इमरान खान को झटका! पाक सुप्रीम कोर्ट ने अविश्वास प्रस्ताव खारिज करने के फैसले को बताया गलत

पाकिस्तान (Pakistan) के प्रधान न्यायाधीश (सीजेपी) उमर अता बंदियाल ने गुरुवार को कहा कि यह स्पष्ट है कि नेशनल असेंबली के डिप्टी स्पीकर कासिम खान सूरी का तीन अप्रैल का फैसला, जिसने प्रधानमंत्री इमरान खान (Imran Khan) के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को खारिज कर दिया था, गलत था. पाकिस्तान के प्रमुख अखबार डॉन की रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है.

इमरान खान (Photo Credits: Facebook)

इस्लामाबाद: पाकिस्तान (Pakistan) के प्रधान न्यायाधीश (सीजेपी) उमर अता बंदियाल ने गुरुवार को कहा कि यह स्पष्ट है कि नेशनल असेंबली के डिप्टी स्पीकर कासिम खान सूरी का तीन अप्रैल का फैसला, जिसने प्रधानमंत्री इमरान खान (Imran Khan) के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को खारिज कर दिया था, गलत था. पाकिस्तान के प्रमुख अखबार डॉन की रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है. पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने अक्टूबर से पहले आम चुनाव कराने में असमर्थता जताई, कहा- कम से कम 7 महीने का समय चाहिए

बंदियाल ने कहा, "असली सवाल यह है कि आगे क्या होता है?" उन्होंने कहा कि अब पीएमएल-एन के वकील और पाकिस्तान के अटॉर्नी जनरल (एजीपी) खालिद जावेद खान अदालत का मार्गदर्शन करेंगे कि कैसे आगे बढ़ना है. उन्होंने कहा, "हमें राष्ट्रीय हित को देखना होगा." उन्होंने कहा कि अदालत गुरुवार को ही फैसला जारी करेगी.

मालूम हो कि सीजेपी उमर अता बंदियाल की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय पीठ डिप्टी स्पीकर के अविश्वास प्रस्ताव को खारिज करने के फैसले की वैधता और पीएम इमरान खान की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा असेंबली को भंग करने से जुड़े स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई कर रही है.

सीजेपी बंदियाल की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ में न्यायमूर्ति इजाजुल अहसन, न्यायमूर्ति मजहर आलम मियांखेल, न्यायमूर्ति मुनीब अख्तर और न्यायमूर्ति मंडोखेल भी शामिल हैं. प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा नेशनल असेंबली को भंग किया गया था.

एजीपी - जो अपनी दलीलें देने वाले अंतिम व्यक्ति थे - ने अदालत को यह सूचित करके बात शुरू की कि वह खुली अदालत में राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की हालिया बैठक का विवरण नहीं दे पाएंगे. डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने जोर देकर कहा कि अदालत किसी की वफादारी पर सवाल उठाए बिना आदेश जारी कर सकती है.

उन्होंने तर्क दिया कि प्रधानमंत्री 'सबसे बड़े हितधारक' थे और इसलिए, उनके पास नेशनल असेंबली को भंग करने की शक्ति थी. एजीपी ने कहा, "प्रधानमंत्री को सदन भंग करने के लिए कारण बताने की जरूरत नहीं है."

उन्होंने यह भी कहा कि यदि राष्ट्रपति 48 घंटे के भीतर प्रधानमंत्री की सलाह पर निर्णय नहीं लेते हैं तो असेंबली भंग हो जाएगी. उन्होंने तर्क दिया कि अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान करना एक विधायक का मौलिक अधिकार नहीं है.

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