गुवाहाटी/नयी दिल्ली: सहयोगियों की ओर से बीजेपी की मुसीबतें कम नहीं हो रही हैं. इसी कड़ी में, नागरिकता (संशेाधन) विधेयक के मुद्दे पर असम गण परिषद (एजीपी) ने असम की बीजेपी नीत गठबंधन सरकार से सोमवार को समर्थन वापस लेने का ऐलान किया. एजीपी पूरी ताकत से विधेयक का विरोध कर रही है. अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के गैर मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता देने लिए लाए गए विधेयक के मुद्दे पर एजीपी के समर्थन वापसी से असम की सर्वानंद सोनेवाल नीत सरकार की सेहत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. यह विधेयक मंगलवार को लोकसभा में पेश किया जाएगा जो संसद के शीतकालीन सत्र का अंतिम दिन है. समर्थन वापसी का ऐलान एजीपी के अध्यक्ष एवं असम सरकार में मंत्री अतुल बोरा ने किया. इससे पहले बोरा ने कहा कि उन्होंने प्रस्तावित विधेयक को वापस लेने के लिए केंद्र सरकार को समझाने की भरसक कोशिश की. असम की 126 सदस्यीय विधानसभा में एजीपी के 14 सदस्य हैं जबकि भाजपा को 74 सदस्यों का समर्थन प्राप्त है.
विधानसभा में भाजपा के 61 सदस्य हैं और उसे बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट के 12 विधायकों और एक निर्दलीय विधायक का समर्थन प्राप्त है. राज्य में एजीपी के तीन मंत्री हैं लेकिन उन्होंने अभी इस्तीफा नहीं दिया है. एजीपी का लोकसभा और राज्यसभा में कोई सदस्य नहीं है. एजीपी के प्रतिनिधिमंडल ने नयी दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह मुलाकात की. गृह मंत्री ने कहा कि सरकार सुनिश्चित करेगी कि नागरिकता संशोधन विधेयक मंगलवार को लोकसभा में पारित हो.
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बोरा ने गृह मंत्री से मिलने के बाद, पत्रकारों से कहा, ‘‘ हमने विधेयक पारित नहीं कराने के लिए केंद्र को मनाने की आज आखिरी कोशिश की. हमने केंद्र को समझाने की कोशिश की कि यह विधेयक असम समझौते के खिलाफ है और राष्ट्रीय नागरिक पंजी को अपडेट करने की चल रही प्रक्रिया को निरर्थक बना देगा, लेकिन सिंह ने हमसे स्पष्ट कहा कि इसे कल लोकसभा में पारित कराया जाएगा. इसके बाद, गठबंधन में रहने का सवाल ही पैदा नहीं होता है.’’
बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनावों में विधेयक पारित करने का वायदा किया था. बीते एक साल के दौरान, तेदेपा और उपेंद्र कुशवाहा नीत राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ने बीजेपी नीत राजग से अपना नाता तोड़ लिया है, जबकि भगवा दल, जम्मू कश्मीर में पीडीपी नीत गठबंधन से अलग हो गया है. शिवसेना के साथ बीजेपी के रिश्तों में तनाव है जबकि राजग के अन्य घटक अपना दल (सोनेलाल) के नेता ने सोमवार को भाजपा को चेताया कि गठबंधन में अगर भगवा दल ने छोटी पार्टियों के प्रति अपने रूख में बदलाव नहीं किया तो वह ‘किसी भी हद’ तक जा सकती है.
अपना दल (एस) के अध्यक्ष आशीष पटेल ने कहा कि पार्टी ‘कोई भी फैसला’ ले सकती है लेकिन उन्होंने इसका ब्यौरा नहीं दिया. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सोमवार को नागरिकता संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी। इसका मसौदा दोबारा से तैयार किया गया है. घटनाक्रम की जानकारी रखने वाले एक अधिकारी ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में विधेयक को मंजूरी दी गई। इसे मंगलवार को लोकसभा में रखे जाने की उम्मीद है.
बोरा से मंत्री पद से इस्तीफा देने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘‘ हम गुवाहाटी पहुंचने के बाद यह करेंगे.’’ इसके बाद, बोरा ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘ हमें लगता है कि बीजेपी का विधेयक के प्रति जिस तरह का रूख है उससे हमारे साथ धोखा हुआ है, क्योंकि जब हम गठबंधन में आए थे तो हमें यकीन दिलाया गया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अवैध प्रवासियों के मुद्दे का हल निकालने के लिए प्रतिबद्ध हैं. हमने ऐसा सपने में भी नहीं सोचा था कि बीजेपी असम के लोगों के साथ ऐसा करेगी. हमें भाजपा के साथ गठबंधन में शामिल होने का पछतावा है.’’
उन्होंने कहा कि जब उन्होंने मुद्दे पर चर्चा के लिए मुख्यमंत्री से मिलने का समय मांगा तो सोनोवाल ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया, क्योंकि ‘शायद वह हमारा सामना नहीं कर सकते थे.’’ उन्होंने कहा कि गृह मंत्री से सिर्फ वोटों के लिए लोगों की भावनाओं को नजरअंदाज नहीं करने का आग्रह किया गया था लेकिन दुर्भाग्य है कि उन्होंने एक नहीं सुनी. इससे पहले एजीपी के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री प्रफुल्ल कुमार महंत ने गुवाहाटी में बयान दिया था कि अगर नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 लोकसभा में पारित होता है तो उनकी पार्टी सरकार से समर्थन वापस ले लेगी.
यह विधेयक नागरिकता कानून 1955 में संशोधन के लिए लाया गया है. इस विधेयक के कानून बनने के बाद, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदायों को 12 साल के बजाय छह साल भारत में गुजारने पर और बिना उचित दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता मिल सकेगी.
पूर्वोत्तर के लोगों का बड़ा तबका और संगठन इस विधेयक का विरोध कर रहा है. कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, माकपा समेत कुछ अन्य पार्टियां लगातार इस विधेयक का विरोध कर रही हैं. उनका दावा है कि धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जा सकती है और यह असंवैधानिक है. एजीपी के तीन मंत्री और एक वरिष्ठ विधायक प्रधानमंत्री से मिलने के लिए दिल्ली आए हुए हैं. प्रधानमंत्री ने उन्हें अभी मिलने का वक्त नहीं दिया है। नेताओं ने राजनाथ सिंह से मुलाकात की है.