तेलंगाना कैबिनेट की गुरुवार को एक अहम बैठक हुई. सीएम के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में तेलंगाना विधानसभा को भंग करने और जल्द चुनाव करने को लेकर राज्यपाल को प्रस्ताव भेजा गया. राज्यपाल ई.एस.एन नरसिम्हन ने मंत्रिमंडल के सिफारिश को मान लिया और तेलंगाना विधानसभा को भंग कर दिया. राज्यपाल ने कहा कि उन्होंने राव का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है और उनसे कार्यवाहक मुख्यमंत्री बने रहने के लिए कहा है.
बता दें कि राज्य में अगले साल लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा होने थे मगर केसीआर ने अचानक विधानसभा भंग करने के फैसले से सभी को चौका दिया. वैसे चुनाव पहले करवाना केसीआर की सोची समझी चाल है. इन कारणों की वजह से केसीआर, तेलंगाना में समय से पहले चुनाव करवाना चाहते हैं.
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कांग्रेस:
तेलंगाना में प्रमुख मुकाबला केसीआर की तेलंगाना राष्ट्रिय समिति और कांग्रेस के बीच ही हैं. 2014 विधानसभा के दौरान भी मुकाबला इन दो पार्टियों के बीच ही था. केसीआर को डर है कि अगर कांग्रेस राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव जीत जाती है तो उसके पक्ष में माहौल बन जाएगा. यह टीआरएस के लिए जोखिमभरा साबित हो सकता है.
तैयारी के लिए समय:
तेलंगाना में अगर तय समय से चुनाव होते तो केसीआर को लोकसभा और विधानसभा दोनों के लिए एक साथ चुनाव प्रचार करना पड़ता. अगर तेलंगाना में इस साल के अंत में चुनाव कराए जाते हैं तो मुख्यमंत्री को दोनों चुनाव के लिए ज्यादा समय मिलेगा.
विपक्ष को कम समय:
तेलंगाना में अगले साल अप्रैल-मई में विधानसभा चुनाव होने थे, विपक्ष भी उसी समय के लिए तैयारी कर रहा था. ऐसे में केसीआर ने अचानक विधानसभा भंग कर विपक्षी दलों को चुनाव तैयारी के लिए कम समय दिया है.
केसीआर की लोकप्रियता:
तेलंगाना राष्ट्रिय समिति को यह बात बखूबी पता है कि राज्य में केसीआर को टक्कर देने वाला कोई नेता नहीं हैं. मगर, यदि वह 2019 तक रुकते हैं तो तो फिर लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी या पीएम मोदी एक फैक्टर हो सकते हैं. लोकसभा में जिस पार्टी की हवा होगी उसका असर विधानसभा चुनावों पर भी पड़ेगा.
बहरहाल, अब देखना दिलचस्प होगा की केसीआर का यह फैसला उनकी पार्टी के लिए मास्टरस्ट्रोक साबित होता है या फिर इससे नुकसान होता है.