असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम पुराने हैदराबाद में नजर आ रही अजेय
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) तेलंगाना विधानसभा की सात सीटों पर अपना दबदबा कायम रखना चाहती है. पार्टी पुराने हैदराबाद के मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में अजेय प्रतीत होती है.
हैदराबाद, 29 जनवरी : ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) तेलंगाना विधानसभा की सात सीटों पर अपना दबदबा कायम रखना चाहती है. पार्टी पुराने हैदराबाद के मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में अजेय प्रतीत होती है. एआईएमआईएम अतीत की भांति ही अपना चुनावी अभियान दूसरों से पहले शुरू कर दिया है. पिछले कुछ दिनों से पार्टी अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) जनसभाओं को 'जलसा-ए-हलत-ए-हजेरा' शीर्षक से संबोधित कर अपना व अपने समर्थकों का उत्साह बढ़ रहे हैं. उन्होंने लोगों से एकजुट रहने और समर्थन करने की अपील की, ताकि एआईएमआईएम विधानमंडल में अपनी आवाज उठाती रहे और उनकी समस्याओं के समाधान के लिए संघर्ष करती रहे. ओवैसी को भरोसा है कि तेलंगाना में बीजेपी कभी सत्ता में नहीं आ पाएगी. एक सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, दलित समुदाय और पिछड़े वर्ग के हमारे हिंदू भाई चाहते हैं कि तेलंगाना में शांति और सांप्रदायिक सद्भाव कायम रहे. हैदराबाद की राजनीति में चार दशकों से एआईएमआईएम का ऐसा दबदबा रहा है कि उसका गढ़ राज्य में राजनीतिक आंदोलनों और सत्ता परिवर्तन से अप्रभावित रहा.
यह अक्सर कहा जाता है कि सभी राजनीतिक लहरें नयापुल में रुकती हैं, जो मूसी नदी के उन पुलों में से एक है जो पुराने हैदराबाद को शहर के बाकी हिस्सों से जोड़ता है. पूर्ववर्ती संयुक्त आंध्र प्रदेश में चाहे कोई भी पार्टी सत्ता में आई हो, ओवैसी की पार्टी का आधार बरकरार रहा. 2014 में तेलंगाना को एक अलग राज्य के रूप में बनाए जाने के बाद भी कोई बदलाव नहीं हुआ है. असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली पार्टी के आंध्र प्रदेश के विभाजन को लेकर विरोध के बावजूद, पार्टी ने खुद को तेलंगाना राष्ट्र समिति (तेलंगाना राष्ट्र समिति) के प्रभुत्व वाले नए राजनीतिक परि²श्य के अनुकूल बनाया. टीआरएस, जिसने हाल ही में खुद को भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के रूप में फिर से नाम दिया.
हैदराबाद लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र और शहर के सात मुस्लिम बहुल विधानसभा क्षेत्रों पर अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखते हुए एआईएमआईएम ने 2014 और 2019 दोनों चुनावों में राज्य के बाकी हिस्सों में टीआरएस का समर्थन किया. इस दोस्ती और मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की धर्मनिरपेक्ष छवि ने टीआरएस को मुसलमानों का समर्थन हासिल करने में मदद की, जो राज्य की 4 करोड़ आबादी का लगभग 12 प्रतिशत हैं. राज्य की राजधानी हैदराबाद और कुछ अन्य जिलों में मुस्लिम मतदाताओं की भारी संख्या के साथ, वे 119 विधानसभा क्षेत्रों में से लगभग आधे में संतुलन को झुकाने की स्थिति में हैं.
माना जाता है कि हैदराबाद में 10 निर्वाचन क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाता 35 से 60 प्रतिशत के बीच हैं और राज्य के बाकी हिस्सों में फैले 50 अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में 10 से 40 प्रतिशत के बीच हैं. आठ विधानसभा क्षेत्रों को छोड़कर जहां एआईएमआईएम के उम्मीदवार मैदान में थे, पार्टी ने शेष सभी निर्वाचन क्षेत्रों में टीआरएस का समर्थन किया. जबकि एआईएमआईएम के राजनीतिक विरोधियों ने पार्टी पर सांप्रदायिक राजनीति करने का आरोप लगाया, केसीआर ने कई मौकों पर अपने दोस्त और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी का बचाव किया. केसीआर ने लोकतांत्रिक तरीके से मुसलमानों के संवैधानिक अधिकारों के लिए लड़ने के लिए एआईएमआईएम प्रमुख की सराहना की.
