मलेशिया ने मौत की अनिवार्य सजा को खत्म किया

मलेशिया ने गंभीर अपराधों के लिए अनिवार्य मौत की सजा खत्म कर दी है.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

मलेशिया ने गंभीर अपराधों के लिए अनिवार्य मौत की सजा खत्म कर दी है. सोमवार को वहां की संसद ने इस प्रस्ताव को पारित कर दिया. देश में करीब 1,300 लोगों को इस बदलाव से राहत मिलेगी.मलेशिया की संसद ने सोमवार को एक प्रस्ताव पारित कर अनिवार्य मौत की सजा पर रोक लगा दी. हालांकि देश में मौत की सजा पूरी तरह खत्म नहीं की गई है और कुछ अति गंभीर अपराधों में अब भी इसका विकल्प बना रहेगा. लेकिन गंभीर अपराधों में अनिवार्य रूप से दी जाने वाली मौत की सजा खत्म हो गई है.

नए नियमों के तहत अब अदालतों को अनिवार्य रूप से मौत की सजा नहीं देनी होगी और उनके पास 30 से 40 साल की कैद का विकल्प होगा. देश के कानून उप मंत्री रामकरपाल सिंह ने बताया कि कम से कम 12 कोड़ों की सजा भी कैद के साथ देने का विकल्प होगा.

अब तक नियम ऐसे थे कि कत्ल, नशीली दवाओं की तस्करी, देशद्रोह, अपहरण और आतंकवाद जैसे अपराधों में अदालतों के पास मौत की सजा के अलावा कोई विकल्प ही नहीं था. अधिकारियों ने बताया कि अब अपहरण या ऐसे अपराधों में, जिनमें किसी की जान ना गई हो, उनमें मौत की सजा नहीं दी जाएगी.

1,318 लोगों को विकल्प मिलेगा

एक अन्य सुधार उम्रकैद में किया गया है. पहले उम्रकैद का अर्थ मौत तक जेल में बंद रहना होता था लेकिन अब उसे घटाकर 30 से 40 वर्ष तक कर दिया गया है. रामकरपाल सिंह ने इसे देश की कानून और न्याय व्यवस्था में एक प्रगतिशील कदम बताया. उन्होंने कहा कि देश में 1,318 लोग मौत की सजा सुनाए जाने के बाद जेलों में बंद हैं. इनमें से 842 ऐसे हैं जिनके अपील के सारे विकल्प खत्म हो चुके हैं. ये ज्यादातर मामले नशीली दवाओं की तस्करी से जुड़े हैं.

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संसद के ऊपरी सदन से पारित होने के बाद यह बिल देश के राजा के पास दस्तखत के लिए भेजा जाएगा और उनके दस्तखत के बाद ही कानून का रूप लेगा. नया कानून लागू हो जाने के बाद कैदियों के पास पुनर्विचार याचिका दायर करने के लिए 90 दिन का वक्त होगा. लेकिन यह अपील सिर्फ सजा के लिए होगी, अपराधी करार दिए जाने के फैसले के खिलाफ नहीं.

सिंह ने कहा, "सजा के खिलाफ पुनर्विचार याचिका का विकल्प दिखाता है कि सरकार न्याय और कानून व्यवस्था को सुधारने और बेहतर बनाने के लिए हमेशा प्रतिबद्ध है.” उन्होंने जोर देकर कहा कि अदालतों के पास अब भी याचिका पर विचार के बाद मौत की सजा बनाए रखने का अधिकार होगा.

मलेशिया में फांसी पर 2018 से ही रोक लगी हुई थी. पिछले साल ही सरकार ने मौत की अनिवार्य सजा खत्म करने का प्रस्ताव पेश कर दिया था लेकिन चुनाव की वजह से संसद भंग हो गई और तब प्रस्ताव पारित नहीं हो पाया था. एंटी डेथ पेनल्टी एशिया नेटवर्क (एडीपीएएन) नामक संस्था के अनुसार देश में जितने कैदी मौत की सजा का इंतजार कर रहे हैं, उनमें से 500 से ज्यादा विदेशी नागरिक हैं.

अंतरराष्ट्रीय स्थिति

एडीपीएएन की प्रमुख डोबी च्यू ने कहा, "मोटे तौर पर अब मृत्युदंड को तीन तरह के अपराधों के लिए सीमित कर दिया गया है, जो हैं कत्ल, नशीली दवाओं की तस्करी और देशद्रोह. यह एक अच्छी पहल है और मलेशिया को अंतरराष्ट्रीय मानकों और नजदीक ले आती है.”

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हाल के सालों में ज्यादा से ज्यादा देश मौत की सजा खत्म करने की ओर बढ़े हैं. 2022 के आखिर तक 111 देशों ने मृत्युदंड को पूरी तरह खत्म कर दिया था. सात देश ऐसे हैं जहां सामान्य अपराधों में मौत की सजा बंद की जा चुकी है और सिर्फ देशद्रोह या युद्ध अपराधों में ही ऐसी सजा का प्रावधान है. 24 देशों में मृत्युदंड को कानूनी रूप से खत्म नहीं किया गया है लेकिन वहां व्यवहार में यह खत्म हो चुकी है. 53 देश अब भी ऐसे हैं जहां मौत की सजा दी जाती है, जिनमें भारत भी शामिल है.

अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन, एमनेस्टी इंटरनेशनल का मानना​​ है कि मृत्युदंड मानवाधिकार का उल्लंघन है. वह इसे 1948 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनाई गई मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (यूनिवर्सल डिक्लेएरेशन) के तहत जीवन के अधिकार और यातना या क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या दंड से मुक्त रहने के अधिकार के खिलाफ मानता है.

वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)

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