सावधान! बच्चे हो रहे गेमिंग डिसऑर्डर के शिकार, पेरेंट्स और टीचर इन बातों का रखें ख्याल- अप्रिय घटना तत्काल यहां करें दर्ज

कोरोना वायरस महामारी के कारण स्कूलों के बंद होने से बच्चों में मोबाइल और इंटरनेट के उपयोग का खुमार बढ़ा है. आज के इस डिजिटल युग में ऑनलाइन गेमिंग का क्रेज बच्चों में खूब बढ़ा है. बच्चों के बीच यह बहुत लोकप्रिय हो रहा है क्योंकि आज के गेम के डिज़ाइन व उसमें चुनौतियां खेलने वाले में उत्तेजना बढ़ाती हैं और उन्हें अधिक खेलने के लिए प्रेरित करती हैं.

गेमिंग (Photo Credits: Unsplash)

कोरोना वायरस (Coronavirus) महामारी के कारण स्कूलों के बंद होने से बच्चों में मोबाइल और इंटरनेट के उपयोग का खुमार बढ़ा है. आज के इस डिजिटल युग में ऑनलाइन गेमिंग (Online Gaming) का क्रेज बच्चों में खूब बढ़ा है. बच्चों के बीच यह बहुत लोकप्रिय हो रहा है क्योंकि आज के गेम के डिज़ाइन व उसमें चुनौतियां खेलने वाले में उत्तेजना बढ़ाती हैं और उन्हें अधिक खेलने के लिए प्रेरित करती हैं. गेम को इस तरह से डिज़ाइन किया जाता है कि हर लेवल पिछले की तुलना में अधिक जटिल और कठिन होता है. जो कि बच्चों को खेल में आगे बढ़ने के लिए उकसाने का कारण बनता है. यही वजह है कि बच्चों को इसकी लत लग सकती है.

ऑनलाइन गेम या तो इंटरनेट पर या किसी अन्य कंप्यूटर नेटवर्क से खेले जा सकते हैं. ऑनलाइन गेम लगभग हर किसी गेमिंग प्लेटफॉर्म जैसे पीसी, कंसोल और मोबाइल डिवाइस पर खेले जा सकते हैं. जबकि ऑनलाइन गेम हर स्मार्टफोन या टैबलेट पर खेला जा सकता है जो ऑनलाइन गेम की लत का एक सामान्य कारक है. क्योंकि बच्चे आसानी से किसी भी समय कहीं भी गेम खेल सकते हैं जोकि उनके स्कूल और सामाजिक जीवन के समय को प्रभावित करता है. दुर्लभ बीमारियों से ग्रस्त बच्चों को मरने नहीं दे सकते: उच्च न्यायालय

इसके अलावा, ऑनलाइन गेमिंग के कई नुकसान भी हैं. ऑनलाइन गेम खेलने से गेमिंग की लत भी लग सकती है जिसे गेमिंग डिसऑर्डर के रूप में जाना जाता है. अधिकांश मामले बिना किसी प्रतिबंध और आत्म-संयम की कमी के चलते सामने आते है. ऑनलाइन गेम खेलने से कई खिलाड़ी इतने आदी हो जाते हैं कि उन्हें मेडिकल ट्रीटमेंट की जरुरत पड़ने लगती है.

गेमिंग डिसऑर्डर से ऐसे करें बचाव-

बचाव के तरीके-

गेमिंग डिसऑर्डर के संकेत-

शिक्षकों को इन बातों का रखना चाहिए ध्यान-

किसी भी अप्रिय घटना की यहां दर्ज करें रिपोर्ट-

जानकारों की मानें तो गेमिंग कंपनियां भावनात्मक रूप से बच्चों को खेल के और अधिक चरण (लेवल) या ऐप को खरीदने के लिए भी लगभग मजबूर करती हैं. इस समस्या को दूर करने में माता-पिता और शिक्षक अहम भूमिका निभा सकते है.

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