देश की खबरें | साथ रहने के आदेश का पालन न करने पर भी पति से गुजारा भत्ता पा सकती है पत्नी: उच्चतम न्यायालय

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि एक महिला को अपने पति के साथ रहने के आदेश का पालन नहीं करने के बाद भी उस स्थिति में पति से भरण-पोषण का अधिकार दिया जा सकता है जब उसके पास साथ रहने से इनकार करने का वैध और पर्याप्त कारण हो।

नयी दिल्ली, 11 जनवरी उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि एक महिला को अपने पति के साथ रहने के आदेश का पालन नहीं करने के बाद भी उस स्थिति में पति से भरण-पोषण का अधिकार दिया जा सकता है जब उसके पास साथ रहने से इनकार करने का वैध और पर्याप्त कारण हो।

प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने इस सवाल पर कानूनी विवाद का निपटारा कर दिया कि क्या वैवाहिक अधिकारों की बहाली का आदेश रखने वाला पति महिला द्वारा साथ रहने के आदेश का पालन न किए जाने की स्थिति में कानून के आधार पर अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देने से मुक्त है।

पीठ ने कहा कि इस संबंध में कोई सख्त नियम नहीं हो सकता और यह हमेशा मामले की परिस्थितियों पर निर्भर होना चाहिए।

इसने कहा कि यह व्यक्तिगत मामले के तथ्यों पर निर्भर करेगा और उपलब्ध सामग्री तथा सबूतों के आधार पर यह तय करना होगा कि क्या साथ रहने के आदेश के बावजूद पत्नी के पास पति के साथ रहने से इनकार करने का वैध और पर्याप्त कारण है।

न्यायालय ने कहा, ‘‘इस संबंध में कोई सख्त नियम नहीं हो सकता और यह निश्चित रूप से प्रत्येक विशेष मामले में प्राप्त होने वाले विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर होना चाहिए।’’

पीठ ने यह आधिकारिक फैसला झारखंड के एक अलग रह रहे दंपति के मामले में दिया जिनका विवाह एक मई 2014 को हुआ था, लेकिन अगस्त 2015 में अलग हो गए।

पति ने दाम्पत्य अधिकारों की बहाली के लिए रांची में पारिवारिक अदालत का रुख किया और दावा किया कि पत्नी ने 21 अगस्त 2015 को ससुराल छोड़ दिया और उसे वापस लाने के बार-बार प्रयासों के बावजूद वह वापस नहीं लौटी।

उसकी पत्नी ने पारिवारिक अदालत के समक्ष अपने लिखित आवेदन में आरोप लगाया कि उसके पति ने उसे प्रताड़ित किया और मानसिक पीड़ा दी तथा चार पहिया वाहन खरीदने के लिए पांच लाख रुपये के दहेज की मांग की।

पारिवारिक अदालत ने 23 मार्च, 2022 को यह कहते हुए वैवाहिक अधिकारों की बहाली का फैसला सुनाया कि पति उसके साथ रहना चाहता है।

हालांकि, पत्नी ने आदेश का पालन नहीं किया और इसके बजाय परिवार अदालत में भरण-पोषण के लिए याचिका दायर की।

पारिवारिक अदालत ने पति को आदेश दिया कि वह अलग रह रही पत्नी को प्रति माह 10,000 रुपये का गुजारा भत्ता प्रदान करे।

बाद में, पति ने इस आदेश को झारखंड उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी जिसमें कहा गया कि उसकी पत्नी वैवाहिक अधिकारों की बहाली के आदेश के बावजूद ससुराल नहीं लौटी और उसने अपील के माध्यम से चुनौती देने का विकल्प नहीं चुना।

उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि पत्नी भरण-पोषण की हकदार नहीं है। आदेश से व्यथित होकर पत्नी ने शीर्ष अदालत के समक्ष आदेश को चुनौती दी, जिसने उसके पक्ष में फैसला सुनाया।

शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय को उक्त फैसले और उसके निष्कर्षों को इतना अनुचित महत्व नहीं देना चाहिए था।

इसने कहा कि इस तथ्य पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि संबंधित महिला को घर में शौचालय का उपयोग करने या ससुराल में खाना पकाने के लिए उचित सुविधाओं का लाभ उठाने की अनुमति नहीं थी जो उससे दुर्व्यवहार का संकेत है।

पीठ ने कहा, ‘‘तदनुसार, रांची में झारखंड उच्च न्यायालय द्वारा पारित 4 अगस्त, 2023 के फैसले को रद्द करते हुए अपील स्वीकार की जाती है।’’

इसने कहा कि पारिवारिक अदालत के 15 फरवरी, 2022 के आदेश को बरकरार रखा जाता है और पति को अपनी अलग रह रही पत्नी को 10,000 रुपये का गुजारा भत्ता प्रदान करने का निर्देश दिया जाता है।

न्यायालय ने कहा, ‘‘यह आवेदन दाखिल करने की तारीख,तीन अगस्त, 2019 से देय होगा। भरण-पोषण का बकाया तीन समान किस्तों में भुगतान किया जाएगा।’’

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