समूचे बांग्लादेश में कर्फ्यू, 900 से ज्यादा भारतीय छात्रों की सुरक्षित वापसी
बांग्लादेश में लगातार हो रही हिंसा के बीच पूरे देश में कर्फ्यू लगा दिया गया है.
बांग्लादेश में लगातार हो रही हिंसा के बीच पूरे देश में कर्फ्यू लगा दिया गया है. अब तक 900 से ज्यादा भारतीय छात्र सुरक्षित लौट चुके हैं. भारतीय सीमा से होते हुए नेपाल और भूटान के भी कई छात्र बांग्लादेश से वापस आ रहे हैं.बांग्लादेश में बीते एक हफ्ते से जारी हिंसा के बीच अब पूरे देश में कर्फ्यू लगा दिया गया है. अब तक पुलिस हिंसा को रोकने में प्रभावी नहीं रही है, ऐसे में उग्र स्थितियों को काबू करने के लिए सेना को पट्रोलिंग पर लगाया गया है. गृहमंत्री असदुज्जमां खान ने एलान किया कि राजधानी ढाका समेत बाकी सभी जिलों में भी सेना को तैनात किया जाएगा.
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सशस्त्र बलों के एक प्रवक्ता शहादत हुसैन ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "कानून व्यवस्था की स्थिति पर नियंत्रण के लिए देशभर में सेना को तैनात किया गया है." हिंसक स्थितियों के मद्देनजर प्रधानमंत्री शेख हसीना ने प्रस्तावित विदेश यात्रा भी स्थगित कर दी है. प्रेस सचिव नईमुल इस्लाम खान ने बताया, "प्रधानमंत्री ने मौजूदा हालात के कारण स्पेन और ब्राजील की यात्रा रद्द कर दी है."
16 जुलाई से ही ज्यादा उग्र होते गए हालात
19 जुलाई को ढाका में रैलियों और जनसभाओं पर घोषित पाबंदी के बावजूद बड़े स्तर पर हिंसा हुई. इस दिन कितने लोग मारे गए, इसपर अलग-अलग संख्याएं बताई जा रही हैं. सोमोय टीवी ने मृतकों की संख्या 43 बताई. बीबीसी बांग्ला ने बांग्लादेश के अखबार प्रोथोम आलो और डेली स्टार के हवाले से बताया कि बीते दिन कम-से-कम 56 लोग मारे गए.
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एएफपी ने पुलिस महकमे और अस्पतालों के हवाले से बताया कि इस हफ्ते अब तक कम-से-कम 115 लोग मारे जा चुके हैं. समाचार एजेंसी एपी ने स्थानीय अखबारों के मार्फत इस हफ्ते मारे गए लोगों की संख्या 103 बताई है. एपी के ग्राउंड पर मौजूद एक संवाददाता ने 19 जुलाई को ढाका मेडिकल कॉलेज के अस्पताल में 23 शव देखे. हालांकि, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि ये सभी इसी दिन मारे गए.
अस्पतालों में गोली लगने से होने वाली मौतों की संख्या बढ़ रही है. पुलिस विभाग के एक प्रवक्ता फारुख हुसैन ने एएएफपी को बताया, "19 जुलाई को राजधानी में हजारों की संख्या में लोगों ने पुलिस से संघर्ष किया. कम-से-कम 150 पुलिसकर्मियों को अस्पताल में भर्ती कराना गया है. प्रदर्शनकारियों ने कई पुलिस बूथों में आग लगा दी. कई सरकारी इमारतें लूटी गईं और फूंक दी गईं." प्रदर्शन आयोजित कर रहे छात्रों के मुख्य समूह 'स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन' के एक प्रवक्ता ने बताया कि उनके नेताओं को भी गिरफ्तार किया गया है.
मौतों का यह सिलसिला 16 जुलाई से शुरू हुआ और उसके बाद से अब तक क्रमवार सभी दिन "अब तक के सबसे हिंसक दिन" रहे हैं. इंटरनेट, टेलिफोन और मोबाइल एसएमएस सेवाओं पर लगी अस्थायी रोक के कारण बांग्लादेशी अखबारों के ऑनलाइन संस्करण उपलब्ध नहीं हैं और जानकारियां बाहर नहीं आ रही हैं. सरकार ने भी अभी तक मृतकों का कोई आधिकारिक आंकड़ा जारी नहीं किया है.
अब तक 900 से ज्यादा भारतीय छात्र लौट चुके हैं
विदेश मंत्रालय ने 20 जुलाई को एक बयान जारी कर बताया कि ढाका स्थित भारतीय उच्चायोग और चटगांव, सिलहट और खुलना में सहायक उच्चायोग बांग्लादेश में रह रहे भारत के नागरिकों को सुरक्षित वापस आने में मदद कर रहे हैं. अब तक 778 भारतीय छात्र जमीन के रास्ते और 200 छात्र ढाका और चटगांव से विमान लेकर भारत आ चुके हैं. नेपाल और भूटान से आ रहे छात्रों को सीमा पार कर भारत आने में सहयोग दिया जा रहा है.
