
पाकिस्तान में भीड़ ने अहमदिया समुदाय के एक शख्स को पीटकर मार डाला. अहमदिया ना केवल कट्टरपंथी संगठनों के निशाने पर रहते हैं, बल्कि उनके साथ होने वाले अपराध और उत्पीड़न में पुलिस और प्रशासन की भूमिका पर भी गंभीर सवाल हैं.यह वारदात 18 अप्रैल को पाकिस्तान के कराची शहर में हुई. धुर-दक्षिणपंथी 'तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान' (टीएलपी) के समर्थकों ने एक हॉल पर हमला किया. यह सभागार अहमदिया समुदाय का था और समुदाय के लोग यहां प्रार्थना कर रहे थे.
खबरों के मुताबिक, टीएलपी के कार्यकर्ता अहमदिया लोगों को उनके धार्मिक तौर-तरीकों का पालन करने से रोकना चाहते थे. मृतक का नाम लइक अहमद चीमा है. पाकिस्तानी अखबार 'डॉन' ने पुलिस अधिकारियों के हवाले से बताया है कि इस घटना में अब तक छह संदिग्धों की पहचान हो चुकी है.
मानवाधिकार आयोग ने की घटना की निंदा
'डॉन' के अनुसार, भीड़ जब ये सब कर रही थी तो कुछ दूरी पर खड़े चीमा वीडियो बना रहे थे. इसके बाद टीएलपी के कार्यकर्ताओं ने उन्हें मारा. घायल चीमा को अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी मौत हो गई. स्थानीय पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी मुहम्मद सफदर ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि भीड़ को यह पता चल गया था कि चीमा अहमदिया हैं. मुहम्मद सफदर ने बताया, "भीड़ में कई धार्मिक दलों के सदस्य शामिल थे."
पाकिस्तानी युवा क्यों बन रहे हैं कट्टरपंथी
मौके पर मौजूद एएफपी के एक पत्रकार ने बताया कि भीड़ में लगभग 600 लोग थे, जो नारेबाजी कर रहे थे. पुलिस एक जेल की गाड़ी में 25 अहमदिया लोगों को अपने साथ ले गई. पुलिस के मुताबिक, जब भीड़ ने प्रार्थना स्थल पर हमला किया उस वक्त करीब 50 अहमदिया अंदर मौजूद थे. भीड़ ने उन्हें घेर लिया था. ऐसे में उन्हें सुरक्षित बाहर निकालकर ले जाने के लिए जेल की एक गाड़ी बुलाई गई थी.
पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग ने घटना की निंदा करते हुए कहा कि वह इस घटना से हैरान है. आयोग ने कहा कि कानून-व्यवस्था की यह नाकामी एक प्रताड़ित समुदाय के व्यवस्थागत उत्पीड़न में "सरकार की मिलीभगत" की ओर ध्यान दिलाती है.
ईशनिंदा कानूनों के निशाने पर हैं अहमदिया
अहमदिया समुदाय धार्मिक अल्पसंख्यक हैं. दुनियाभर में इनकी आबादी करीब एक करोड़ है. अहमदिया खुद को मुसलमान मानते हैं, लेकिन पाकिस्तान का संविधान उन्हें मुसलमान नहीं मानता. कानून उन्हें इस बात की इजाजत नहीं देता कि वो खुद को और अपने धर्म को इस्लामिक कहें. वो अपने धार्मिक स्थान को मस्जिद नहीं कह सकते. ना ही हज पर मक्का जा सकते हैं.
टीएलपी एक कट्टर धार्मिक पार्टी है. उसके समर्थक और कार्यकर्ता नियमित रूप से अहमदिया समुदाय के धार्मिक स्थलों की निगरानी करते हैं. इस्लामिक तौर-तरीकों से मेल खाते ढंग से प्रार्थना करने पर पुलिस में उनकी शिकायत करते हैं और खुद भी उन्हें निशाना बनाते हैं.
पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग ने मार्च 2025 में एक रिपोर्ट जारी की थी. इसमें बताया गया कि धार्मिक अल्पसंख्यकों के घरों और धार्मिक स्थानों पर भीड़ द्वारा हमला करने की घटनाओं में वृद्धि देखी गई है. 'अंडर सीज: फ्रीडम ऑफ रिलीजन ऑर बिलीफ इन 2023-24' नाम की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अक्टूबर 2024 तक 750 से ज्यादा लोग ईशनिंदा के आरोपों में जेल में बंद थे. आयोग ने यह भी बताया कि ईशनिंदा कानूनों को अहमदिया के खिलाफ इस्तेमाल करने के मामलों में भी तेजी आई है.
रिपोर्ट के अनुसार, "इसमें ऐसे केस भी हैं, जिसकी शुरुआत अक्सर खुद कानून-व्यवस्था से जुड़े अधिकारी ही करते हैं." अहमदिया लोगों पर दर्ज मामलों के संदर्भ में रिपोर्ट ने रेखांकित किया कि "यह इस समुदाय के प्रति संस्थागत पूर्वाग्रह को दर्शाता है." आयोग के अनुसार, अहमदियाओं पर ईशनिंदा के मामले दर्ज करवाने में टीएलपी के लोगों की अहम भूमिका है. वो उन्हें ईद जैसे त्योहार मनाने से भी रोकते हैं.
पुलिस पर गंभीर आरोप
त्योहारों के समय ऐसी घटनाएं खासतौर पर बढ़ जाती है. मसलन, एमनेस्टी इंटरनेशनल ने जून 2024 की अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि ईद के आसपास, 10 से 19 जून के बीच दर्जनों ऐसे मामले दर्ज किए गए जिनमें पुलिस ने अहमदिया लोगों का उत्पीड़न किया. इनके अलावा 36 केस ऐसे थे, जिनमें मनमाने तरीके से उन्हें हिरासत में रखा गया. कई जगह अहमदिया प्रार्थना स्थलों पर हमले भी हुए.
पाकिस्तान में सिखों पर हमला, भारत ने जताया विरोध
'ह्युमन राइट्स वॉच' की 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान में ईशनिंदा समेत कई खास कानूनों में अहमदिया समुदाय के लोग मुख्य रूप से निशाना बनाए जाते हैं. उनके धार्मिक स्थानों पर भी हमले आम हैं. पिछले साल जुलाई में भीड़ ने कराची स्थित एक अहमदिया प्रार्थना स्थल में तोड़फोड़ की.
पाकिस्तान में चर्चों और ईसाईयों पर हमले के मामले में गिरफ्तारियां
अगस्त 2024 में भीड़ ने लाहौर में एक अहमदिया की फैक्ट्री पर हमला किया. भीड़ का आरोप था कि उसने ईशनिंदा की है. इस मामले में हमलावरों पर कार्रवाई करने की जगह प्रशासन ने अहमदिया समुदाय के ही आठ लोगों पर ईशनिंदा का मामला दर्ज किया.