बिहार के 18 जिलों में आर्सेनिक की अधिकता बनी कैंसर का कारण
बिहार के 38 में से 18 जिलों में पीने के पानी में आर्सेनिक की बढ़ी हुई मात्रा की वजह से गॉल ब्लॉडर के कैंसर के मरीजों की संख्या में इजाफा हुआ है.
बिहार के 38 में से 18 जिलों में पीने के पानी में आर्सेनिक की बढ़ी हुई मात्रा की वजह से गॉल ब्लॉडर के कैंसर के मरीजों की संख्या में इजाफा हुआ है. इनमें अधिकतर जिले गंगा नदी के किनारे बसे हैं.बिहार के 18 जिलों के भूजल में आर्सेनिक की उच्च मात्रा पायी गयी है. इसका मतलब है कि इन इलाकों के भूजल में विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा तय की गई 10 माइक्रोग्राम प्रति लीटर (एमपीएल) की मानक मात्रा से अधिक आर्सेनिक मौजूद है. एक अनुमान के मुताबिक इन इलाकों के लगभग एक करोड़ से अधिक लोग आर्सेनिक प्रदूषित पानी पी रहे हैं.
बीते दिनों में इन 18 जिलों के अलग-अलग क्षेत्रों से जमा भूजल के 46,000 नमूनों का अध्ययन किया गया. इसमें यह बात सामने आई कि बक्सर, भागलपुर, भोजपुर, पटना, वैशाली, सारण, बेगूसराय, मुंगेर, खगडिय़ा और समस्तीपुर जिले में आर्सेनिक प्रदूषण की स्थिति गंभीर है. खास बात यह कि ये सभी गंगा नदी के तटवर्ती जिले हैं. बक्सर, भोजपुर और भागलपुर भूजल में आर्सेनिक की मात्रा सबसे अधिक पाई गई है. इनमें बक्सर जिले में सर्वाधिक, प्रति लीटर 1906 माइक्रोग्राम आर्सेनिक पाया गया है.
जीबीसी के दस फीसदी मामला भारत में
नई दिल्ली, पुणे, कनाडा, टोक्यो और नीदरलैंड के साथ ही महावीर कैंसर संस्थान एवं अनुसंधान केंद्र, पटना के वैज्ञानिकों की रिसर्च से पता चला है कि पानी में आर्सेनिक की बढ़ी हुई मात्रा गॉल ब्लॉडर कैंसर (जीबीसी) होने का एक मुख्य कारण है. यह शोध कार्य लंदन के नेचर जर्नल-साइंटिफिक रिपोर्ट्स में बीते 14 मार्च को प्रकाशित हुआ है.
एक दूसरी रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में दुनिया भर में कैंसर के 19,292,789 मामले मिले थे, जिसमें 1,15,949 सिर्फ गॉल ब्लॉडर के कैंसर से संबंधित थे. इनमें से 84,695 लोगों की मौत हो गई थी. भारत में इस कैंसर के सर्वाधिक मामले उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल,ओडिशा, असम एवं महाराष्ट्र और दिल्ली में मिलते हैं. भारत में इस कैंसर का प्रसार वैश्विक मामलों का दस फीसदी है. पुरुषों की तुलना में महिलाओं में यह कैंसर ( जीबीसी) अधिक होता है.
उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल एवं महाराष्ट्र भारत के ऐसे चार राज्य हैं, जहां कैंसर के सालाना एक लाख से अधिक मामले सामने आ रहे हैं. 2022 में इस बीमारी से मौत के मामले में बिहार चौथे स्थान पर था. भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अनुसार वर्ष 2025 तक भारत में कैंसर के मामलों में पांच गुना वृद्धि होने का अनुमान है.
रोग में क्या है आर्सेनिक की भूमिका
नेचर में प्रकाशित रिपोर्ट से यह बात सामने आई है कि मानव शरीर में आर्सेनिक सबसे पहले लाल रक्त कोशिकाओं (आरबीसी) के साथ जुड़ता है. इसके बाद टॉरिन, सिस्टीन व चेनोडाक्सीकोलिक एसिड के साथ अन्य यौगिक प्रतिक्रियाओं के बाद गॉल ब्लॉडर में पहुंच कर स्टोन बनाता है. अगर काफी दिनों तक इसका उपचार नहीं किया जाता है तो यह कैंसर में बदल जाता है.
राज्य के 150 से अधिक मरीजों पर यह शोध किया गया था. इन रोगियों के गॉल ब्लॉडर के ऊतकों में औसत स्तर के साथ 340.6 माइक्रोग्राम, पथरी में 78.41, पित्त में 59.10 माइक्रोग्राम और बाल के नमूने में 649.7 एमपीएल आर्सेनिक की मात्रा पाई गई थी. महावीर कैंसर संस्थान के डॉ. अरुण कुमार कहते हैं, ‘‘गॉल ब्लॉडर कैंसर के बढ़ते मामलों को खास रणनीति बनाकर तत्काल नियंत्रित करने की जरूरत है.'' इसी संस्थान की डॉ. अनामिका का कहना है, ‘‘जीबीसी अत्यधिक मृत्यु दर वाली बीमारी है. इसके अधिकतर मरीज जल्द ही मौत के शिकार हो जाते हैं.''
