बिहार विधानसभा चुनाव 2020: चिराग पासवान शायद जो सोच रहे हैं वैसा कर नहीं पाएंगे
चिराग पासवान (Photo Credits- PTI)

पटना: बिहार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और जनता दल- यूनाइटेड (JDU) के साथ लेाक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) भी है. लेकिन, हाल के दिनों में लोजपा के अध्यक्ष चिराग पासवान (Chirag Paswan ) ने जिस तरह अपने घटक दलों से अलग राह पकड़ी है, उससे उनकी चुनावी राह आसान नहीं दिखती. बीजेपा और जद (यू) भले ही उनकी आलोचना को लेकर खुलकर नहीं बोल रहे हैं, लेकिन दोनों दलों के नेताओं के अंदर इस बात का मलाल जरूर है.

राजद के अध्यक्ष लालू प्रसाद (Lalu Prasad) द्वारा 'मौसम वैज्ञानिक' कहे जाने वाले रामविलास पासवान अपनी पार्टी लोजपा की कमान पुत्र सांसद चिराग पासवान को सौंप चुके हैं. झारखंड चुनाव में हार झेल चुके लोजपा अध्यक्ष चिराग के लिए बिहार का चुनाव पहली बड़ी परीक्षा होगी. इसमें किसी भी हाल में अंक बढ़ाने की चुनौती उनके सामने है. कहा भी जा रहा है कि इसी चुनौती से निपटने के लिए चिराग मतदाताओं में अपनी पहचान बढ़ाने के लिए व्यग्र हैं और 'बिहार फर्स्ट-बिहारी फर्स्ट' की यात्रा पर निकले हैं. हालांकि, इस यात्रा के दौरान जिस तरह वे भाजपा और जद (यू) पर हमलावर हैं, उससे उनके लिए आगे की राह आसान नहीं दिखती है.

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चिराग अपनी यात्रा के दौरान जहां बिहार की कानून व्यवस्था को लेकर बिहार सरकार पर निशाना साधते हुए कह चुके हैं कि डायल 100 पटना को छोड़कर राज्य में और कहीं नाम नहीं करता. यही नहीं 18 से ज्यादा दिनों से हड़ताल पर रहे नियोजित शिक्षकों को लेकर भी चिराग अपनी मांगों के साथ खड़े हो गए हैं. इधर, नीतीश सरकार के विपरीत चिराग दारोगा परीक्षा में हुई अनियमितता की जांच के लिए नीतीश कुमार को पत्र लिखकर केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) से इस बाबत जांच कराने की मांग कर चुके हैं.

जद (यू) के एक नेता ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर कहा कि चिराग अभी नीतीश कुमार को नहीं समझ पाए हैं. चिराग को यह गलतफहमी हो गई है कि लोजपा अकेले बिहार में सरकार बना लेगी. उन्होंने कहा कि चिराग जिस तरह आगे रास्ते की ओर बढ़ रहे हैं, वह उनके लिए आसान नहीं है. दिल्ली हिंसा को लेकर भी चिराग भाजपा पर निशाना साध चुके हैं. लोजपा का यह कदम सहयोगी दलों के नेता स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं. इन दलों के नेता अभी तक खुलकर कुछ नहीं बोल पा रहे हैं, लेकिन 'अलग-अलग पार्टियों की अलग-अलग नीतियां' जैसी बाते कह कर सफाई देने लगे हैं.

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भाजपा नेता संजय मयूख (Sanjay Mayuk) भी नियोजित शिक्षकों के मुद्दे पर सहानुभूति तो रखते हैं, लेकिन वेतनमान के मुद्दे पर अंतिम फैसला वह सरकार पर छोड़ते हैं. संजय मयूख कहते हैं कि लोजपा सहयोगी दल के रूप में जरूर है, लेकिन शिक्षकों और दारोगा अभ्यर्थियों पर उसकी अपनी नीति हो सकती है. इधर, चिराग ने राजग के अन्य दलों से अलग राह बनाते हुए लोजपा की अप्रैल में गांधी मैदान में होने वाली रैली में ही घोषणा पत्र जारी करने की घोषणा कर दी है. इसे लेकर भी राजग के दल असहज हैं. जद (यू) के विधायक गुलाम रसूल बलियावी ने कहा, "लोजपा अलग पार्टी है और वह क्या निर्णय लेती है, यह उनका अपना मामला है, वे जब चुनावी घोषणा पत्र जारी कर दें यह उनका फैसला है."

वैसे, राजग के दलों में अलग-अलग राग को लेकर अब विरोधी दल भी मजा ले रहा है. कांग्रेस के नेता प्रेमचंद मिश्रा का कहना है कि अगर लोजपा हड़ताली शिक्षकों और दारोगा अभ्यर्थियों के साथ है, तो इसके नेताओं को सीधे सरकार से बात करनी चाहिए. इधर, राजनीति के जानकारी इसे राजग के स्वास्थ्य के लिए सही नहीं मानते. राजनीतिक मामलों के जानकार प्रो़ नवल किशोर चौधरी (Nawal Kishore Choudhary) ने कहा, "किसी भी गठबंधन में घटक दलों की अलग राह गठबंधन के लिए सही नहीं है. इससे राजग में परेशानी बढ़ सकती है. लोजपा के लिए भी अभी अकेले चलने वाली स्थिति नहीं है."

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बहरहाल, चिराग की यात्रा में मिल रहे लोगों के समर्थन के आधार पर कहा जा सकता है कि चिराग के 'एकला चलो' की राह अभी आसान नहीं है. वैसे, चिराग आगे क्या कदम उठाते हैं, यह देखने वाली बात होगी.