दक्षिण एशिया के अपने पड़ोसी देश में जारी घटनाक्रम को देखते हुए ढाका स्थित भारतीय दूतावास ने 18 जुलाई को वहां रह रहे अपने नागरिकों के लिए सलाह जारी की थी. इसमें कहा गया, "बांग्लादेश में मौजूदा स्थिति के मद्देनजर यहां रह रहे भारतीय समुदाय के सदस्य और भारतीय छात्रों को सलाह दी जाती है कि वे बाहर आने-जाने से बचें और अपने आवासीय परिसर से बाहर कम-से-कम निकलें. किसी आपातकालीन स्थिति या मदद की जरूरत पड़ने पर कृपया हाई कमीशन और हमारे सहायक उच्च आयोग से इन चौबीसों घंटे खुले इमरजेंसी नंबरों पर संपर्क करें."
बीते दिन भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने भी बांग्लादेश में रह रहे भारतीय नागरिकों से एहतियात बरतने की अपील की. अपनी साप्ताहिक मीडिया ब्रीफिंग में बांग्लादेश की स्थितियों पर पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में करीब 15,000 भारतीय रह रहे हैं. इनमें 8,500 छात्र हैं. इन भारतीय छात्रों की एक बड़ी संख्या वहां मेडिकल और मेडिसिन की पढ़ाई करती है.
रणधीर जायसवाल ने बताया, "विदेश मंत्री खुद हालात पर नजर रख रहे हैं. भारतीय उच्चायोग लगातार आपको अपडेट्स देता रहेगा. बांग्लादेश में भारत के जो लोग रह रहे हैं, उनके परिवार से हमारा आग्रह है कि वे हमसे संपर्क में रहें, हमारी अपडेट्स पर नजर रखें. हम अपने सभी नागरिकों को सहायता उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध हैं."
मेघालय के रास्ते लौट रहे हैं भारत, नेपाल, भूटान के नागरिक
बांग्लादेश और भारत के बीच 4,096 किलोमीटर लंबी सीमा जुड़ी है. इसमें से करीब 443 किलोमीटर लंबी सीमा मेघालय से सटी है. ऐसे में बड़ी संख्या में लोग मेघालय से जुड़ी सीमा पार कर लौट रहे हैं. समाचार एजेंसी पीटीआई ने बताया कि 19 जुलाई को मेघालय के डावकी चेक पोस्ट से होकर करीब 363 लोग बांग्लादेश से भारत आए. इनमें 204 भारतीय, 158 नेपाली और एक भूटानी नागरिक हैं.
प्रदेश के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने 20 जुलाई को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बताया, "अपने छात्रों को सुरक्षित लाने के लिए हमारी सरकार भारतीय दूतावास और बांग्लादेश के मेडिकल कॉलेजों के साथ लगातार संपर्क में है. अगरतला में बसों को तैयार रखा गया है. हमारे छात्रों को सुरक्षित घर लाने के लिए बाकी इंतजाम भी किए गए हैं."
इससे पहले 18 जुलाई को भी उन्होंने एक्स पर लिखा, "अब तक भारत के 161 छात्रों को, जिनमें 63 मेघालय से हैं, सुरक्षित बाहर निकाला जा चुका है. मेघालय सरकार ने एक खास टीम बनाई है, जो बांग्लादेश से लौटने में छात्रों की मदद करेगी. बांग्लादेश में जारी संघर्ष के बीच नेपाल के 95 और भूटान के सात छात्रों को भी सुरक्षित मेघालय लाया गया है."
भारत लौट रहे छात्रों ने सुनाई आपबीती
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने 19 जुलाई को बांग्लादेश से निकाले गए कुछ भारतीय छात्रों से बात कर उनके अनुभव बताए. इनमें से एक आसिफ हुसैन, असम के धुबरी के रहने वाले हैं और बांग्लादेश के माणिकगंज जिले के एक मेडिकल कॉलेज में पढ़ते हैं. यह जगह राजधानी ढाका से करीब 30 किलोमीटर दूर है. हुसैन बताते हैं,"हमारे कॉलेज में हिंसा नहीं हुई थी, लेकिन हमने सुना कि 15 मिनट की दूरी पर जो शहर है, वहां दिक्कत है."
हुसैन ने बताया कि जब ढाका में छात्रों के मारे जाने की खबरें आने लगीं, तो उनके कॉलेज के करीब 80 भारतीय छात्रों ने टैक्सियां लीं और 170 किलोमीटर दूर पश्चिम बंगाल से लगी सीमा पर पहुंचे. सब लोग काफी डरे हुए थे, हालात काफी खौफनाक थे और ये लोग भारत में अपने परिवार से भी संपर्क नहीं कर पा रहे थे. हालांकि, छात्रों के आग्रह पर भारतीय उच्चायोग ने उन्हें सुरक्षा मुहैया कराई और सुरक्षित निकलने में मदद की. छात्रों का यह जत्था तड़के करीब ढाई बजे रवाना हुआ और छह घंटे बाद बॉर्डर पर पहुंचा. आसिफ बताते हैं, "यह बहुत डरावना था. अब भी मेरी ढाका में रह रहे अपने कई दोस्तों से बात नहीं हो पाई है."