Sambhal Shahi Jama Masjid Survey: संभल में शाही जामा मस्जिद का सर्वे जारी, हिंदू पक्ष का दावा पहले मंदिर था यहां
संभल में शाही जामा मस्जिद को लेकर चल रहा विवाद फिर से सुर्खियों में है. कोर्ट के आदेश पर भारी पुलिस बल की मौजूदगी में मस्जिद का सर्वे किया जा रहा है. हिंदू पक्ष का दावा है कि यह मस्जिद एक प्राचीन हरिहर मंदिर को तोड़कर बनाई गई है, जबकि मुस्लिम पक्ष इसे खारिज कर रहा है.
उत्तर प्रदेश के संभल स्थित शाही जामा मस्जिद को लेकर चल रहा विवाद फिर से सुर्खियों में है. हाल ही में कोर्ट के आदेश पर भारी पुलिस बल की मौजूदगी में मस्जिद का सर्वे किया जा रहा है. हिंदू पक्ष का दावा है कि यह मस्जिद एक प्राचीन हरिहर मंदिर को तोड़कर बनाई गई है, जबकि मुस्लिम पक्ष इसे खारिज कर रहा है.
इतिहास और विवाद की शुरुआत
यह विवाद तब उठा जब वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने दावा किया कि यह मस्जिद कभी भगवान विष्णु का मंदिर थी. उन्होंने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की 1879 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि मस्जिद के खंभों और संरचना में हिंदू मंदिरों की विशेषताएं हैं. रिपोर्ट में उल्लेख है कि मस्जिद के खंभों पर प्लास्टर चढ़ा हुआ है, और मस्जिद के गुंबद के नीचे की संरचनाएं भी प्राचीन हिंदू मंदिर की प्रतीत होती हैं.
बाबरनामा और अन्य ऐतिहासिक प्रमाण
हिंदू पक्ष के अनुसार, बाबरनामा और तारीख-ए-बाबरी जैसे ऐतिहासिक ग्रंथों में भी इस बात का उल्लेख है कि मीर हिंदू बेग नामक बाबर के दरबारी ने इस मंदिर को मस्जिद में परिवर्तित किया था. बाबरनामा के अंग्रेजी अनुवाद में इसे विस्तार से दर्ज किया गया है.
मुस्लिम पक्ष का तर्क
मुस्लिम पक्ष ने इन दावों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि मस्जिद का मंदिर से कोई संबंध नहीं है. जामा मस्जिद के अध्यक्ष मोहम्मद जफर ने कोर्ट के सर्वेक्षण आदेश को भी असामान्य बताया और इसे पक्षपातपूर्ण करार दिया. उनका दावा है कि मस्जिद में हिंदू मंदिर जैसा कोई निशान नहीं है.
वर्तमान स्थिति
संभल की शाही जामा मस्जिद पर चल रहा यह मामला उत्तर प्रदेश में धार्मिक स्थलों के दावों से जुड़े बढ़ते विवादों का हिस्सा है. इससे पहले अयोध्या, काशी, और मथुरा जैसे स्थानों पर भी ऐसे विवाद सामने आए हैं. कोर्ट का सर्वे और पुरातात्विक साक्ष्य आने वाले समय में इस मामले का रुख तय करेंगे.
ऐसे मुद्दे न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और राजनीतिक ध्रुवीकरण को भी जन्म देते हैं. यह देखना दिलचस्प होगा कि न्यायपालिका इन दावों पर क्या निर्णय देती है और इससे जुड़े ऐतिहासिक तथ्यों की सत्यता क्या है.