तेलंगाना में सत्ता पर काबिज होने के लिए आक्रामक हो रही बीजेपी ओवैसी से दोस्ती के लिए केसीआर को निशाने पर लेती रही है और टीआरएस नेता पर तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोप लगाती रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के अन्य केंद्रीय नेताओं ने तुष्टिकरण के लिए केसीआर की आलोचना की है. भगवा पार्टी का राज्य नेतृत्व एआईएमआईएम पर तीखे हमले कर रहा है, इसे 'रजाकारों' की पार्टी बता रहा है. गौरतलब है कि 'रजाकार' मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एमआईएम) के स्वयंसेवक या समर्थक थे, वह पार्टी जिसने निजाम का समर्थन किया था, जो 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद हैदराबाद को स्वतंत्र रखना चाहता था.
भारत की स्वतंत्रता के तेरह महीने बाद भारत की सैन्य कार्रवाई 'ऑपरेशन पोलो' के बाद हैदराबाद भारतीय संघ में शामिल हो गया. एमआईएम की स्थापना 1927 में मुसलमानों के सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक विकास को बढ़ावा देने के लिए की गई थी. 1948 में 'ऑपरेशन पोलो' के बाद हैदराबाद राज्य का भारतीय संघ में प्रवेश तेज हो गया, एमआईएम पर प्रतिबंध लगा दिया गया. हालांकि 1958 में इसे असदुद्दीन ओवैसी के दादा मौलाना अब्दुल वाहिद ओवैसी द्वारा एक नए संविधान के साथ पुनर्जीवित किया गया था. अब्दुल वाहिद ओवैसी ने इसे भारतीय संविधान में निहित अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए लड़ने के लिए एक राजनीतिक दल में बदल दिया.
भाजपा के 'रजाकार' के ताने के जवाब में असदुद्दीन ओवैसी कहते हैं, ''रजाकार चले गए. देश से प्यार करने वाले यहीं रह गए.'' वह सांप्रदायिक राजनीति को आगे बढ़ाने के आरोपों को खारिज करते हैं और कहते हैं कि एआईएमआईएम भारतीय संविधान में विश्वास करती है और अल्पसंख्यकों, दलितों और अन्य लोगों के संवैधानिक अधिकारों के लिए लड़ती रही है. एआईएमआईएम ने 1959 में हैदराबाद में दो नगरपालिका उपचुनाव जीतकर चुनावी शुरुआत की. 1960 में यह हैदराबाद में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी. अब्दुल वाहेद ओवैसी के बेटे सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी हैदराबाद नगर निगम (एमसीएच) के लिए चुने गए पार्टी नेताओं में शामिल थे.
1980 के दशक में पार्टी की छवि में बदलाव आया, जब सलाहुद्दीन ओवैसी ने पार्टी के तीन हिंदू नगरसेवकों को हैदराबाद का मेयर बनाया. ये वह समया था, जब हैदराबाद में अक्सर साम्प्रदायिक तनाव देखा जाता था. 2019 में हैदराबाद के पुराने शहर में नगरपालिका वाडरें से दो लोकसभा सीटों तक, एआईएमआईएम ने स्वतंत्र भारत में एक लंबा सफर तय किया. पहली बार हैदराबाद सीट जीतने के तीन दशक से अधिक समय बाद, पार्टी ने 2019 में शिवसेना से महाराष्ट्र की औरंगाबाद सीट छीनकर सही अर्थों में अपना विस्तार किया. कुछ साल पहले तक हैदराबाद के पुराने शहर तक सीमित एआईएमआईएम को अखिल भारतीय पार्टी कहने पर उसके प्रतिद्वंद्वियों ने उपहास किया था.
पार्टी के अब 10 विधायक हैं. सात तेलंगाना में, दो महाराष्ट्र में और एक बिहार में. इसके विधायकों की संख्या 14 थी, लेकिन बिहार में चार विधायक हाल ही में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) में शामिल हो गए. विभिन्न राज्यों में विस्तार के अपने प्रयासों को जारी रखते हुए, एआईएमआईएम तेलंगाना में भाजपा की बढ़त को रोकने के लिए सावधानी से कदम उठा रही है. 17 सितंबर जैसे भावनात्मक मुद्दों का राजनीतिक लाभ लेने से भाजपा को रोकने के उद्देश्य से एआईएमआईएम ने अपने इतिहास में पहली बार पिछले साल इस दिन को राष्ट्रीय एकीकरण दिवस के रूप में मनाया. 17 सितंबर, 1948 को हैदराबाद राज्य का भारतीय संघ में विलय हुआ था.