जानें क्यों मचा है PRC पर अरुणाचल प्रदेश में बवाल, खूनी संघर्ष के बाद सेना तैनात
अरुणाचल प्रदेश में पिछले कुछ दिनों से छह समुदायों को स्थायी निवास प्रमाणपत्र (पीआरसी) देने के खिलाफ जमकर उग्र प्रदर्शन किया गया. इस दौरान हिंसक भीड़ ने राज्य के उप-मुख्यमंत्री चोवना मेन के घर को आग लगाने की कोशिश की जबकि डिप्टी कमिश्नर के दफ्तर में तोड़फोड़ की.
ईटानगर: अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) में पिछले कुछ दिनों से छह समुदायों को स्थायी निवास प्रमाणपत्र (पीआरसी) देने के खिलाफ जमकर उग्र प्रदर्शन किया गया. इस दौरान हिंसक भीड़ ने राज्य के उप-मुख्यमंत्री चोवना मेन के घर को आग लगाने की कोशिश की जबकि डिप्टी कमिश्नर के दफ्तर में तोड़फोड़ की. ईटानगर और अन्य क्षेत्रों में रविवार को व्यापक हिंसा हुई और संपत्ति तथा वाहनों को भारी नुकसान पहुंचा. केंद्र सरकार ने हिंसा के मद्देनजर राज्य में भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के 1,000 कर्मी भेजे. उधर राज्य सरकार ने पीआरसी (Permanent Residence Certificate) देने के लिए उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को नामंजूर कर दिया है.
जानकारी के मुताबिक राज्य की राजधानी ईटानगर और अन्य स्थानों पर व्यापक हिंसा होने की खबर है जिससे कम से कम दो लोगों की मौत हो गई. हिंसा के दौरान कई दर्जन लोग घायल हुए है. वहीं पत्थरबाजी में कम से कम पुलिस के 30 जवानों को चोट आई है. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने ईटानगर और अन्य हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में तैनाती के लिए आईटीबीपी की 10 अतिरिक्त कंपनियां भेजी हैं. स्थानीय प्रशासन आवश्यकता के अनुसार इन अर्द्धसैनिकों की तैनाती करेगी.
पीआरसी मुद्दे पर अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेमा खांडू ने सर्वदलीय बैठक बुलाई है. वहीं आज राज्य में किसी अप्रिय घटना की खबर नही है. हालांकि इन क्षेत्रों सारे बाजार, पेट्रोल पंप और दुकानें बंद हैं और ईटानगर की ज्यादातर एटीएम में नगद नहीं है. तनाव के मद्देनजर राजधानी में इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई.
इनके लिए थी पीआरसी-
हितधारकों से वार्ता करने के बाद संयुक्त उच्चाधिकार समिति (जेएचपीसी) ने ऐसे छह समुदायों को स्थानीय निवासी प्रमाण-पत्र देने की सिफारिश की थी जो मूल रूप से अरुणाचल प्रदेश के नहीं हैं, लेकिन दशकों से नामसाई और चांगलांग जिलों में रह रहे हैं. जिन समुदायों को पीआरसी देने की सिफारिश की गई थी उनमें देओरिस, सोनोवाल कचारी, मोरंस, आदिवासी, मिशिंग और गोरखा शामिल हैं. इनमें से अधिकतर को पड़ोस के असम में अनुसूचित जनजाति माना जाता है.
इस वजह से सड़कों पर उतर आए लोग-
इस प्रस्ताव से कई समुदाय-आधारित समूहों और छात्रों के बीच असंतोष पैदा हो गया है, जिन्होंने दावा किया था कि अगर राज्य सरकार इसे स्वीकार करती है तो यह स्थानीय लोगों के अधिकारों और हितों से समझौता होगा.
अरुणाचल सरकार पीआरसी दिए जाने को लेकर आगे कोई कदम नहीं उठाने का आश्वासन दिया है. उधर प्रदर्शनकारी पीआरसी मुद्दे के स्थायी समाधान, मुख्यमंत्री के तत्काल इस्तीफे, करीब 40 प्रदर्शनकारियों की बिना शर्त रिहाई और मुख्य सचिव एवं अन्य के तत्काल तबादले की मांग कर रहे हैं.