ब्रिटेन के अखबार डेली मेल ने यह दावा किया है कि लेस्टर शहर में सितंबर 2022 में भड़की हिंसा के तार भारत की सत्ताधारी पार्टी बीजेपी से जुड़े हो सकते हैं. हालांकि इसे साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं दिया गया है.हिंसा के मामलों में जांच अब तक पूरी नहीं हुई है लेकिन सुरक्षा एजेंसी से जुड़े एक अघोषित सूत्र के हवाले से लिखी गई इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अखबार को मिली जानकारी के अनुसार बीजेपी से जुड़े लोगों ने लेस्टर में ब्रिटिश हिंदुओं को मुसलमानों के खिलाफ कार्रवाई के लिए उकसाया. डीडब्ल्यू ने इस सांप्रदायिक हिंसा की जांच कर रही लेस्टशर पुलिस से इस रिपोर्ट के दावे और हिंसा की जांच से संबंधित ताजा जानकारी मांगी लेकिन पुलिस के मीडिया अधिकारी नरिन्दर पुनिया ने ऐसे किसी भी दावे की पुष्टि करने से इंकार कर दिया.
इस मुद्दे पर ब्रिटेन में भी बहस चल रही है. कई सांसदों और दूसरे लोगों ने अखबार की रिपोर्ट की आलोचना की है. भारतीय मूल के ब्रिटिश सांसद लॉर्ड रामी रेंजर ने ट्वीट किया है कि ब्रिटिश लोकतंत्र हर कीमत पर ध्यान खींचने को आतुर पत्रकारों द्वारा धीरे धीरे मारी जा रही है. अब कोई सज्जन आदमी डर से अपने विचार व्यक्त करने की हिम्मत नहीं करता.
अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक इस तरह की दखलअंदाजी के सबूत हैं, सीमित सदस्यों वाले व्हाट्सएप ग्रुप जिनके सहारे बीजेपी से जुड़े लोगों ने हिंदूओं को सड़कों पर उतरने के लिए भड़काया. डेली मेल की ताजा रिपोर्ट की चर्चा तो हो रही है लेकिन यह पहला मौका नहीं है जब हिंदू राष्ट्रवादी भावनाओं को लेस्टर में हुई हिंसा से जोड़ा गया हो. विश्लेषक पहले भी कहते आए हैं कि पिछले कुछ वर्षों में भारत से लेस्टर आकर बसे हिंदुओं और पहले से बसे मुस्लिम समुदाय के बीच पनप रहा तनाव इस हिंसा के कारकों में है.
इसी तरह हिंदू-मुस्लिम हिंसा भड़काने के लिए सोशल मीडिया के इस्तेमाल की बात कई रिसर्च रिपोर्टों में कही जा चुकी है, हालांकि प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी का नाम इसमें पहली बार जोड़ा गया है. गौर करने लायक बात ये भी है कि सात महीने बीतने और 100 से ज्यादा गिरफ्तारियों के बाद भी लेस्टरशर पुलिस की तरफ से हिंसा के मामलों की जांच अब तक पूरी नहीं हुई और ना ही ऐसी कोई आधिकारिक रिपोर्ट है जो ऐसे किसी दावे की पुष्टि करती हो. लेस्टर में हिंसा और तनाव के मामले में पुलिस की आधिकारिक वेबसाइट पर साझा की गई जानकारियों में भी सितंबर महीने से अब तक केवल गिरफ्तारियों की सूचना है या फिर हिंसा से संबंधित मामलों में आरोपियों की शिनाख्त के लिए जारी की गई तस्वीरें.
लेस्टर में क्या हुआ
लेस्टर ब्रिटेन के उन शहरों में है जहां सबसे ज्यादा संख्या में गैर-ब्रिटिश आबादी रहती है. पूर्वी लेस्टर में तनाव का दौर 28 अगस्त को हुए भारत-पाक टी20 मैच के बाद शुरू हुआ. एशिया कप के दौरान हुए इस मैच में भारत की जीत के बाद समर्थक जश्न मनाने के लिए शहर के बेलग्रेव इलाके में सड़क पर उतरे, नारेबाजी हुई और जश्न हिंसक झड़पों में बदल गया.
हिंसा के दौरान गाड़ियां तोड़ी गईं और संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया. युवा राजनीतिक विश्लेषक क्रिस ब्लैकबर्न मानते हैं कि क्रिकेट से जुड़ी हिंसा इस शहर के लिए नई नहीं है. हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं कि जिस तरह सोशल मीडिया पर धर्म और संप्रद्रायों को निशाना बनाकर फैलाए गए जहरीले संदेश दिखे वो जरूर इस शहर और इसके सांस्कृतिक ताने बाने के लिहाज से नया रहा. लेस्टर उन विविधतापूर्ण शहरों में शामिल है जहां हिन्दू और मुसलमान दशकों से साथ रहते आए हैं लेकिन हिंसा के इस दौर ने उस ऐतिहासिक परंपरा के भविष्य पर सवालिया निशान लगा दिया.
