सूक्ष्मजीवों की मदद से सुलझाई जा सकती है हत्या की गुत्थी
किसी की लाश मिली है, लेकिन कोई चश्मदीद नहीं है, कोई हथियार नहीं है, कोई सुराग नहीं है.
किसी की लाश मिली है, लेकिन कोई चश्मदीद नहीं है, कोई हथियार नहीं है, कोई सुराग नहीं है. ऐसे में मौत की गुत्थी सुलझाना मुश्किल होता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि सूक्ष्म जीव हत्या के बारे में अहम जानकारियां दे सकते हैं.करीब 800 साल पहले की बात है. चीन के एक गांव में शव मिला था, जिस पर छुरा घोंपे जाने के कई निशान थे. इस वारदात के बाद पूरे गांव में सनसनी फैल गई थी. जांच करने के बाद, स्थानीय जासूस सोंग सी ने पता लगाया कि ये निशान दरांती से किए गए हमले के थे. अपराधी का पता लगाने के लिए उन्होंने भरी दोपहरी में ग्रामीणों को इकट्ठा किया और उनसे कहा कि वे जांच के लिए अपनी-अपनी दरांती नीचे रख दें.
दरांती नीचे रखते ही चारों ओर मक्खियां मंडराने लगीं. आखिरकार वे एक ही दरांती पर जमा हो गईं. पीड़ित के खून की थोड़ी मात्रा से आकर्षित होकर मक्खियों ने अपराधी की पहचान कर ली, जिसे बाद में माफी की गुहार लगाते हुए पकड़ लिया गया. इस तरह हत्या के इस मामले की गुत्थी सुलझ गई.
ये पहला दर्ज मामला है जहां किसी जासूस ने अपराधी की पहचान करने के लिए कीड़ों का अध्ययन किया. विज्ञान के इस क्षेत्र को अब फॉरेंसिक एंटोमोलॉजी के नाम से जाना जाता है.
हमारी खुशी और गम तय करता है बैक्टीरिया
जर्मनी के फॉरेंसिक वैज्ञानिक मार्क बेनेके नियमित रूप से घटनास्थलों पर शवों के साथ मिले मक्खियों, चींटियों और बीटल जैसे कीड़ों के जीवन चक्र का विश्लेषण करते हैं. यह सुनने में भले ही वीभत्स लगता है, लेकिन फॉरेंसिक एंटोमोलॉजी कानूनी मामलों में बहुत मददगार साबित हुआ है. इससे यह पता लगाने में मदद मिलती है कि किसी की मृत्यु कब हुई और कई बार तो यह भी पता चल जाता है कि कैसे हुई.
उदाहरण के लिए, 2017 के एक मामले में बेनेके ने मक्खियों और चींटियों के जीवन चक्र का अध्ययन करके यह बताया कि इटली में एक 80 साल के एक बुजुर्ग की मृत्यु उपेक्षा के कारण हुई थी. उस व्यक्ति की सही से देखभाल नहीं की जा रही थी. ये मक्खियां और चींटियां उस व्यक्ति के घर में पाई गई थीं.
बेनेके ने कहा, "फॉरेंसिक एंटोमोलॉजिस्ट की संख्या कम है, लेकिन वे कठिन से कठिन मामलों की गुत्थी सुलझाने में मददगार साबित हो सकते हैं. साथ ही, कई अनसुलझे सवालों का जवाब भी तलाशने में मदद कर सकते हैं. जैसे, क्या लाश कभी जंगल की सीमा पर थी, हां या ना?”
अपराध की जगह पर कीड़े
बेनेके ने कहा कि कुछ खास मामलों में कीड़े मददगार साबित हो सकते हैं, लेकिन अदालत को साक्ष्य उपलब्ध कराने के लिए अपराध की जगह से सही जानकारी जुटाना अक्सर मुश्किल होता है.
कीड़ों का जीवन चक्र आसपास के तापमान, नमी और प्रकाश की मात्रा पर निर्भर करता है. सर्दियों या ठंडे वातावरण में इनका पता लगाना काफी मुश्किल होता है, क्योंकि ऐसे मौसम में कीड़े कम ही पाए जाते हैं.
बेनेके ने ईमेल के जरिए डीडब्ल्यू को बताया, "अक्सर, घटनास्थल से पर्याप्त कीड़े इकट्ठा नहीं किए जाते हैं और अगर किए भी जाते हैं, तो उन्हें सही तरह से नहीं रखा जाता है. मुझे एक बार एक ऐसे मामले की जांच करने के लिए कहा गया था, जिसमें सिर्फ एक कुचले हुए कीड़े की तस्वीर की फोटोकॉपी दी गई थी.”
आखिरकार कीड़ों के जीवन चक्र से आमतौर पर मौत का सही समय पता करने के लिए पर्याप्त सटीक जानकारी नहीं मिल पाती है. जबकि, संदिग्ध हत्या के मामलों में यह बहुत महत्वपूर्ण जानकारी है.
