंत्री क्रिस्टियान लिंडनर ने बच्चों को मिलने वाले भत्ते पर एक प्रेजेंटेशन देते हुए कहा कि सरकारी मदद काम ना करने की वजह नहीं बननी चाहिए. उन्होंने कहा, "हमारी चिंता है कि काम करने का प्रोत्साहन बना रहे." उनका यह भी कहना था कि कुछ भत्ते पाने के लिए रोजगार जरूरी होगा क्योंकि माता-पिता का काम ना करना बच्चों में गरीबी की एक बड़ी वजह है."

एसबी/ओएसजे (रॉयटर्स)

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