ईरानी महिलाओं के लिए क्या हैं मोहम्मदी को मिले नोबेल के मायने
नर्गिस मोहम्मदी को मिले नोबेल शांति पुरस्कार के पीछे ईरानी महिलाओं का दशकों पुराना संघर्ष छुपा है.
नर्गिस मोहम्मदी को मिले नोबेल शांति पुरस्कार के पीछे ईरानी महिलाओं का दशकों पुराना संघर्ष छुपा है. दुनिया का ध्यान एक बार फिर ईरान में "औरत, जिंदगी, आजादी" पर गया है.ईरान में मनावाधिकारों के लिए दशकों से लड़ने वाली नर्गिस मोहम्मदी. बीते 20 साल में वह जेल आती-जाती रही हैं. नर्गिस बिना थके इस्लामिक गणतंत्र का विरोध करते हुए मानवाधिकारों की आवाज बुलंद करती हैं.
उन्हें 13 बार गिरफ्तार किया जा चुका है. पांच बार दोषी करार दिया गया है और 31 साल की जेल की सजा सुनाई गई है. फिलहाल उन्हें ईरानी राजधानी तेहरान की एविन जेल में कैद किया गया है. यह जेल राजनीतिक कैदियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन करने और उनसे दुर्व्यवहार के लिए कुख्यात है.
विदेशों में बस रही हैं ईरानी महिलाएं
शुक्रवार को ओस्लो में नॉर्वे की नोबेल समिति के प्रमुख बेरिट राइस अंडरसन ने मोहम्मदी को 2023 के नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित करने का एलान किया. अंडरसन ने कहा यह पुरस्कार, "ईरान में महिलाओं के दमन के विरुद्ध उनकी लड़ाई और मानवाधिकार व सबके लिए आजादी को बढ़ावा देने की उनकी लड़ाई" को जाता है.
मोहम्मदी को पुरस्कार 'प्रतिरोध का सम्मान' है
मोहम्मदी के पति तागी रहमानी, एक पत्रकार हैं. फिलहाल वह फ्रांस में अपने बच्चों के साथ निर्वासन में रह रहे हैं. रहमानी ने नोबेल शांति पुरस्कारों को "प्रतिरोध का सम्मान" बताया. डीडब्ल्यू से बात करते हुए रहमानी ने कहा, "सच तो यही है कि समारोह इस उद्घोष के साथ शुरू हुआ, "औरत, जिंदगी, आजादी." ये दिखाता है कि यह सम्मान उन सबका है जो ईरान में नागरिक स्वतंत्रता और लोकतंत्र के लिए लड़ रहे हैं, और नरगिस भी इनमें से एक हैं."
शुक्रवार को ईरानी वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता शिरीन एबादी ने डीडब्ल्यू से कहा कि मोहम्मदी को पुरस्कार देना, "ईरान में मानवाधिकारों के उल्लंघन और खास तौर पर महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव की तरफ अंतरराष्ट्रीय ध्यान खींचेगा."
ईरान: "हिजाब उतारने" की अपील करने वाले गायक पर केस दर्ज
एबादी को 2003 में नोबेल शांति पुरस्कार मिला था. वह इस्लामिक जगत की पहली महिला हैं, जिन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया. ईरान की सभी महिलाओं और मोहम्मदी को बधाई देते हुए एबादी ने कहा, "इसमें शक नहीं है कि यह समानता हासिल करने में महिलाओं की मदद करेगा और ईरानी समाज को लोकतंत्र की तरफ ले जाने में मददगार होगा."
मोहम्मदी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, "वह इस सम्मान की हकदार हैं. उन्हें इतने साल जेल में कैद रहना पड़ा, वो भी मानवाधिकारों से जुड़े अपने कामों के लिए."
एबादी ने 2001 में ईरान में "डिफेंडर्स ऑफ ह्यूमन राइट्स सेंटर" नाम का एनजीओ शुरू किया. एनजीओ के साथ मोहम्मदी ने भी काम किया. उन अनुभवों को याद करते हुए करते हुए एबादी ने कहा, "यह सम्मान की बात है कि ईरान के एक मानवाधिकार एनजीओ के दो लोगों ने नोबेल शांति पुरस्कार जीता है."
ईरान, महिलाओं के लिए एक विचित्र भूमि
मंसूर शोजई, नीदरलैंड्स के शहर द हेग में रहती हैं. वह ईरानी महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ती हैं. डीडब्ल्यू से बात करते हुए उन्होंने कहा कि मोहम्मदी को नोबेल शांति पुरस्कार मिलना, इस बात का संकेत हैं कि, "औरत, जिंदगी, आजादी" के लिए होने वाले प्रर्दशन एक बार फिर दुनिया का ध्यान खींच रहे हैं.
शोजई ने कहा, "जब 20 साल के अंतराल में एक ईरानी महिला का नोबेल पुरस्कार मिलता है, तो यह दिखाता है कि ईरान वाकई में महिलाओं के लिए विचित्र भूमि है." शोजई ने मोहम्मदी को इन आंदोलनों की बेटी करार दिया.
शोजई कई मामलों को समेटते हुए कहती हैं, "चाहे वे नोबेल पुरस्कार विजेता हों, जेल में बंद महिलाएं हों, अस्पताल में कोमा में पड़ी महिलाएं हों, या फिर वे महिलाएं हों जिनके प्रिय कब्रिस्तान में दफन हैं, और वे महिलाएं भी जिनकी पढ़ाई-लिखाई पर बैन लगाया गया, जिन्हें सड़क पर कोड़े मारे गए- ये सब दिखाता है कि 20 साल पहले दिए गए नोबेल पुरस्कार ने कई सामाजिक और महिला अधिकार आंदोलनों की नींव रखी है."