बैक्टीरिया और फफूंद से मिल सकती है ज्यादा जानकारी
हाल के वर्षों में वैज्ञानिक इस बात पर शोध कर रहे हैं कि क्या बैक्टीरिया और फफूंद का इस्तेमाल करके, मौत के सटीक समय और कारणों का पता लगाया जा सकता है.
हाल के एक अध्ययन में, शोधकर्ताओं की इस परिकल्पना का समर्थन करने वाले कुछ सूक्ष्मजीव (सूक्ष्म जीवाणु) मिल गए हैं. उन्होंने सूक्ष्मजीवों के एक समूह को पहचाना है जो जलवायु या मौसम की परवाह किए बिना शरीर के सड़ने यानी विघटित होने की प्रक्रिया को तेज करता है.
इस अध्ययन के दौरान, अमेरिका के अलग-अलग जलवायु क्षेत्रों में चारों मौसमों में शवों का विश्लेषण किया गया. शोधकर्ताओं ने शवों को 21 दिनों के लिए अलग-अलग जगहों पर रखा. इसके बाद, फिर ऊतक के नमूनों से आनुवांशिक पदार्थ का विश्लेषण किया. हर शव पर पाए जाने वाले बैक्टीरिया और फफूंद की विस्तृत जानकारी इकट्ठा की. उन्होंने इस डेटा को एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एल्गोरिदम में डाला जो मृत्यु के समय की सटीक पहचान कर सका.
इसके बाद, शोधकर्ताओं ने ऐसे 20 सूक्ष्मजीवों की पहचान की जो 21 दिनों के विश्लेषण में हर उस शव पर एक तय समय में पाए गए जिनका अध्ययन किया गया. यह खोज पैथोलॉजिस्ट के लिए खुशी की बात थी. इस खोज में पाया गया कि मृत शरीर किसी भी जगह पर पड़ा हो या किसी भी वातावरण में हो, उस पर हमेशा एक ही तरह के सूक्ष्मजीव उसी क्रम और गति से पनपते हैं.
वहीं, शोधकर्ताओं ने यह भी पता लगाया कि अलग-अलग वातावरण में विघटित हो रहे शरीरों पर पाए जाने वाले सूक्ष्मजीवों के समूह भी अलग-अलग होते हैं. उदाहरण के लिए, रेगिस्तान में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीव जंगल में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीवों से भिन्न थे.
सूक्ष्मजीवों के इस अंतर से वैज्ञानिकों को यह पता लगाने में मदद मिल सकती है कि कोई शव किस जगह पर विघटित हुआ.
आपरध वाली जगह पर सूक्ष्मजीवों का अध्ययन नहीं किया गया
अपराध वाली जगहों पर सूक्ष्मजीवों का अध्ययन करने से फॉरेंसिक पैथोलॉजिस्टों को संभावित संदिग्धों की पहचान करने और हत्या के मामलों में वहां किसी के बयान की सच्चाई जानने में मदद मिल सकती है. खास तौर पर जब मौत का समय अस्पष्ट हो. उदाहरण के लिए, अगर हत्या का कोई आरोपी कहता है कि वह उस समय कहीं और था, तो मृत शरीर पर पाए जाने वाले सूक्ष्मजीवों के विश्लेषण से पता चल सकता है कि कहीं वह लाश के आसपास तो नहीं था.
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अपराध वाली जगहों पर मृत शरीर के विघटित होने से पैदा होने वाले सूक्ष्मजीव हमेशा मौजूद रहते हैं. वहीं, उंगलियों के निशान, खून के धब्बे, चश्मदीदों का होना या हत्या के हथियार पर मक्खियों का जमा होना, ये चीजें हमेशा नहीं मिल पातीं.
फिलहाल फॉरेंसिक वैज्ञानिक अपराध की जगह पर सबूत के तौर पर सूक्ष्मजीवों का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं. बेनेके का कहना है कि इन सूक्ष्मजीवों की वृद्धि को प्रभावित करने वाले कारकों को समझने के लिए और शोध की जरूरत है, ताकि ये समझा जा सके कि कौन-सी चीजें इन सूक्ष्मजीवों को पनपने में मदद करती हैं.
उन्होंने कहा, "अभी ये शोध का विषय है, लेकिन अपराध की जगह पर मिलने वाली हर चीज का इस्तेमाल करना हमेशा फायदेमंद होता है. पर्याप्त डेटा और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से आंकड़ों का विश्लेषण करके यह पता लगाया जा सकता है कि शरीर कब मृत पाया गया था और किसी की मौत कब हुई होगी. साथ ही, कई अन्य जानकारी भी हासिल की जा सकती है. हालांकि, इस पर बहुत काम करने की जरूरत है. लोगों को इस विषय में दिलचस्पी होनी चाहिए और बहुत कम लोगों को इसमें रुचि होती है.”