यूरोपीय संघ (ईयू) के पर्यावरण मंत्रियों ने क्षतिग्रस्त पारिस्थितिकी तंत्रों की सेहत सुधारने और उन्हें बहाल करने के कानून को मंजूरी दे दी है.किसानों के विरोध प्रदर्शनों और कई महीनों तक चली ऊहापोह के बाद पारित हुए इस कानून से ईयू सदस्य देशों की जैव विविधता संपन्न होने की उम्मीद है. एक ओर जहां इस कानून से ईयू को हरित लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलेगी, वहीं रूढ़िवादी धड़ा और कई किसान अब भी इसकी आलोचना कर रहे हैं.
इस कानून के कारण ऑस्ट्रिया सरकार में गंभीर मतभेद
ऑस्ट्रिया के चांसलर कार्ल नेहामर ने ईयू पर्यावरण मंत्रियों द्वारा कानून को पारित किए जाने की निंदा करते हुए इसे "गैरकानूनी" बताया है. दिलचस्प है कि ऑस्ट्रिया की पर्यावरण मंत्री लूयोनूर गीवेसलर भी विधेयक पारित करने वाले मंत्रियों में शामिल थीं. गीवेसलर, ग्रीन्स पार्टी की नेता हैं. 16 जून को उन्होंने एलान किया कि वह अपनी पार्टी की गठबंधन सरकार के खिलाफ जाकर विधेयक के समर्थन में वोट डालेंगी.
चांसलर नेहामर सत्तारूढ़ कंजर्वेटिव पीपल्स पार्टी (ओईवीपी) के सदस्य हैं और उनकी पार्टी नेचर रेस्टोरेशन लॉ का विरोध कर रही है. समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक, ईयू में हुई वोटिंग से पहले ही नेहामार ने कहा कि अगर गीवेसलर ने विधेयक के पक्ष में वोट डाला, तो उनकी सरकार यूरोपियन कोर्ट ऑफ जस्टिस में इसकी शिकायत दायर करेगी.
वहीं, गीवेसलर ने कहा कि बिल के समर्थन का उनका फैसला कानूनी है. वोटिंग से पहले पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा, "मैं पूरी तरह से सहमत हूं कि आज का दिन कदम उठाने का दिन है. यह प्रकृति और हमारे ग्रह के लिए निर्णायक दिन है."
ओईवीपी और ग्रीन्स पार्टी ने 2020 में गठबंधन सरकार बनाई थी. ऑस्ट्रिया में अगला आम चुनाव इसी साल सितंबर में होना है. चांसलर नेहामर और पर्यावरण मंत्री गीवेसलर से बीच की यह असहमति, ऑस्ट्रिया की इस गठबंधन सरकार में अब तक का सबसे गंभीर मतभेद माना जा रहा है.
क्या है नेचर रेस्टोरेशन लॉ?
यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी के मुताबिक, यूरोप की प्रकृति और पर्यावरण को कई कारकों से गंभीर नुकसान पहुंच रहा है. जलवायु परिवर्तन, खेती में सस्टेनेबल तरीकों की कमी, बढ़ते प्रदूषण और शहरीकरण जैसे कारणों से यूरोप के 80 फीसदी से ज्यादा नैचुरल हैबिटैट, यानी प्राकृतिक निवास स्थलों की हालत खराब है.
"नेचर रेस्टोरेशन लॉ" जैव विविधता में हुए नुकसान को रोककर इनकी सेहत बहाल करने को वरीयता देगा. इसके तहत, ईयू के सदस्य देशों को खराब स्थिति में पहुंच चुके अपने हैबिटैट क्रमवार तरीके से बहाल करने होंगे. 2030 तक कम-से-कम 30 फीसदी, 2040 तक 60 फीसदी और 2050 तक 90 फीसदी हैबिटेट बहाल करने का लक्ष्य है.