ईरान में "महिलाएं, जिंदगी, आजादी"
ईरान में कोई महिला अगर सार्वजनिक जगह पर अपने बाल दिखा दे तो उसे गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं. इसका नतीजा लंबी जेल, यातना या फिर मौत भी हो सकती है. इस्लामिक देश में सिर पर हिजाब पहने बिना घर से बाहर निकलना नैतिकता के खिलाफ है. देश के कई शहरों में नैतिकता पुलिस गश्त करती है.
पिछले साल 22 साल की कुर्द युवती, महसा अमीनी को हिजाब न पहनने पर तेहरान में नैतिकता पुलिस ने गिरफ्तार किया. महिला अधिकार कार्यकर्ताओं और महसा के परिवार का आरोप है कि हिरासत में महसा की इतनी पिटाई की गई कि गंभीर चोटों के कारण अस्पताल में उसकी मौत हो गई. महसा की मौत के बाद ईरान के कई शहरों में नैतिकता पुलिस और कट्टर रुढ़िवादी कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन हुए. महिलाओं ने सार्वजनिक तौर पर हिजाब जलाए और अपने बाल भी काटे. इन प्रदर्शनों को पुरुषों के बड़े वर्ग का समर्थन मिला.
नॉर्वे की नोबेल कमेटी ने ईरान में "औरतों को दबाने और उनसे भेदभाव करने वाली नीतियां बनाने वाली धार्मिक सत्ता के खिलाफ प्रदर्शन करने वाली" सभी महिलाओं के प्रयासों को भी सराहा. कई प्रदर्शनकारियों ने इस विरोध की भारी कीमत चुकाई. उन्हें मौत और जेल की सजा दी गई. प्रदर्शनों को बलपूर्वक कुचलने के दौरान भी सैकड़ों लोगों की मौत हुई.
ईरान सरकार पीड़ितों के परिवारों पर अब भी लगातार दबाव डालती है कि वे अपनी नाराजगी जाहिर न करें. कुछ परिवारजनों को तो अपने प्रियजन की कब्र तक जाने की इजाजत भी नहीं दी गई है.
बीते सितंबर महीने में मोहम्मदी और उनकी साथी कैदियों ने जेल के भीतर ही एक सांकेतिक प्रदर्श किया. 16 सितंबर को महसा की पहली पुण्यतिथि पर उन्होंने जेल यार्ड में अपने हिजाब जला दिए.
महिलाओं पर ईरानी सत्ता की बर्बरता की एक खबर इस हफ्ते भी आई है. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के मुताबिक,नैतिकता पुलिस ने तेहरान में हिजाब न पहनने पर एक 16 साल की छात्रा को इतना पीटा कि वह कोमा में है.
ईरान में महिला अधिकारों का भविष्य
जून 2021 में जेल जाने से ठीक पहले मोहम्मदी ने डीडब्ल्यू को एक इंटरव्यू दिया. इसमें उन्होंने कहा, "1979 में इस्लामिक गणतंत्र की स्थापना के साथ ही, ईरान में महिलाओं को सिस्टमैटिक तरीके से दबाया जा रहा है. जो इसे नहीं मानते, उन्हें सजा दी जाती है. जो महिलाएं प्रतिरोध करती हैं, जैसे मैं और अन्य मानवाधिकार कार्यकर्ता, हम इस सिस्टम का खुलकर विरोध करते हैं. सत्ता में बैठे लोग हमें तोड़ने और खामोश करने की हर मुमकिन कोशिश करते हैं."
इस इंटरव्यू के वक्त मोहम्मदी पर "राजनीतिक तंत्र के खिलाफ दुष्प्रचार" करने का मुकदमा दायर था. मोहम्मदी ने एविन जेल के निदेशक पर उन्हें बुरी तरह पीटने के आरोप लगाया था, जिसके बाद उन पर उल्टा यह मुकदमा दायर किया गया. मोहम्मदी कहती हैं, "मैं एक महिला हूं और मैं झुकने को तैयार नहीं हूं, इसीलिए मुझे निशाना बनाया जाता है."
मोहम्मदी के पति रहमानी ने कई साल से अपनी पत्नी को नहीं देखा है. वह कहते हैं कि जेल में बंद किसी शख्स को और अन्य राजनीतिक कार्यकर्ताओं को नोबेल शांति पुरस्कार मिलना काफी अहमियत रखता है. रहमानी को उम्मीद है कि "विदेशी नागरिक संस्थान अपनी सरकारों पर इतना दबाव डालेंगे कि मानवाधिकार, रिश्तों का सबसे अहम पहलू बन जाएं."
वह कहते हैं, "सरकारों को यह समझना चाहिए कि एक वैश्विक दुनिया में आजादी, अंतरराष्ट्रीय अहमियत का एक विषय है."
मंसूरी शोजई मानती है कि नोबेल, महिला अधिकारों से जुड़े आंदोलनों की मदद करेगा. वह कहती हैं कि, "इन संसाधनों का अधिकतम इस्तेमाल करना" कार्यकर्ताओं की "जिम्मेदारी" है.
वहीं शिरीन एबादी कहती हैं, "मैं ईरान को आजादी की दुआ करती हूं."