भूजल का अंधाधुंध दोहन है बड़ी वजह
जानकार बताते हैं कि करीब पचास साल पहले तक आर्सेनिक के कुप्रभाव की जानकारी लोगों को नहीं थी. उस समय लोग खुले कुओं, नदियों और तालाबों का पानी पी रहे थे. उस समय भी गंगा नदी के जल में पहाड़ों के पानी द्वारा लाया जाने वाला ऑर्सिनो पायराइट मौजूद था, लेकिन खनिज रूप में होने के कारण वह पानी में घुलता नहीं था.
सत्तर के दशक में जब डायरिया, हैजा जैसी बीमारियों ने सिर उठाया तो इससे बचाव के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भूमिगत जल के उपयोग पर जोर देने को बढ़ावा दिया. नतीजतन, हैंडपंप व ट्यूबवेल का उपयोग तेजी से बढ़ने लगा. महावीर कैंसर संस्थान के अनुसंधान विभाग के प्रमुख डॉ. अशोक कुमार घोष के अनुसार, ‘‘आर्सिनोपायराइट के आर्सेनिक और आयरन में टूटने से भूजल में इसकी मात्रा में वृद्धि हुई. क्योंकि, जब भी कोई चीज आयनिक फॉर्म में होती है तब वह पानी में घुलनशील हो जाती है. इसलिए समय के साथ धीरे-धीरे आर्सेनिक की मात्रा बढ़ती गई और यह हानिकारक होता चला गया.'' साफ है, नदियों-कुओं को छोड़ दिया गया और ग्राउंड वाटर का अंधाधुंध दोहन होने लगा, जिससे आर्सेनिक प्रदूषण बढ़ता चला गया.
यूरेनियम, आयरन व फ्लोराइड की भी समस्या
इससे पहले भी राज्य में कई जिलों के ग्राउंड वाटर में यूरेनियम, आयरन और फ्लोराइड की भी बढ़ी हुई मात्रा की बात सामने आ चुकी है. एक रिसर्च के मुताबिक प्रदेश के करीब दस जिलों में पानी में विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा तय की गई मात्रा 30 एमपीएल से अधिक 50 एमपीएल पाई गई थी. यह भी पाया गया जहां यूरेनियम की मात्रा अधिक मिली, वहां आर्सेनिक या तो पाया नहीं गया या फिर काफी कम मात्रा में मिला.
डॉक्टरों के अनुसार लीवर को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ गॉल ब्लॉडर के कैंसर का कारण भी बन सकता है. राज्य में भागलपुर एक ऐसा जिला है जहां का पानी आर्सेनिक, आयरन व फ्लोराइड प्रदूषित है. राज्य में कई गांव ऐसे हैं, जहां के लोग पीने के पानी के कारण बीमार हो गए हैं या उनके अंग टेढ़े-मेढ़े हो गए हैं. खगड़िया जैसे कई ऐसे जिले हैं जहां के पानी में आयरन की प्रचुर मात्रा लोगों के लिए कई प्रकार के बीमारियों की वजह बन चुकी है.
जानकारों का मानना है कि उर्वरकों के बढ़ते उपयोग से मिट्टी में रसायनों का संतुलन बिगड़ा है. यही वजह है कि ये हानिकारक तत्व धीरे-धीरे फूड चेन में भी शामिल हो गए हैं. जिसका कुप्रभाव लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ने लगा है.
व्यापक रणनीति जरूरी
हालांकि, राज्य सरकार हर घर नल का जल और हर घर गंगा जल जैसी महत्वाकांक्षी योजना के बूते लोगों को शुद्ध पेयजल मुहैया कराने की हरसंभव कोशिश कर रही है. इसके बेहतर परिणाम भी दिखे हैं. मानसून के चार महीने में गंगा नदी के अतिरिक्त पानी को जल संकट वाले राजगीर और गया के जलाशयों में जमा करके इसे साफ और पीने लायक बना कर लोगों को मुहैया कराया जाएगा.
हर घर गंगा जल योजना का प्रथम चरण का कार्य पूरा हो चुका है. इससे एक ओर जहां अतिरिक्त जल का उपयोग हो सकेगा, वहीं दूसरी ओर पीने के पानी की समस्या से लोगों को निजात मिलेगी. हर घर नल का जल योजना से भी राज्य में करोड़ों लोगों के घर-घर तक पानी पहुंच चुका है. लेकिन, अभी भी इस दिशा में बहुत कुछ किया जाना बाकी है.