Quit India Movement 2020: 77 साल पहले ऐतिहासिक दिन रहा था '8 अगस्त', गांधी जी ने छेड़ा था 'भारत छोड़ो आंदोलन'

हमारी खुशनसीबी है कि आज हम आज़ाद हिंदुस्तान में सांस ले रहे हैं. लेकिन उसकी वजह इस मुल्क में स्वाधीनता सेनानियों के संघर्ष क्रांतिकारियों की शहादत से लेकर हर वर्ग और मजहब के व्यक्ति द्वारा किया गया बलिदान है जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. आज हम उस ऐतिहासिक दिन को याद कर रहे हैं जिस पर भारत के स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखी गई थी.

महात्मा गांधी (Photo Credits: Wikipedia)

Quit India Movement 2020: हमारी खुशनसीबी है कि आज हम आज़ाद हिंदुस्तान (Azad Hindustan) में सांस ले रहे हैं. लेकिन उसकी वजह इस मुल्क में स्वाधीनता सेनानियों के संघर्ष क्रांतिकारियों की शहादत से लेकर हर वर्ग और मजहब के व्यक्ति द्वारा किया गया बलिदान है जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. आज हम उस ऐतिहासिक दिन को याद कर रहे हैं जिस पर भारत के स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखी गई थी. 8 अगस्त को ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ (Quit India Movement) की शुरुआत की गई थी. शायद भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का यह सबसे सरल और सबसे शक्तिशाली नारा था, 'भारत छोड़ो' या 'क्विट इंडिया'. यह वह आदेश था जो महात्मा गाँधी (Mahatma Gandhi) ने 77 साल पहले भारत पर हुकुमत करने वाले ब्रिटिश शासकों को दिया था.

उस समय देश की जनता को बापू ने 'करो या मरो' और 'डू और डाई' का नारा दिया. महात्मा गांधी के इसी आह्वान पर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक शानदार अध्याय लिखा गया. भारत छोड़ो आंदोलन 9 अगस्त, 1942 को शुरू हुआ और लगातार पांच वर्षों तक जारी रहा और अंत में अंग्रेजों के भारत छोड़ने के साथ ही इस आंदोलन की समाप्ति हुई.

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भारत छोड़ो आंदोलन प्रस्ताव

भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित हुआ और तय हो गया कि अब अंग्रेजों की गुलामी से मुल्क को आजाद करा कर रहेंगे. इस प्रस्ताव ने देश की स्वतंत्रता के लिए व्यापक पैमाने पर अहिंसक आंदोलन शुरू करने को मंजूरी दी. इस प्रस्ताव के पारित होने के बाद ही गांधी जी ने अपने भाषण में कहा था एक छोटा सा मंत्र है, जो मैं आप लोगों को देना चाहता हूं. मैं चाहता हूं कि आप इसे अपने दिल में बसा लें और अपनी हर सांस को एक अभिव्यक्ति दें. और वो है 'करो या मरो. हम या तो आज़ाद होंगे या इस प्रयास में मर जाएंगे. इन्हीं स्वर्णिम शब्दों के साथ भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुवात की गई थी जो आगे चलकर अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ हर भारतीय की लड़ाई बन गया.

'9 अगस्त 1942' की सुबह के कांग्रेस के अधिकांश नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें देश के विभिन्न हिस्सों की जेलों में बंद कर दिया गया. साथ ही कांग्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया गया. देश के हर हिस्से में विरोध प्रदर्शन और जुलूस निकाले जा रहे थे. पूरे देश में आगजनी, लाठीचार्ज और गिरफ्तारियां हुईं. लोगों का गुस्सा इतना बढ़ गया कि इसने हिंसक गतिविधियों का रूप ले लिया. सरकारी संपत्ति पर हमला बोला गया, रेलवे लाइनों को क्षतिग्रस्त किया गया और पोस्ट और टेलीग्राम को बाधित कर दिया गया. कई जगहों पर पुलिस के साथ झड़पें हुईं. वहीं ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन के बारे में समाचार प्रकाशन पर प्रतिबंध लगा दिया. कई अखबारों ने प्रतिबंधों को न मानने का फैसला किया.

1942 के आखिर तक लगभग 60,000 लोग जेल भेजे गए और सैकड़ों लोग मारे गए. मारे गए लोगों में कई छोटे बच्चे और बूढ़ी औरतें भी शामिल थीं. बंगाल के तामलुक में 73 वर्षीय मातंगिनी हज़रा, असम के गोहपुर में 13 वर्षीय कनकलता बरुआ, बिहार में पटना में विरोध प्रदर्शन के दौरान सात युवा छात्र और सैकड़ों अन्य लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई. देश के कुछ हिस्से जैसे कि U.P में बलिया, बंगाल में तामलुक, महाराष्ट्र में सतारा, कर्नाटक में धारवाड़ और उड़ीसा में बालेश्वर और तालचेर, ब्रिटिश शासन से मुक्त हो चुके थे और वहां के लोगों ने वहां अपनी सरकारें बना ली. जय प्रकाश नारायण, अरुणा आसफ़ अली, एस.एम. जोशी, राम मनोहर लोहिया और अन्य ने युद्ध की अवधि में क्रांतिकारी गतिविधियां जारी रखीं.

भारत छोड़ो आंदोलन प्रस्ताव

14 जुलाई 1942 को कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दी, जिसमें यह घोषणा की गई थी कि "भारत में ब्रिटिश शासन का तत्काल अंत होना बेहद जरूरी था. यह भारत के लिए और एक संयुक्त राष्ट्र की सफलता के लिए भी आवश्यक है."

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