ब्रिटेन में ईसाई समुदाय के बाद मुसलमान और हिंदू धार्मिक समुदाय के लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है. 2017 के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हिंदुओं की संख्या 10,21,449 है जबकि मुसलमानों की आबादी 33,72,966 है. दोनों ही समुदायों में रोजगार का स्तर बेहतर है. हिंदुओं की कुल आबादी का 97 फीसदी हिस्सा शहरों में रहता है जिसमें से 50 फीसदी अकेले राजधानी लंदन में रहते हैं.
मुसलमान भी बड़ी संख्या में लंदन में रहते हैं लेकिन उनकी रिहाइश अंदरूनी इलाकों में ज्यादा है. लंदन से बाहर हिंदुओं की सबसे बड़ी संख्या लेस्टर शहर में केंद्रित है. साल 2011 में हुई जनगणना में लेस्टर की कुल आबादी के करीब 16 फीसदी लोगों ने अपनी धार्मिक पहचान हिंदू बताई. मुसलमानों की सबसे ज्यादा संख्या वाला शहर बर्मिंघम है, जिसके बाद लंदन का स्थान है जबकि लेस्टर में मुसलमानों की आबादी 69000 है और स्थानीय व्यवसायों में इस समुदाय की अच्छी भागीदारी है.
धर्म और राष्ट्रवाद के नाम पर बंट रहे हैं आप्रवासी भारतीय
कई रिपोर्टें, कई दावे
लेस्टर शहर में हिंसा के मामले में लेस्टर विश्वविद्यालय के क्रिमिनोलॉजी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर क्रिस एलेन की अगुआई में स्वतंत्र जांच की घोषणा हुई थी लेकिन एलेन के खिलाफ हिंदू गुटों की आवाजें उठने के बाद जांच खटाई में पड़ गई. इस मामले में कुछ रिपोर्टें जरूर आई हैं जिनमें हिंसा से जुड़े विभिन्न पहलुओं की चर्चा की गई है.
अमेरिका के रटगर विश्वविद्यालय के नेटवर्क कंटेजियन रिसर्च इंस्टीट्यूट ने अपनी शोध रिपोर्ट में कहा कि ऑनलाइन जगत में ऐसी बहुत सी झूठी और जानबूझ कर भड़काने वाली खबरें तैरती रहीं जिनका सच से कोई वास्ता नहीं था. इसमें एक बच्ची को अगवा करने, मस्जिद पर हमले और वैश्विक प्रभुत्व कायम करने से जुड़ी बातें कहीं जा रही थीं. बाद में इन्हें हटा दिया गया.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि ट्विटर पर जिन बातों को सबसे ज्यादा ट्वीट किया गया उनमें हिंसा का जिम्मा मुसलमानों पर डाला जा रहा था और सबसे ज्यादा रीट्वीट करने वाला नेटवर्क ब्रिटेन से बाहर भारत में स्थित था. हिंदू और मुसलमानों ने एक दूसरे के खिलाफ भड़काऊ बातें फैलाने के लिए लिए सोशल मीडिया का जम कर सहारा लिया.
लेस्टर हिंसा से जुड़ी एक कथित फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट ‘हिंदू अधिकारों’ की पैरोकार और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष रश्मि सामंत और ब्रिटिश राजनीतिक विश्लेषक क्रिस ब्लैकबर्न ने तैयार की. दिल्ली के सेंटर फॉर डेमोक्रेसी, प्लूरलिज्म एंड ह्यूमन राइट्स नाम की गैर-सरकारी संस्था के लिए लिखी रिपोर्ट में दावा किया गया कि लेस्टर में हिंसा की जड़ें जमीनी सचाई में देखी जानी चाहिए जहां “मुस्लिम-बहुल पूर्वी लेस्टर इलाका हिंदू आबादी के लिए खतरा पैदा कर रहा है."
इस तरह की कई और रिपोर्टें और दावे पढ़ने के लिए मिल जाएंगे लेकिन आधिकारिक तौर पर कोई स्वतंत्र जांच ना होने और ठोस सबूतों पर आधारित व्यापक रिपोर्ट सामने ना आने की वजह से तस्वीर पूरी साफ नहीं होती. एक शहर और उसके दशकों पुराने सांस्कृतिक ढांचे पर लगा प्रश्नचिन्ह दावों और प्रतिवादों की राजनीति में फंस कर रह गया है और इस पहेली को सुलझाने की पहल फिलहाल दिखाई नहीं दे रही.