महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019: शिवसेना फिर बना रही 'पार्टनर' से मोल-तोल की राह!
उद्धव ठाकरे ने अपने 18 सांसदों और बेटे आदित्य ठाकरे के साथ 16 जून को उत्तर प्रदेश के अयोध्या जाकर रामलला के दर्शन किए. शिवसेना ने कहा कि सरकार को राम मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश लाना चाहिए
Maharashtra Assembly Elections 2019 : शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) ने अपने सभी नवनिर्वाचित 18 सांसदों और बेटे आदित्य ठाकरे (Aditya Thackeray) के साथ 16 जून (रविवार) को उत्तर प्रदेश के अयोध्या जाकर रामलला के दर्शन किए. उद्धव ने इस मौके पर कहा कि 17वीं लोकसभा का सत्र शुरू होने से पहले वह अपने सभी सांसदों के साथ भगवान राम (Lord Ram) के दर पर मत्था टेकना चाहते थे. लेकिन सवाल यह कि उद्धव क्या सिर्फ दर्शन करना चाहते थे, या उनके इस दर्शन के पीछे कोई और भी दर्शन था.
दरअसल, उद्धव ने रामलला के दर्शन करने के बाद संवाददाताओं से यह भी कहा था, "राम मंदिर निर्माण जल्द से जल्द करना होगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में साहस है तो पूरी दुनिया के हिंदू उनके साथ हैं. केंद्र सरकार के पास राम मंदिर निर्माण के लिए कानून बनाने की शक्ति है. सरकार को राम मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश लाना चाहिए."
नई संसद का पहला सत्र शुरू होने से ठीक एक दिन पहले आया उद्धव का यह बयान विशुद्ध रूप से राजनीतिक है. इस बयान से साफ हो जाता है कि वह अयोध्या सिर्फ दर्शन के लिए नहीं गए थे, उनका मकसद कुछ और भी था.
हालांकि शिवसेना नेता संजय राउत के अनुसार, उद्धव का यह दौरा विशुद्ध रूप से राम दर्शन के लिए था. राउत ने एक दिन पहले ही 15 जून को कहा था कि शिवसेना प्रमुख लोकसभा चुनाव में जीत के लिए भगवान राम का धन्यवाद करना चाहते हैं, क्योंकि उन्होंने पिछले साल नवंबर में अयोध्या दौरे के दौरान फिर आने का वादा किया था.
लेकिन उद्धव के असल मकसद को समझने के लिए थोड़ा पीछे लौटना पड़ेगा. लोकसभा चुनाव 2019 के पहले तक उद्धव और उनकी पार्टी शिवसेना केंद्र और महाराष्ट्र की भाजपा नेतृत्व वाली सरकारों में रहते हुए भाजपा के खिलाफ जहर उगल रहे थे. उद्धव और उनकी पार्टी ने कई मौकों पर न केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का खुलकर विरोध किया, बल्कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के समर्थन में बयान भी दिए.
यहां तक कि उन्होंने लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने की बात तक कही थी. लेकिन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की पहल पर लोकसभा चुनाव से ठीक पहले महाराष्ट्र में दोनों दलों का गठबंधन हो गया. महाराष्ट्र की कुल 48 सीटों में से भाजपा ने 23 और शिवसेना ने 18 पर जीत दर्ज की.
शिवसेना की असली परेशानी यह है कि वह महाराष्ट्र में छोटे भाई की भूमिका में आ गई है. जबकि किसी समय वह बड़े भाई की भूमिका में होती थी, और भाजपा छोटे भाई की तरह उसकी सहयोगी होती थी. लेकिन 2014 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों, और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों ने शिवसेना को छोटे भाई की भूमिका में खड़ा कर दिया है.
उसे अपनी यह स्थिति बर्दाश्त नहीं है. यही कारण है कि वह पिछले पांच सालों से भाजपा के खिलाफ जहर उगलती रही. उसे पता है कि उसके पास खोने के लिए कुछ नहीं है, और बड़े भाई (भाजपा) के पास उसके सितम बर्दाश्त करने के सिवा कोई चारा नहीं है.
इस तरह शिवसेना ने पूरे पांच साल भाजपा और मोदी का विरोध किया, और अंत में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उसी भाजपा से गठबंधन कर लिया. यानी शिवसेना दबाव की राजनीति कर रही थी. लेकिन लोकसभा चुनाव बाद भी शिवसेना और भाजपा के बीच हालात कमोबेश जस के तस बने हुए हैं. नरेंद्र मोदी सरकार में शिवसेना (अरविंद सावंत) को एक बार फिर वही पुराना भारी उद्योग मंत्रालय मिला है. यह अलग बात है कि बाद में राज्य मंत्रिमंडल विस्तार में शिवसेना की तरफ से दो नए मंत्रियों को सरकार में शामिल किया गया.
उद्धव को पता है कि केंद्र में भाजपा के पास अकेले बहुमत है और वह उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकते, लेकिन उन्हें महाराष्ट्र की राजनीति में प्रासंगिक बने रहना है. इस साल अक्टूबर में महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव होने हैं और इसके लिए उन्हें इन्हीं परिस्थितियों में अपने को अधिक से अधिक मजबूत करना है. उद्धव की पूरी कोशिश होगी कि इस बार के विधानसभा चुनाव में वह अपनी पार्टी को वापस बड़े भाई की भूमिका में लाएं.
उद्धव ये सारी कसरतें इसी मद्देनजर कर रहे हैं. इसके जरिए वह भाजपा पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं. उन्हें यह भी लगा होगा कि भाजपा कहीं न कहीं राम से थोड़ा दूर हट रही है, और ऐसे में अयोध्या जाकर उस जगह को भरा जा सकता है और रामभक्तों को शिवसेना से जोड़ा जा सकता है.
उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव में भारी जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अल्पसंख्यकों के बीच व्याप्त भय मिटाने की बात कही थी. मोदी मंदिर दर्शन के लिए अयोध्या नहीं गए, दक्षिण में केरल (त्रिशूर के गुरुवायूर) और आंध्र प्रदेश (तिरुपति) गए. लेकिन उद्धव महाराष्ट्र से उत्तर प्रदेश के अयोध्या आते हैं, और मंदिर निर्माण की बात करते हैं. इसे भाजपा के खिलाफ शिवसेना का 'सॉफ्ट विरोध' कहा जा सकता है. और इस बात की पूरी संभावना है कि शिवसेना का यह भाजपा विरोध फिर धीरे-धीरे बढ़ेगा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन होने तक जारी रहेगा.
पिछला विधानसभा चुनाव दोनों दलों ने अलग-अलग लड़ा था. पहली बार भाजपा ने 125 सीटों पर जीत दर्ज कराई थी. शिवसेना को 60 सीटें मिली थीं. इस परिणाम के अनुसार, शिवसेना को लोकसभा चुनाव में गठबंधन के तहत कम सीटें मिलनी चाहिए थीं. लेकिन उसके भाजपा विरोध का परिणाम रहा कि उसने मोल-तोल कर 23 सीटें हासिल कर ली और भाजपा ने 25 सीटों पर चुनाव लड़ा. अब विधानसभा चुनाव के लिए उसे फिर एक बार भाजपा से मोल-तोल करना होगा, और उसकी पूरी कोशिश होगी कि इस बार वह गठबंधन में अधिक सीटें हासिल करे और बड़े भाई की भूमिका में फिर से लौटे.