इन हैबिटैट्स में जंगल, घास के मैदान, दलदली क्षेत्र, नदी, झील, मूंगे की चट्टानों के अलावा 'नैचुरा 2000' भी शामिल हैं. नैचुरा 2000, दुनिया में सबसे बड़ा संरक्षित इलाकों का नेटवर्क है और इसमें 27 हजार से ज्यादा प्राकृतिक जगहें आती हैं.
जैव विविधता बहाल करने को भी वरीयता
इस कानून की परिधि में वन्यजीव और समुद्री जीवों का संरक्षण भी शामिल है. साथ ही हवा और पानी को साफ करने पर भी ध्यान दिया जाएगा. ईयू की जैव विविधता रणनीति के साथ मिलकर यह कानून पेरिस जलवायु समझौते के मुताबिक ग्लोबल वॉर्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने में भी मदद करेगा.
कानून के अन्य प्रमुख पक्षों में मधुमक्खी जैसे कुदरती पोलिनेटरों की संख्या बढ़ाना, तितली और पक्षियों की कई प्रजातियों का संरक्षण, साल 2030 तक कम-से-कम 300 करोड़ पौधे लगाने में मदद करना, नदियों में बने मानव निर्मित अवरोधकों को हटाकर कनेक्टिविटी सुधारना, बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं की रोकथाम के उपाय भी शामिल हैं.
रूढ़िवादी राजनीतिक दल कर रहे हैं विरोध
जून 2022 में यूरोपीय आयोग ने इस कानून का शुरुआती प्रस्ताव दिया था. तब से ही इसपर जोरदार बहस चल रही है. वाम रुझान की राजनीतिक पार्टियां और जलवायु वैज्ञानिक इसे दीर्घकालिक रणनीति के लिए जरूरी बता रहे हैं. उनके मुताबिक, इन तैयारियों से मौजूदा उद्योगों और कृषि क्षेत्र को भविष्य की चुनौतियों के मुताबिक ढालने में मदद मिलेगी. लेकिन यूरोप के रूढ़िवादी दल इसका विरोध करते रहे हैं.
यूरोपियन पीपल्स पार्टी (ईपीपी) ने आरोप लगाया कि इससे यूरोप में खेती, वानिकी और मछलीपालन तबाह हो जाएगा. संसद के भीतर कई बार झटके खाने के बाद जुलाई 2023 में हुई वोटिंग में कानून के समर्थन में 336 और विरोध में 300 वोट डले. 17 जून को ईयू पर्यावरण मंत्रियों की वोटिंग में भी मतभेद बरकरार दिखा. इटली, हंगरी, पोलैंड, नीदरलैंड्स, फिनलैंड और स्वीडन ने इस कानून को नामंजूर किया. हालांकि, ऑस्ट्रियन मिनिस्टर गीवेसलर के वोट से विधेयक को पास कराने के लिए जरूरी मत मिल गए.
किसान भी इस कानून का पुरजोर विरोध कर रहे हैं
विरोधियों की यह भी दलील है कि नेचर रेस्टोरेशन के लिए काफी ज्यादा जमीन संरक्षित की जा रही है. इससे खाद्य उत्पादन, परिवहन और घर बनाने जैसी गतिविधियों को नुकसान होगा. बड़ी संख्या में किसान भी इस कानून का विरोध कर रहे हैं. इस साल ईयू के कई देशों में बड़े स्तर पर हुए किसान प्रदर्शनों में यह कानून भी एक बड़ा मुद्दा रहा.
किसानों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन और संसाधनों की कमी के कारण पहले ही जूझ रहे कृषि क्षेत्र पर इस कानून से और दबाव बढ़ेगा. किसानों की यह भी मांग है कि खेती के हरित तरीकों की ओर बढ़ने और सस्टेनेबल तरीके अपनाने के लिए उन्हें जिस तरह की मदद चाहिए, वह मिल नहीं रही. हालिया यूरोपीय संघ के चुनावों में दक्षिणपंथ को मिली बढ़त के पीछे एक वजह यह भी मानी जा रही है.